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प्रशांत वीर को 10 रुपए के इनाम ने बनाया क्रिकेटर:14KM साइकिल चलाकर प्रैक्टिस करने जाता; 14 करोड़ में बिके अमेठी के खिलाड़ी की कहानी

‘प्रशांत वीर 10 साल का था। एक मैच में अच्छा खेला तो पड़ोसी मोनू सिंह ने 10 रुपए का इनाम दे दिया। उस इनाम को लेकर प्रशांत घर आया। पापा से कहा कि अब मुझे क्रिकेट ही खेलना है। पिता ने भी कह दिया कि जाओ खेलो। इसके बाद उसने मन लगाकर खेला। 14-14 किलोमीटर साइकिल चलाकर प्रैक्टिस करने जाता। आज 14.20 करोड़ रुपए में CSK ने उसे लिया। यह हम सबके लिए गर्व की बात है।’ ये बातें प्रशांत के चाचा डॉ. एसके त्रिपाठी ने कहीं। इस वक्त अमेठी में प्रशांत वीर के घर जश्न का माहौल है। आसपास के लोग पहुंचकर बधाई दे रहे हैं। प्रशांत के पिता, मां, दादी, बहन सब खुश हैं। उसकी उपलब्धि और उसके संघर्ष को बता रहें। दैनिक भास्कर की टीम ने सबसे बात की। दोस्त बताते हैं, आसपास के टूर्नामेंट में हमेशा ‘मैन ऑफ द सीरीज’ बनता। 6 ओवर में 120 रन भी चाहिए हों, तो अकेले बना देता था। प्रशांत का सीलन वाला कमरा ट्रॉफी से भरा
अमेठी जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर गूजीपुर गांव है। यहीं 20 साल के प्रशांत वीर का घर है। टूटे हुए रास्ते से हम प्रशांत के घर पहुंचे। घर के बाहर प्रशांत के पिता रामेंद्र त्रिपाठी अन्य लोगों के साथ बैठे थे। घर के अंदर आसपास की महिलाएं बैठी थीं। हम सबसे पहले प्रशांत की दादी मिथिलेश कुमारी से मिले। पूछा- कैसा लग रहा? मिथिलेश बोलीं- बहुत ज्यादा अच्छा लग रहा। बहुत खुश हूं। बहुत ऊंची पदवी पर पोता चला गया। 14 करोड़ मिला है, इतना तो कभी नहीं सोचा था। आगे और बढ़ जाए तो बहुत अच्छा। प्रशांत का घर एक मंजिल का है। घर के पहले कमरे में तमाम ट्रॉफी रखी थीं। ये सभी आसपास के टूर्नामेंट में जीते हुए मैन ऑफ द मैच और सीरीज की ट्रॉफियां हैं। परिवार के साथ उनकी तस्वीरें लगी हैं। जिस कमरे में ये सब है, उसमें सीलन है। छत के ऊपरी हिस्से पर प्लास्टर भी थोड़ा उखड़ रहा। देखकर ऐसा लगता है कि उसे पेंट के जरिए संभालने की कोशिश की गई है। प्रशांत जिस कीमत पर टीम में चुने गए हैं, अब संभव है कि ये सब चीजें सही हो जाएं। पिता शिक्षामित्र रहे, 6 महीने पहले नौकरी छोड़ दी
प्रशांत के पिता रामेंद्र त्रिपाठी पेशे से शिक्षक रहे हैं। 2008 में उन्होंने बतौर शिक्षामित्र गांव के ही स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। इस साल जून में उन्होंने शिक्षामित्र की नौकरी छोड़ दी और खेती करने लगे। बेटे की उपलब्धि पर इस वक्त बेहद खुश हैं। वह कहते हैं- मैं भी क्रिकेट खेलता था। पहले लेदर बॉल से खेला, बाद में टेनिस बॉल से खेलने लगा। जब प्रशांत ने खेलना शुरू किया तो हमने छोड़ दिया। प्रशांत शुरुआत से ही बल्लेबाजी और गेंदबाजी में तेज रहे। रामेंद्र कहते हैं- एक बार पास में ही टूर्नामेंट था, उस वक्त प्रशांत 14 साल के थे। इनकी टीम फाइनल में पहुंची थी। हम देखने गए, वहां इन्होंने शानदार प्रदर्शन किया था। मैन ऑफ द सीरीज चुने गए थे। बाद में इन्होंने कहा कि पापा मुझे क्रिकेट सीखना है। हमने कहा कि ठीक है। फिर ये अमेठी में अंबेडकर मैदान आने लगे। उस वक्त गालिब अंसारी जी यहां नियुक्त हुए थे, उन्होंने खूब सिखाया। बाद में बेटे का मैनपुरी स्पोर्ट्स स्कूल में हो गया तो ये वहां चले गए। गालिब जी का भी ट्रांसफर हो गया। फिर यहां कोई नियुक्ति नहीं हुई। रामेंद्र से हमने पूछा कि किस टीम में चाहते थे कि बेटे का सिलेक्शन हो? वह कहते हैं- मेरी पसंद से कुछ नहीं होना था। सारे ही प्लेयर अलग-अलग फ्रेंचाइजी में हैं तो किसी में भी जाएगा, कोई दिक्कत नहीं होती। बेटे का धोनी से लगाव था, उसके लिए सीएसके में जाना अच्छा हुआ। 10 रुपए के इनाम ने मोटिवेट किया
प्रशांत के चाचा एसके त्रिपाठी पेशे से डॉक्टर हैं। परिवार के साथ अमेठी में रहते हैं। भतीजे की इस उपलब्धि पर वह भी इस वक्त घर पर ही मिले। कहते हैं- बचपन में प्रशांत पढ़ने में तेज था। लेकिन, क्रिकेट ने इसके माइंड को बदल दिया। हमारे पड़ोस में ही एक मोनू सिंह जी हैं। जब प्रशांत 10 साल का था, तब उसने एक मैच में बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया था। उस वक्त मोनू जी ने 10 रुपए का इनाम दे दिया था। प्रशांत वह इनाम पाने के बाद खुशी से झूम उठा। 10 रुपए लेकर घर आया और अपने पापा से कहा कि अब मैं क्रिकेट ही खेलूंगा। पिता ने भी नहीं रोका। कहा कि जो चाहते हो, करो। प्रशांत का शरीर मजबूत है, इसके पीछे हमारे भाई साहब ही हैं। उन्होंने घर पर गाय ला दी। कहा कि अब जो दूध होगा वह बेटे पिएंगे और शरीर को मजबूत करेंगे। आज दूसरा बेटा भी अच्छा क्रिकेट खेलता है। मैंने कभी खेलते नहीं देखा, बस सुना और खुश हो लिए
प्रशांत की मां अंजना गृहिणी हैं। आईपीएल के ऑक्शन वाले दिन को लेकर कहती हैं- घर में काम लगा था। दोपहर 2 बजे से ही लोग घर पर लैपटॉप और मोबाइल लेकर बैठ गए। 4 बजे तो मुझे भी बुलाया और कहा कि आकर बैठिए। इसके बाद हम बैठकर देखने लगे। प्रशांत का नंबर आया तो 30 लाख से शुरू हुआ। फिर 50 लाख फिर 70 लाख फिर 1 करोड़। बढ़ता ही चला जा रहा था। ये सब एकदम सपने जैसा था, यकीन करना मुश्किल हो रहा था। आखिर में 14 करोड़ 20 लाख में धोनी की टीम में चले गए। क्या आपने बेटे को खेलते हुए देखा है? इस सवाल पर अंजना कहती हैं- मैंने उसे कभी खेलते हुए नहीं देखा। देखते वक्त अजीब लगता है। बस लोगों से सुनती हूं कि आज बहुत अच्छा खेला। यही सुनकर खुश हो जाती हूं। अंजना क्रिकेट की शौकीन रही हैं। क्रिकेट के बारे में जानती भी हैं। बेटे को खेलते हुए नहीं देखने के पीछे एक डर है। उन्हें लगता है कि बेटा जल्दी आउट हो जाएगा। अंजना ने हमेशा प्रशांत को क्रिकेट में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। बेस प्राइज भी मिलता, तब भी खुशी होती
प्रशांत के ममेरे भाई वैभवधर द्विवेदी बताते हैं- मैं तो प्रशांत के साथ खेलता था। वह जितना अच्छा बल्लेबाज है, उतना ही अच्छा गेंदबाज। जब यहां खेलता था, तब वह फॉस्ट बॉलर था। इतनी तेज गेंदबाजी करता था कि कोई खेल ही नहीं पाता था। इकाना में यूपी टी-20 लीग में नोएडा की तरफ से तो कमाल का खेला था। हमें यह तो तय लगा था कि एक दिन मेरा भाई कमाल करेगा। जिस दिन ऑक्शन चल रहा था, उस दिन ये लग रहा था कि प्रशांत को कोई टीम बस शामिल कर ले, भले वह बेस प्राइज में ही ले। वैभव कहते हैं- जब बोली शुरू हुई तो लगातार पैसा बढ़ने लगा। सभी टीमों ने इंट्रेस्ट दिखाया। पहले 1 फिर दो फिर 4, फिर 8 होते हुए 14 करोड़ 20 लाख तक पहुंच गए। सीएसके ने उसे अपने साथ जोड़ लिया। ये सब मानों एक सपना हो, हम उसी सपने में अभी भी खोए हैं। 100 किलोमीटर में प्रशांत जैसा कोई खिलाड़ी नहीं
हमने गूजीपुर में प्रशांत के परिजनों से बात कर ली। गांव के लोगों से बात कर ली। इसके बाद हम प्रशांत के दोस्तों से मिले। इन्हीं में से एक संजीव कुमार मिले। संजीव कहते हैं- प्रशांत हम लोगों के साथ खेलता था। उसे उसके ही गांव के चेतन सिंह चौहान लेकर हमारे बाग में आए, फिर यहीं से खेलना शुरू किया। उस वक्त वह 13-14 साल का था। गजब खेलता था। मतलब जिधर आप कहिए उधर उठाकर छक्का मार देगा। कवर के ऊपर से भी उसने लगातार छक्के मारे हैं। संजीव कहते हैं- हम आसपास के जितने भी टूर्नामेंट हों, हर जगह जाते थे। सामने वाली टीमें 6 ओवर में 120 रन तक बना देती थी। फिर जब हमारी बल्लेबाजी की बारी आती, तो अकेले प्रशांत ही पूरे रन मार देता था। अभी पिछले दिनों चढ़ारिया में मैच था। अकेले मैच अपनी तरफ कर लिया। प्रशांत टेनिस बॉल से खेलता तो शानदार था ही, गेंदबाजी भी बहुत तगड़ी करता था। इतनी तेज गेंद फेंकता कि सामने वाला बल्लेबाज खेल ही नहीं पाता था। अब जब वह लेदर से खेलने लगा, तो स्पिन करने लगा। कोच साहब को लगा होगा कि ये उसमें अच्छा कर सकता है। बाकी हम सभी बहुत खुश हैं। 5 टीमों के बीच फाइट चली
प्रशांत ने अब तक कोई भी इंटरनेशनल मैच नहीं खेला है। आईपीएल की नीलामी में उनका बेस प्राइज 30 लाख रुपए था। लखनऊ और मुंबई ने शुरुआत में उसे खरीदने के लिए पैडल उठाया। इसके बाद चेन्नई इस बोली में शामिल हो गई। बोली जब 4 करोड़ पहुंची, तो मुंबई पीछे हट गई। इसके बाद राजस्थान ने भी तेजी दिखाई और 6 करोड़ तक पहुंचे। अब लखनऊ भी पीछे हट गई। इसके बाद हैदराबाद बोली में आ गई। हैदराबाद और चेन्नई के बीच बोली चलती रही। आखिर में चेन्नई ने 14 करोड़ 20 लाख रुपए में अपनी टीम से जोड़ लिया। ———————- ये खबर भी पढ़ें… शामली में पत्नी, दो बेटियों को मारने वाला साइको जैसा, घर में कैद रखता, आधार तक नहीं बनवाए यूपी के जिला शामली में पत्नी और दो बेटियों की बेदर्दी से हत्या करने वाला फारुख साइको जैसा था। वो पत्नी और बच्चों को घर में कैद रखता था। बच्चे बाहर न जाएं, इसलिए उन्हें कभी स्कूल तक नहीं भेजा। परिवार के किसी भी सदस्य के आधार कार्ड भी नहीं बनवाए थे। पढ़ें पूरी खबर


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