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प्रयागराज में हाईकोर्ट के आदेश पर ढहेगा निर्माण:हाईकोर्ट ने पूर्व मंडलायुक्त की याचिका पर निर्माण ढहाने की अनुमति दी

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि अदालतें कानून का पालन करने वाले नागरिकों के लिए हैं, न कि उन बेईमान लोगों के लिए, जिनका कानून में कोई विश्वास नहीं है और जो बिना किसी डर कानून का उल्लंघन करते हैं। कोर्ट के अनुसार अतिक्रमण ध्वस्त करने का वचन देने वाला बाद में मुकर नहीं सकता है। यह टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव तथा न्यायमूर्ति सुधांशु चौहान की खंडपीठ ने प्रयागराज के पूर्व मंडलायुक्त बादल चटर्जी की याचिका की सुनवाई करते हुए न्यू कटरा में उनके निवास के समीप हुए अतिक्रमण के ध्वस्तीकरण की अनुमति दे दी है। उम्मीद जताई है कि 18 दिसंबर को अगली सुनवाई तिथि से पहले यह काम कर लिया जाएगा। कोर्ट ने इस मामले में प्रयागराज विकास प्राधिकरण की भी खिंचाई की है। और पी डी ए उपाध्यक्ष को दुबारा हाजिर रहने को कहा है। याची की तरफ से मांग की गई थी कि प्रतिवादियों को प्लॉट नंबर 64, कटरा हाउसिंग स्कीम, हाउस नंबर 70-ए/67 और हाउस नंबर 70-ए का हिस्सा, दिलकुशा पार्क, नया कटरा में कराया जा रहा निर्माण रोकने के लिए प्रयागराज विकास प्राधिकरण को निर्देशित किया जाए। साथ ही नियमों की अनदेखी कर बनवाए जा रहे वाणिज्यिक ढांचे को ध्वस्त करने का निर्देश दिया जाए। कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर स्वतंत्र जांच कराई जाए और उसे मुआवजा दिलवाया जाए।
आरोप लगाया गया कि प्रतिवादियों ने पीडीए से प्लॉट पर निर्माण के लिए जो मानचित्र स्वीकृत करवाया था, उसके अनुसार काम नहीं करवाया। स्वीकृत योजना को दरकिनार कर दिया। कोई सेट बैक नहीं छोड़ा गया। स्वीकृत मानचित्र के तहत अनुमत सीमा से परे बेसमेंट का निर्माण कराया गया। प्रतिवादी क्रमांक चार ने चौथी मंजिल पर निर्माण कराया, जबकि स्वीकृत मानचित्र के तहत चौथी मंजिल पर कोई निर्माण नहीं हो सकता था।
पूर्व मंडलायुक्त के अनुसार उनका घर बहुत पुराना है और इस कार्य से उनकी नींव कमजोर हो सकती है। सेट बैक नहीं छोड़े जाने के कारण हवा और धूप का उनका अधिकार बाधित हो रहा है। पीडीए ने पूर्व तीन मई को प्रतिवादी छह सात का परिसर सील करने का आदेश दिया था। प्रतिवादी सीमा सिंह ने प्राधिकरण से आग्रह किया कि परिसर को सील किए जाने की कार्यवाही वापस ली जाए। उनका यह भी कहना था कि निर्माण शुरू करने से पहले याची से उसने मौखिक सहमति ली थी। पीडीए के तत्कालीन सचिव ने दो जून को सील हटाने की अनुमति दे दी और तीन जून को जोनल अधिकारी ने आदेश पारित कर दिया। कोर्ट ने कहा- हम यह समझने में असमर्थ हैं कि तत्कालीन सचिव ने शपथ पत्र के आधार पर ही बिना अतिक्रमण हटाए संपत्ति को डी-सील करने की अनुमति किस शक्ति के तहत दी? प्रतिवादियों ने इतना होने पर भी गैर-कानूनी काम बंद नहीं किया। कोर्ट ने कहा-यह कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसा निर्माण पीडीए अधिकारियों की मिलीभगत के बिना नहीं किया जा सकता था।
जब न्यायालय ने मामले को संज्ञान में लिया तब पीडीए ने खुद को बचाने के लिए 24 नवंबर 2025 को संपत्ति सील करने का आदेश पारित किया। पीडीए उपाध्यक्ष ने 28 नवंबर 2025 को कोर्ट के समक्ष यह बात मानी कि प्रतिवादियों द्वारा किया गया निर्माण स्वीकृत योजना के अनुरूप नहीं था और कंपाउंडिंग लिमिट से बाहर था। कोर्ट ने सोमवार 15 दिसंबर को सुनवाई में प्रतिवादी के अधिवक्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि याचिका का आधार नहीं है।


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