प्रयागराज में देवउठनी एकादशी से शुरू हुई पारंपरिक पंचकोसी परिक्रमा यात्रा शुक्रवार को त्रिवेणी संगम पर वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ संपन्न हो गई। यह यात्रा हंस भगवान की जन्मस्थली पौराणिक हंस तीर्थ झूंसी के संरक्षण और उत्थान के उद्देश्य से आयोजित की गई थी। इसका आयोजन पूज्य संत व्यास मुनि जी महाराज के आवाहन पर गोवर्द्धनमठ पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी के मार्गदर्शन में हुआ। यह परिक्रमा देवउठनी एकादशी को त्रिवेणी संगम से प्रारंभ हुई थी। यह बहिर्वेदी, मध्यवेदी और अंतर्वेदी के सभी प्रमुख तीर्थों से होकर गुजरी और शुक्रवार को संगम तट पर पूर्णाहुति के साथ समाप्त हुई। यात्रा में साधु-संतों और श्रद्धालुओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। समापन अवसर पर यात्रा की अध्यक्षता कर रहे मणिरामदास छावनी के महामंडलेश्वर महंत राम गोपाल दास ने पंचकोसी परिक्रमा के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि यह परिक्रमा मानव शरीर के भीतर स्थित पंचकोश (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय) को जागृत करने की एक विधि है।उन्होंने हंस तीर्थ, हंस कूप, संध्यावट वृक्ष और संकष्टहर माधव जैसे प्राचीन स्थलों को दर्शन के लिए सुलभ बनाने पर जोर दिया। मुख्य अतिथि पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के धर्मराज पुरी ने कहा कि परिक्रमा केवल तीर्थों का भ्रमण नहीं, बल्कि ईश-चैतन्यता को एक सूत्र में पिरोने का साधन है। उन्होंने हंस तीर्थ की उपेक्षा को चिंताजनक बताया और इसके संरक्षण के लिए जनसहभागिता का आह्वान किया। विशिष्ट अतिथि परमहंस राजकुमार (सूरजकुंड) ने तीर्थों की परिभाषा बताते हुए कहा कि जहां जल, देवालय और महापुरुष का वास हो, वही वास्तविक तीर्थ है। मनकामेश्वर मंदिर के महंत ब्रह्मचारी श्रीधरानंद ने परिक्रमा पथ के प्रमुख तीर्थों का महत्व समझाया और हंस तीर्थ की पुनर्स्थापना के लिए संवाद व प्रयासों को तेज करने की बात कही। व्यास मुनि ने बताया कि प्रयाग तीर्थों का राजा है और उसकी पंचकोसी परिक्रमा त्रिवेणी संगम से लगभग 15 किलोमीटर की त्रिज्या में स्थित सभी प्रमुख तीर्थों को समाहित करती है। इस अवसर पर देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं और संतों ने हंस भगवान की जन्मभूमि पौराणिक हंस तीर्थ के संरक्षण और उत्थान का संकल्प लिया।
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