इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि किसी शैक्षणिक संस्था की प्रबंधन समिति प्रधानाचार्य, प्रधानाध्यापक या शिक्षक को सेवा से हटाने, बर्खास्तगी या पदावनति की संस्तुति करती है, तो जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) द्वारा उस संस्तुति को खारिज करने से पहले संबंधित प्रबंधन समिति को प्रभावी सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है। न्यायालय ने अपनेआदेश में यहभी स्पष्ट किया कि ऐसी सुनवाई केवल खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए, बल्कि वास्तविक और प्रभावी होनी चाहिए। यह निर्णय न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की एकल पीठ ने चुटकी भंडार गर्ल्स इंटर कॉलेज की प्रबंध समिति की याचिका पर पारित किया। यह मामला लखनऊ स्थित चुटकी भंडार गर्ल्स इंटर कॉलेज से संबंधित है। यहां प्रबंधन समिति ने प्रधानाचार्य डॉ. सुमन शुक्ला के विरुद्ध विभागीय जांच के बाद उन्हें सेवा से बर्खास्त करने की संस्तुति जिला विद्यालय निरीक्षक को भेजी थी। समिति ने आरोप लगाया था कि प्रधानाचार्य बनने के बाद डॉ. शुक्ला का व्यवहार बदल गया था और वह अशोभनीय हो गया था। जब उन्हें दूसरे वरिष्ठ शिक्षिका को प्रधानाचार्य का कार्यभार सौंपने को कहा गया, तो उन्होंने इनकार कर दिया और जबरन पद पर बनी रहीं। न्यायालय को बताया गया कि जिला विद्यालय निरीक्षक ने प्रबंधन समिति को सुने बिना ही उनकी संस्तुति को खारिज कर दिया और अभिलेख वापस भेज दिए। इसके बाद प्रबंधन समिति ने हाईकोर्ट का रुख किया। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि कोई भी ऐसा आदेश, जिससे किसी पक्ष के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो, बिना सुनवाई का अवसर दिए पारित नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि प्रबंध समिति किसी भी शिक्षण संस्था के दैनिक प्रशासन में केंद्रीय भूमिका निभाती है। इसलिए, उसकी संस्तुति को खारिज करने से पहले उसे अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर मिलना चाहिए। हाईकोर्ट ने 26 सितंबर 2025 के डीआईओएस के आदेश को निरस्त कर दिया। न्यायालय ने मामले को पुनः जिला विद्यालय निरीक्षक के पास भेजते हुए निर्देश दिया कि वे छह सप्ताह के भीतर विधि के अनुरूप, प्रबंधन समिति को सुनवाई का अवसर प्रदान करते हुए नया निर्णय लें।
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