लखनऊ में प्रथम जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन (लखनऊ समिट) के दूसरे दिन अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन के बहुआयामी प्रभावों पर गहन विमर्श किया। यह सम्मेलन इकोसॉफिकल फ़ाउंडेशन फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ लिटरेचर एंड एनवायरनमेंट (EFSLE), नई दिल्ली और नेशनल पीजी कॉलेज, लखनऊ द्वारा 19 से 21 दिसंबर तक आयोजित किया जा रहा है। सम्मेलन में मनोविज्ञान, भू-राजनीति, पारिस्थितिकी और संस्कृति के दृष्टिकोण से जलवायु परिवर्तन के विषय को विस्तार से प्रस्तुत किया गया। दूसरे दिन का शुभारंभ अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलाइना, चैपल हिल की प्रो. सेरेनेला आयोवीनो के मुख्य भाषण से हुआ। एंड द मेकिंग ऑफ द ह्यूमन माइंड’ विषय पर व्याख्यान प्रो. आयोवीनो ने ‘द जियोसाइकोलॉजी ऑफ क्लाइमेट चेंज: एनिमल्स, आर्क्स, एंड द मेकिंग ऑफ द ह्यूमन माइंड’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने जलवायु संकट के संदर्भ में मानव और अमानव संबंधों के मनोवैज्ञानिक व सांस्कृतिक पहलुओं पर प्रकाश डाला, और बताया कि पशु मानव सभ्यता के प्रथम शिक्षक रहे हैं। इसके बाद इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ मिलान की प्रो. आंद्रेया लावात्सा (वर्चुअल) और बीएत्रिसे पेद्रेन्टी ने ‘क्लाइमेट ट्रॉमा एंड कॉग्निटिव हेल्थ’ विषय पर शोध प्रस्तुत किया। उन्होंने इटली के एमिलिया-रोमाग्ना क्षेत्र में आई बाढ़ के पीड़ितों पर आधारित अध्ययन के माध्यम से जलवायु आपदाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बताया। अमेरिकी अवधारणाओं के बारे में जानकारी दी दिन के उत्तरार्ध में, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने भारतीय ज्ञान परंपराओं के आलोक में पारिस्थितिक चेतना पर अपने विचार साझा किए।वहीं, त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू, नेपाल के प्रो. उमेश कुमार मंडल ने ‘एग्रोइकोलॉजी एट द इंटरसेक्शन ऑफ क्लाइमेट जस्टिस एंड ग्लोबल पावर’ विषय पर संबोधन दिया। इसमें कृषि, जलवायु न्याय और वैश्विक सत्ता संरचनाओं के अंतर्संबंधों पर चर्चा की गई। इसी क्रम में EFSLE के अध्यक्ष डॉ. ऋषिकेश कुमार सिंह ने इकोफोबिया, न्यूरो-इकोएस्थेटिक्स और भू-मनोविकृति पर व्याख्यान दिया। इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ ट्यूरिन के प्रो. मौरिज़ियो वाल्सानिया ने थॉमस जेफरसन और प्रकृति संरक्षण की प्रारंभिक अमेरिकी अवधारणाओं के बारे में जानकारी दी।सम्मेलन के दौरान विभिन्न समानांतर तकनीकी सत्रोंमें अंतर्विषयक संवाद को बढ़ावा मिला। दूसरे दिन का समापन एक राउंड टेबल मीट के साथ हुआ।
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