गोरखपुर में निजीकरण के फैसले और कर्मचारियों पर की जा रही कार्रवाई के विरोध में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। समिति का कहना है कि बीते एक साल से ऊर्जा निगमों में कार्य वातावरण लगातार बिगड़ा है और उत्पीड़नात्मक कार्रवाइयों के कारण विभागों में अघोषित आपातकाल जैसे हालात बन गए हैं। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का एकतरफा निर्णय घोषित होने के बाद बिजली कर्मियों, संविदा कर्मियों, जूनियर इंजीनियरों और अभियंताओं के खिलाफ लगातार कार्रवाई की जा रही है। इससे ऊर्जा निगमों में टकराव का माहौल बना है और विकास से जुड़े कार्य प्रभावित हो रहे हैं। उत्पीड़न से कर्मचारियों में असंतोष, व्यवस्था पर असर
समिति का कहना है कि कर्मचारियों पर दबाव और अनुशासनात्मक कार्रवाइयों से भय का वातावरण बन गया है। इसका सीधा असर बिजली व्यवस्था और सेवाओं की गुणवत्ता पर पड़ रहा है। संघर्ष समिति ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हस्तक्षेप की मांग की है। पदाधिकारियों ने कहा कि आंदोलन के नाम पर बिजली कर्मियों पर की गई सभी उत्पीड़नात्मक कार्रवाइयों को वापस लिया जाए, ताकि कर्मचारी पूरे मनोयोग से उपभोक्ताओं को बेहतर बिजली आपूर्ति सुनिश्चित कर सकें। उपभोक्ताओं को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का ऐलान
समिति ने स्पष्ट किया कि निजीकरण के विरोध के दौरान भी उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान सर्वोच्च प्राथमिकता पर किया जाएगा। साथ ही सरकार की बिजली बिल राहत योजना 2025 के क्रियान्वयन में पूरा सहयोग दिया जाएगा। निजीकरण के विरोध में चल रहा आंदोलन 387वें दिन भी जारी रहा। इस दौरान प्रदेश के सभी जनपदों में बिजली कर्मियों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन किया।
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