जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य ने कहा कि जनकपुर की पुष्प वाटिका में श्रीराम और सीता का प्रथम मिलन केवल एक पावन प्रेम कथा नहीं, बल्कि मानवीय संबंधों की मर्यादाओं पर गहन चिंतन प्रस्तुत करता है। सीताराम विवाह उत्सव के दौरान दशरथ महल में अपनी रामकथा में उन्होंने आगे कहा कि दो युवा हृदयों के बीच आकर्षण अवश्य था, परंतु न दृष्टि में असंयम था, न व्यवहार में अतिशयता । मानो भाग्य ने सूचना दी कि प्रेम का आरंभ वही है जहाँ सम्मान पहले आता है। यही प्रसंग बताता है कि संबंध भावना से बनते हैं, पर टिकते तब हैं जब उनमें सामाजिक और नैतिक उत्तरदायित्व भी हो। उन्होंने कहा कि राम और सीता का यह मिलन सौंदर्य या शक्ति पर नहीं, चरित्र और नीति पर आधारित था। लक्ष्मण का संयमित साथ और सखियों की उपस्थिति इस सत्य को स्पष्ट करती है कि मर्यादा प्रेम की विरोधी नहीं, उसकी रक्षक होती है। सीता का मौन सौम्य विनय और श्रीराम का शांत शिष्ट व्यवहार आधुनिक समाज को यह सिखाता है कि आकर्षण का अर्थ अधिकार नहीं, बल्कि एक-दूसरे के व्यक्तित्व को स्वीकार करने का सौभाग्य है। आज संबंधों में त्वरित भावनाएँ गहरी संवेदनाओं को पीछे छोड़ देती हैं, और अधिकार की लालसा सम्मान को विस्मृत कर देती है। ऐसे समय में पुष्पवाटिका प्रसंग यह संदेश देता है कि वास्तविक प्रेम तब जन्मता है जब व्यक्ति दूसरे के भीतर भगवान को देख सके — स्वार्थ, आग्रह और असुरक्षा से परे। इसलिए राम और सीता का प्रथम मिलन केवल रोमांच नहीं, बल्कि मनुष्य को उसके मूल्यों की ओर लौटने का आमंत्रण है।समाज के लिए यह दृश्य आज भी पथ दर्शक है। प्रेम वही है जिसमें सम्मान हो, और सम्मान वही है जिसमें मर्यादा हो। इस अवसर पर दशरथ महल के महंत विन्दू गद्याचार्य स्वामी देवेन्द्र प्रसाचार्य, श्रीरामवल्लभाकुंज के प्रमुख स्वामी राजकुमार दास कार्यक्रम के संयोजक जगद्गुरु अर्जुन द्वाराचार्य कृपालु रामभूषणदेवाचार्य ,जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री अनन्ताचार्य , रसिकपीठाधीश्वर श्रीजनमेजय शरण, , दिगंबर अखाड़ा के उत्तराधिकारी महंत रामलखन दास आदि ने कथा व्यास की आरती की।
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