आज कहानी यूपी के झांसी से… 12वीं के बाद शिवानी बुंदेला ने फूड टेक्नोलॉजी में बीटेक किया। आगे बढ़ती इससे पहले ही लॉकडाउन लग गया। नई-नई नौकरी भी छूट गई। पिता को कोरोना हो गया। डॉक्टर ने कहा- “इम्यूनिटी के लिए बेर खिलाओ।” सड़क किनारे उगने वाले जंगली बेर से निकला एक जुगाड़ और शिवानी ने बेर से चॉकलेट बना डाली। आज बड़ी-बड़ी कंपनियां शिवानी की चॉकलेट खरीद रही हैं। सालाना कमाई 45 लाख रुपए से ऊपर है… साल 2019 का आखिर। शिवानी नोएडा की एमिटी यूनिवर्सिटी से फूड टेक्नोलॉजी में बीटेक कर रही थी। पढ़ाई पूरी होने वाली थी। इंटर्नशिप के लिए वो कई जगह अप्लाई कर चुकी थी। एक दिन उसने अपने घर झांसी में मां को कॉल किया। हालचाल के बाद शिवानी बोली- “मुझे लगता था अब सब सेट हो गया है।” मां ने कहा- “आज तो बहुत खुश लग रही है। क्या बात है…?” शिवानी- “खुश होने की ही बात है मम्मी, मुझे मुंबई में ब्यूरो वेरिटास के साथ इंटर्नशिप करने का मौका मिल रहा है। बहुत बड़ी कंपनी है।” शिवानी लगातार बोले जा रही थी। उधर मां मुंबई जाने की बात सुनकर थोड़ी घबरा गईं। बात बीच में काटती हुए बोलीं- “मुंबई, अकेले इतनी दूर… कैसे होगा। फिर शहर भी तो बहुत महंगा होगा” शिवानी बेफिक्री से बोली- “अरे मम्मी, मैं बड़ी हो चुकी हूं। सब संभाल लूंगी और फिर तीन महीने की तो बात है। उसके बाद देखेंगे…।” तीन महीने की बात सुनकर मां को थोड़ी राहत हुई। शिवानी मुंबई जाने के लिए काफी उत्साहित थी। उसके सपनों को नए पंख जो लगने वाले थे। मुंबई में तीन महीने की इंटर्नशिप कब पूरी हो गई, पता ही नहीं चला। एक दिन मां ने शिवानी को फोन किया- “इंटर्नशिप तो पूरी होने वाली है तुम्हारी, अब आगे?” शिवानी बोली- “हरियाणा की एक कंपनी में अप्लाई किया है, वीटी फाइन फूड्स। मुरथल में ऑफिस है, फाइनल ही समझिए।” कुछ ही दिन बाद शिवानी मुंबई से मुरथल आ गई। सब अच्छा चल रहा था। शिवानी के काम से उसके बॉस काफी खुश थे। इंटर्नशिप के बाद जॉब की बात चल रही थी। फिर अचानक एक झटके से सब बदल गया। कोराना पीरियड में सैकड़ों लोगों की नौकरी जा रही थी। एक दिन शिवानी मोबाइल देख रही थी। अचानक स्क्रीन पर एक मैसेज चमका। शिवानी बुदबुदाई- “ये क्या है?” वो जोर से पढ़ने लगी- “कोरोना की स्थिति को देखते हुए ट्रेनिंग तुरंत रोकी जा रही है।” उसने मां को फोन किया। शिवानी की आवाज कांप रही थी, बोली- “मम्मी, सब रुक गया।” मां समझ गईं। शिवानी को ढांढ़स देते हुए बोली- “कोई बात नहीं बेटा, लॉकडाउन हमेशा थोड़े ही रहेगा।” शिवानी बोली- “हां मम्मी, लेकिन इतनी मेहनत से यहां तक पहुंची थी। अब लग रहा है जैसे किसी ने बीच रास्ते में छोड़ दिया हो।” मां ने पूछा- “कंपनी ने आगे का कुछ बताया?” शिवानी- “नहीं मम्मी, सिर्फ इतना लिखा है कि आगे का अपडेट बाद में मिलेगा।” शिवानी टूट चुकी थी। वो रोते हुए बोली- “समझ नहीं आ रहा आगे क्या होगा। इतना कुछ प्लान किया था। लग रहा था सब सेट हो गया है।” मां ने समझाया- “घबराने से कुछ नहीं होगा। कभी-कभी जिंदगी खुद प्लान बदल देती है।” कुछ देर बाद शिवानी बोली- “मैं वापस झांसी आ रही हूं। यहां रहकर रोज डर लगेगा।” मां बोलीं- “आ जाओ, वैसे भी 6 महीने हो रहे हैं तुम्हें देखे हुए।” अगले दिन शिवानी ने सामान पैक किया लेकिन लॉकडाउन की वजह से निकलना मुश्किल था। किसी तरह वो अपने घर झांसी पहुंची। मां को देखते ही लिपटकर रोने लगी। उसके पापा भी पास ही खड़े थे। बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले- “हर वापसी हार नहीं होती बेटी। जो हुआ, सो हुआ और आगे भी जो होगा, देखा जाएगा।” शिवानी ये सोचकर लौटी थी कि घर में सुकून मिलेगा लेकिन यहां भी उसका दिमाग हमेशा उलझा रहता। मम्मी-पापा हमेशा उसका मन बदलने की कोशिश में लगे रहते, खास तौर पर पापा। शिवानी के साथ लूडो खेलते, सिर में चंपी करते, उसकी फेवरेट खीर खुद बनाकर खिलाते। शिवानी का मन भी धीरे-धीरे संभल ही रहा था कि एक सुबह पापा की रिपोर्ट हाथ में आ गई। मां की आवाज कांप रही थी- “शिवानी, तेरे पापा को कोरोना हो गया है।” शिवानी एक पल को सन्न रह गई- “क्या… टेस्ट कब कराया था?” पापा ने धीमी आवाज में कहा- “दो-तीन दिन से सर्दी-जुकाम था तो कल डॉक्टर ने टेस्ट लिख दिया।” मां बोलीं- “अस्पताल ले चलें क्या?” पापा ने कहा- “अभी नहीं, वहां और डर लगता है।” शिवानी ने तुरंत डॉक्टर को फोन किया और पूरी बात बताई। रिपोर्ट भी वाट्सएप पर भेज दी। डॉक्टर ने रिपोर्ट देखकर कहा- “घबराने की जरूरत नहीं है। कोरोना के हल्के लक्षण हैं। उन्हें घर पर ही क्वारंटाइन में रखिए। इम्यूनिटी मजबूत रखनी होगी।” फोन स्पीकर पर था। मां ने पूछ लिया- “क्या खिलाएं डॉक्टर साब?” डॉक्टर बोले- “महंगे सप्लीमेंट की जरूरत नहीं है। घर की चीजें दीजिए। खासकर बेर खिलाइए।” मां चौंक गईं- “बेर…?” डॉक्टर- “हां, बेर में विटामिन C और एंटीऑक्सीडेंट्स काफी होते हैं। ये इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है।” फोन कट गया। पापा को ऊपर के कमरे में शिफ्ट कर दिया गया। कोरोना का इतना खौफ था कि मोहल्ले वाले घर के आसपास भी नहीं फटकते थे। शिवानी ने शाम को अपने एक दोस्त से बेर मंगवा लिये। शिवानी जब बेर लेकर पापा के पास गई तो वे बोले- “कौन जानता था, ये जंगली फल ऐसे काम आएगा।” शिवानी चुपचाप उन्हें देखती रही। उसके मन में ये बात जैसे घर कर गई। धीरे-धीरे फर्क दिखने लगा। पापा की हालत सुधरने लगी। उनकी इम्यूनिटी बेहतर होने लगी। उसी डर भरे माहौल में शिवानी के दिमाग में एक नई सोच जन्म ले चुकी थी। बुंदेलखंड की धरती पर बेर ढूंढ़ना मुश्किल नहीं है। घर के आसपास आसानी से मिल जाता है। शायद इसी वजह से लोग उसकी असली कीमत भूल गए थे। शिवानी के पापा तो ठीक हो गए लेकिन उसके दिमाग में एक सवाल अटक गया। “क्या ये फल सिर्फ बीमारी में काम आता है या इससे कुछ और भी किया जा सकता है?” “क्या लोग इसे रोज खा पाएंगे?” “अगर बेर को सीधे खाने की बजाय उससे कोई नई चीज बनाई जाए?” शिवानी ने बेर पर गंभीरता से रिसर्च शुरू कर दी। उसकी न्यूट्रिशन वैल्यू, प्रोसेसिंग सब कुछ नए सिरे से समझा। पुराने रिसर्च पेपर पढ़े। अपने प्रोफेसर्स से बात की। हर जगह यही समझ आया कि बेर में दम है, बस उसे सही रूप देने की जरूरत है। अब शिवानी ने घर में ही प्रयोग शुरू किए। पके हुए बेर को उबाला, बीज निकाले और पल्प तैयार किया। पल्प को धीमी आंच पर पकाया। उसमें कोको पाउडर और गुड़ मिलाया। जब मिक्सचर कुछ गाढ़ा हो गया तो थोड़ा घी मिलाया। फिर उसे ट्रे में फैलाकर ठंडा होने रख दिया। जब वो जम गया और उसे काटा तो सामने थी बेर से बनी देसी चॉकलेट। शिवानी काफी एक्साइटेड थी। उसने चॉकलेट की ट्रे मम्मी-पापा के सामने रखी। “सब लोग चखिए और ईमानदारी से बताइएगा कि कैसी लगी।” पापा ने एक टुकड़ा उठाया- “बेर की चॉकलेट है न?”
शिवानी- “हां पापा, बिना किसी केमिकल के।”
पापा ने चॉकलेट मुंह में रखी, बोले- “काफी टेस्टी है…।” पड़ोस की आंटी भी घर आई थीं। उन्होंने चबाते हुए कहा- “टेस्ट तो बढ़िया है।” आंटी ने तारीफ की तो शिवानी की आंखें चमक गईं क्योंकि पापा तो हर चीज की तारीफ कर देते हैं। आंटी थोड़ा रुककर बोलीं- “बस एक बात है। चबाने में थोड़ा अटक रहा है। बेर का छिलका सा लग रहा है।” शिवानी का चेहरा एक पल को उतर गया। आंटी बोलीं- “बुरा मत मानना बेटा। तुमने ही कहा था कि सच-सच बताना।” शिवानी बोली- “नहीं आंटी, यही तो जानना था।” ये पहली सीख थी। शिवानी मायूस नहीं हुई। उसे समझ में आया कि अगर लोग कमी बता रहे हैं तो मतलब उन्हें आइडिया पसंद आया है। यहीं से शिवानी का कॉन्फिडेंस बढ़ा। शाम को शिवानी ने फिर से एक्सपेरिमेंट शुरू किया। इस बार बेर का छिलका अलग कर दिया। पल्प को और स्मूद बनाया। रेसिपी में छोटे-छोटे बदलाव किए। अगले दिन शिवानी ने दोबारा सबको बुलाया। पड़ोस वाली आंटी भी आईं। वो हंसते हुए बोलीं- “सारे प्रयोग हम पर ही करोगी शिवानी?” शिवानी भी मुस्कुरा दी। आंटी ने एक टुकड़ा उठाकर मुंह में रखा। उन्हें तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ, बोलीं- “ये तो मार्केट वाली से भी अच्छी है। आज क्या बदला है?” शिवानी हंसते हुए बोली- “सब कुछ।”
पापा ने खाते ही कहा- “वाह… मजा आ गया।” अब रास्ता सामने खुल चुका था। इसके बाद शिवानी ने बेर से खाने-पीने की चीजें बनानी शुरू कर दीं। जब बेर से जुड़े काम को आगे बढ़ाने का फैसला किया, तो सबसे बड़ा सवाल था इसका नाम क्या हो? शिवानी ऐसा नाम चाहती थी जो सिर्फ बिजनेस न लगे, बल्कि बेर की कद्र और उसकी ताकत भी दिखाए। एक दिन शिवानी डायरी हाथ में लिए बैठी थी। पापा ने पूछा- “इतनी देर से क्या सोच रही हो?” शिवानी बोली- “काम तो शुरू कर दिया, लेकिन नाम समझ नहीं आ रहा।” पापा मुस्कुराए- “नाम में सोच भी झलकनी चाहिए।” शिवानी लैपटॉप खोलकर कुछ सर्च करने लगी। फिर अचानक रुक गई- “पापा, ये देखिए… एक लैटिन शब्द है, अब्रोसा।” मम्मी भी पास ही बैठी थीं। वो चौंक कर बोलीं- “अबरोसा… ये क्या है?” शिवानी बोली- “इसका मतलब होता है, भगवान का खाना।” शिवानी की आंखें चमकने लगीं- “मम्मी, बेर सुनते ही आपको क्या याद आता है?” पापा बोले- “शबरी के बेर।” शिवानी झट से बोली- “हां… वही तो। जंगल में उगा साधारण फल लेकिन भावना इतनी पवित्र थी कि भगवान को भी पसंद आया।” पापा बोले- “लोग बेर की कद्र नहीं करते।” शिवानी बोली- “यही तो बदलना है। लोगों को याद दिलाना है कि देसी फल, सुपरफूड होते हैं।” नाम मिल चुका था। अब बारी थी प्रोडक्ट को लोगों तक पहुंचाने की। शिवानी को जल्दी ही ये मौका भी मिल गया। झांसी में बुंदेलखंड एग्री समिट होने वाली थी। शिवानी ने भी वहां एक स्टॉल बुक करवा लिया। समिट में जाने से एक रात पहले। मां ने आवाज दी- “शिवानी, दो बज गए हैं। अभी तक जाग रही हो?” शिवानी बोली- “मां, कल बहुत बड़ा दिन है। पहली बार अपना प्रोडक्ट बाहर ले जा रही हूं।” मां बोली- “थक जाओगी, आराम भी जरूरी है।” शिवानी बेर का जैम की पैकिंग कर रही थी, बोली- “बस मां हो गया। एक घंटे में सब समेटकर सोने जाती हूं।” अगली सुबह 9 बजे शिवानी अपने स्टॉल पर पहुंच गई। पड़ोसी स्टॉल वाला बोला- “पहली बार बेच रही हो?” शिवानी ने सिर हिलाया- “हां, घर पर ही बनाया है।” कुछ देर बाद एक-दो लोग आए। उनमें से एक बोला- “ये किस चीज का है?”
शिवानी- “बेर का जैम और चॉकलेट है।”
जैम चखकर बोला- “अरे, ये तो बहुत अच्छा है।” एक महिला ने कहा- “बेर से भी ऐसा बन सकता है?” शिवानी बस मुस्कुरा दी। लोगों को बेर से बनी चॉकलेट और जैम इतना पसंद आया कि पहले ही दिन पूरा स्टॉक बिक गया। शाम करीब 7.30 बजे शिवानी घर लौटी। थकान थी लेकिन उससे भी ज्यादा खुशी थी। पहले ही दिन पांच हजार रुपए की बिक्री हुई थी। ये शिवानी की पहली कमाई थी। थोड़ी देर आराम करने के बाद शिवानी अगले दिन की तैयारी में जुट गई। फिर से रातभर प्रोडक्ट बनाए। एग्रो समिट पूरे तीन दिन चला और तीनों दिन शिवानी के प्रोडक्ट खूब बिके। प्रोडक्ट बनाना जितना मुश्किल था, उसे बेचना उससे भी बड़ा चैलेंज निकला। शिवानी को अपनी कंपनी ‘अब्रोसा’ की पहचान बनानी थी। इसमें शिवानी का साथ दिया अभिषेक सिंह ने। अभिषेक को आइडिया पसंद आया तो वो भी शिवानी की कंपनी ‘अब्रोसा’ में पार्टनर बन गया। दोनों ने ब्रांड की पहचान बनाने के लिए फ्री मार्केटिंग का रास्ता चुना। जहां भी मुफ्त स्टॉल लगाने का मौका मिलता, शिवानी और अभिषेक पहुंच जाते। रेलवे स्टेशन, फिर कॉर्पोरेट ऑफिस, टेक पार्क, को-वर्किंग स्पेस हर जगह स्टॉल लगाए। दोनों स्टॉल लगाते थे। जो थोड़ा-बहुत पैसा आता, उससे अगले स्टॉल की तैयारी होती। धीरे-धीरे पहचान बननी शुरू हुई। शिवानी और अभिषेक को उनका पहला ऑर्डर मिला। नाबार्ड और वराडा मैनपॉवर नाम की कंपनियां उनकी पहली क्लाइंट थीं। उन्होंने दिवाली गिफ्ट हैम्पर के लिए जैम और चॉकलेट की डिमांड की। शिवानी बहुत नर्वस थी लेकिन उसके देसी प्रोडक्ट खूब पसंद किए गए। धीरे-धीरे और ऑर्डर्स भी आने लगे। बेर की चॉकलेट, जैम और जूस तीनों को अच्छा रिस्पॉन्स मिलने लगा। लोग हैरान होते कि बेर से भी ऐसी चीजें बन सकती हैं। इसके बाद शिवानी के प्रोडक्ट हॉस्पिटल सर्विसेज कंसल्टेंसी कॉर्पोरेशन (HSCC), अल्ट्राटेक और हुंडई जैसे बड़ी कंपनियों तक पहुंचे। इन कंपनियों ने अपने फंक्शन्स और गिफ्टिंग के लिए उन प्रोडक्ट को चुना। सिर्फ तीन-चार साल में ही कंपनी सालाना 45 लाख रुपए तक कमा रही है। शिवानी का मकसद सिर्फ प्रोडक्ट बनाना नहीं था। वो चाहती थी कि इसका फायदा खेत तक पहुंचे। शिवानी की कंपनी ‘अब्रोसा’ बेर की खेती को बढ़ावा दे रही है और अब-तक एक हजार से ज्यादा किसानों के साथ काम कर चुकी है। ये वही किसान हैं, जो सूखे और पथरीले इलाकों में खेती करते हैं। जहां दूसरी फसलें बार-बार धोखा दे जाती हैं। बेर ने उन्हें एक स्थायी रोजगार दिया। इसके अलावा शिवानी ने 250 से ज्यादा आदिवासी महिलाओं को ट्रेनिंग देकर इस काम से जोड़ा है। उत्तर प्रदेश हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के साथ मिलकर बुंदेलखंड और राजस्थान में बेर के तीन हजार से ज्यादा पेड़ लगाए हैं। ये पेड़ सिर्फ फल नहीं दे रहे, बल्कि सूखी जमीन को दोबारा जिंदा कर रहे हैं। जहां कभी धूल उड़ती थी, आज वहां छोटे-छोटे बाग नजर आते हैं। किसान, महिलाएं, स्थानीय युवा। ये सफर सिर्फ एक जगह तक सीमित नहीं रहा। झांसी से निकली ये कहानी अब कई शहरों तक पहुंच चुकी है। जहां बेर को हल्के में लिया जाता था, वहां अब लोग पूछते हैं “बेर वाली चॉकलेट कहां मिलेगी?” शिवानी का ये सफर सिर्फ एक कंपनी का सफर नहीं है। ये उस भरोसे की कहानी है, जो एक छोटे से जुगाड़ से शुरू हुआ और आज कई जिंदगियों से जुड़ गया है। *** स्टोरी एडिट- कृष्ण गोपाल ग्राफिक्स- सौरभ कुमार *** कहानी को रोचक बनाने के लिए क्रिएटिव लिबर्टी ली गई है। ———————————————————- सीरीज की ये स्टोरी भी पढ़ें… स्कूल की बिजली उड़ाई, कभी प्रिंसिपल ऑफिस में ‘बम’ गिराया; जुगाड़ से बना ड्रोनमैन, लखनऊ के ‘रैंचो’ ने बनाई करोड़ों की कंपनी एक बच्चे की ‘खुराफात’ से पूरा स्कूल और मोहल्ला परेशान था। कभी इलेक्ट्रिक शार्पनर से स्कूल की लाइट गुल कर देता। तो कभी उसका बनाया प्लेन प्रिंसिपल ऑफिस में धमाका कर देता। बच्चा बड़ा हुआ तो क्लीनिंग रोबोट और लाइफ सेविंग ड्रोन बनाए। पूरी स्टोरी पढ़ें…
https://ift.tt/qHaJyfQ
🔗 Source:
Visit Original Article
📰 Curated by:
DNI News Live

Leave a Reply