DniNews.Live

Fast. Fresh. Sharp. Relevant News

पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट बेंच की मांग 50 साल पुरानी:भाजपा सांसद लक्ष्मीकांत बाजपेयी बोले मेरठ-आगरा समेत 4 बेंच मिलनी चाहिए

भाजपा के राज्यसभा सांसद लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने राज्यसभा के शून्यकाल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट की बेंच स्थापित करने की मांग जोरदार तरीके से उठाई। उन्होंने कहा कि यह मांग 50 साल से ज्यादा पुरानी है और आबादी, क्षेत्रफल तथा लंबित मुकदमों के आधार पर पूरी तरह न्यायसंगत है। सांसद ने केंद्र सरकार से अपील की कि अब मेरठ, आगरा, गोरखपुर और काशी में चार नई बेंच स्थापित की जाएं। और प्रयागराज और लखनऊ हाईकोर्ट के क्षेत्रों का पुनर्निधारण किया जाए। 63% से ज्यादा केस पश्चिमी यूपी से, 10 लाख से अधिक मुकदमे लंबित बाजपेयी ने सदन में बताया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की मांग दशकों पुरानी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में कुल लंबित मुकदमों में 63 प्रतिशत से अधिक पश्चिमी यूपी के हैं। यहां 10 लाख 33 हजार से ज्यादा केस पेंडिंग हैं। उन्होंने कहा, “उत्तर प्रदेश का क्षेत्रफल 2 लाख 40 हजार 928 वर्ग किलोमीटर है, 75 जिले और 18 मंडल हैं। जनसंख्या 24 करोड़ है। ऐसे में यह मांग क्यों नहीं पूरी हो रही?” अटल से मायावती तक ने किया था समर्थन सांसद ने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में इस मांग का समर्थन किया था। इसके अलावा, मुख्यमंत्री डॉ. सम्पूर्णानंद, नारायण दत्त तिवारी, राम नरेश यादव, बाबू बनारसी दास और मायावती के कार्यकाल में राज्य सरकार ने इस प्रस्ताव को पारित किया था। 21 जुलाई 1986 को राज्यसभा में तत्कालीन विधि मंत्री हंसराज भारद्वाज ने भी बेंच का समर्थन किया था। सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या: इलाहाबाद में कोई स्थायी सीट नहीं बाजपेयी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि 1997 में नसरूद्दीन बनाम स्टेट ट्रांसपोर्ट अपील ट्रिब्यूनल मामले (1997 AIR 313) में सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ ने यूपी हाईकोर्ट अमलगमेशन ऑर्डर 1948 के पैरा 7 और 14 की व्याख्या की थी। कोर्ट ने कहा था कि इलाहाबाद में कोई स्थायी सीट नहीं है और इलाहाबाद व लखनऊ की सीटों को परिवर्तित किया जा सकता है। विधि आयोग ने 7 अगस्त 2009 को सुप्रीम कोर्ट की चार बेंच की सिफारिश की थी। जजों की कमी: 160 पद, सिर्फ 70 कार्यरत सांसद ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की स्थिति पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि यहां 160 जजों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन सिर्फ 70 कार्यरत हैं। लंबित वादों की तुलना में कम से कम 200 जजों की जरूरत है। ई-फाइलिंग सेंटर पर विवाद: सुप्रीम कोर्ट की अवमानना? बाजपेयी ने हालिया घटनाक्रम पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि 15 अप्रैल 2023 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने आदेश दिया था कि 15 दिन बाद कोई कोर्ट हाइब्रिड सुनवाई से इनकार नहीं कर सकेगा। केंद्र सरकार ने हर जिले में 440 ई-फाइलिंग सेंटर बनाने का फैसला लिया और बजट में 744 करोड़ रुपए का प्रावधान किया। अन्य राज्यों में ये सेंटर शुरू हो गए हैं। प्रयागराज हाईकोर्ट ने 23 अप्रैल 2023 को प्रदेश के हर जनपद में ई-फाइलिंग सेंटर स्थापित करने की सहमति दी और काम शुरू हुआ। लेकिन अचानक 28 अक्टूबर 2023 को इस आदेश को ‘कीप्ट इन एबेयेंस’ कर दिया गया। सांसद ने पूछा, “क्या सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का कोर्ट रूम में दिया आदेश किसी राज्य हाईकोर्ट के प्रशासनिक आदेश से रोका जा सकता है? यह सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है।” उन्होंने आगे कहा कि हाईकोर्ट ने यह अवैधानिक आदेश भी जारी किया कि ई-फाइलिंग सेंटर से वाद केवल प्रयागराज बार में पंजीकृत वकील ही कर सकेंगे। मुंबई में 5वीं बेंच, यूपी में क्यों नहीं? बाजपेयी ने तुलना करते हुए कहा कि मुंबई हाईकोर्ट की 5वीं बेंच कोल्हापुर में दी जा सकती है, तो उत्तर प्रदेश में 50 साल पुरानी मांग क्यों नहीं पूरी हो रही? उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की कि न्यायसंगत तरीके से मेरठ, आगरा, गोरखपुर और काशी में चार बेंच स्थापित की जाएं तथा प्रयागराज व लखनऊ के क्षेत्रों का पुनर्निधारण हो।


https://ift.tt/1Hr3pD5

🔗 Source:

Visit Original Article

📰 Curated by:

DNI News Live

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *