अयोध्या में जारी कड़ाके की ठंड और शीतलहर का असर अब जनजीवन के साथ-साथ पशुपालन पर भी साफ दिखाई देने लगा है। अत्यधिक ठंड के कारण दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में गिरावट दर्ज की जा रही है, जिससे पशुपालक परेशान हैं। पशुपालकों का कहना है कि ठंड बढ़ते ही पशुओं ने सामान्य से कम दूध देना शुरू कर दिया है। इसी समस्या को लेकर दैनिक भास्कर ने आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के पशुपालन महाविद्यालय के विशेषज्ञ डॉ. एसपी सिंह से बातचीत की। डॉ. सिंह ने बताया कि ठंड के मौसम में पशुओं का दूध उत्पादन बनाए रखने के लिए उन्हें ठंड से बचाना बेहद जरूरी है। उन्होंने सलाह दी कि पशुओं के रहने के स्थान पर ठंडी हवा का प्रवेश रोका जाए। इसके लिए तिरपाल या घास-फूस की टट्टियां लगाई जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि पशुओं को जमीन से लगने वाली ठंड से बचाने के लिए नीचे पुआल या सूखी पत्तियां जरूर बिछानी चाहिए। इससे पशु गर्म रहेंगे और बाद में इन्हीं पुआल व पत्तियों का उपयोग खाद के रूप में भी किया जा सकता है। आहार को लेकर डॉ. सिंह ने बताया कि ठंड के मौसम में पशुओं को संतुलित चारा देना जरूरी है। बरसीम के साथ भूसा या पुआल मिलाकर खिलाना चाहिए। केवल बरसीम खिलाने से ‘अफरा’ नामक बीमारी होने का खतरा रहता है, जिसमें पशुओं के पेट में गैस बन जाती है। समय पर इलाज न होने पर यह बीमारी जानलेवा भी हो सकती है। ठंड और अफरा रोग से बचाव के लिए डॉ. सिंह ने पशुपालकों को दिन में तीन से चार बार गुनगुना पानी देने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि गुनगुने पानी में अजवाइन, गुड़ और लहसुन मिलाकर देने से पशुओं को ठंड से राहत मिलती है और दूध उत्पादन भी सामान्य बना रहता है। विशेषज्ञों की मानें तो यदि पशुपालक समय रहते इन उपायों को अपनाएं, तो ठंड के मौसम में भी पशुओं के स्वास्थ्य और दूध उत्पादन को सुरक्षित रखा जा सकता है।
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