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पति की शहादत पर लिख डाली 300 पन्ने की किताब:दोनों का नाम मिलाकर टाइटल दिया आशिवी, बोलीं- शहादत कैसी भी हो, सम्मान सबको मिले

मुजफ्फरनगर के खतौली क्षेत्र स्थित अंतवाड़ा गांव की निवासी शिवी स्वामी ने अपने दिवंगत पति आशीष स्वामी की याद में एक किताब लिखी है। ‘आशिवी–शहीद से एक पत्नी की शिकायत’ नामक इस पुस्तक में उन्होंने अपने और पति के नाम को जोड़ा है। इस किताब का मुख्य उद्देश्य सभी सैनिकों को समान सम्मान दिलाना है, चाहे उनकी शहादत किसी भी परिस्थिति में हुई हो। शिवी स्वामी के पति आशीष स्वामी जम्मू-कश्मीर में 58वीं राष्ट्रीय राइफल बटालियन में सेवारत थे। शादी के पांच महीने बाद आशीष पहली बार छुट्टी पर घर आए थे। उन्होंने और शिवी ने केवल 20 दिन साथ बिताए। छुट्टी खत्म होने के बाद मुजफ्फरनगर लौटते समय आशीष एक सड़क दुर्घटना में शहीद हो गए। इस घटना ने शिवी के जीवन को पूरी तरह बदल दिया। इस त्रासदी के बाद शिवी ने लंबे समय तक मानसिक पीड़ा झेली। इसके बाद उन्होंने अपने अनुभवों को कलमबद्ध करने का निर्णय लिया। किताब में उन्होंने पति के साथ बिताए संक्षिप्त पलों, अचानक आई त्रासदी के दर्द, एक युवा पत्नी के अकेलेपन और समाज व प्रशासन की कथित उदासीनता का मार्मिक वर्णन किया है। शिवी का कहना है कि जब कोई सैनिक सीमा पर या ड्यूटी के दौरान गोली लगने से शहीद होता है, तो उसकी देशभक्ति की खूब सराहना होती है। राष्ट्र उन्हें सम्मान देता है, मीडिया में चर्चा होती है। लेकिन सड़क दुर्घटना या अन्य कारणों से जान गंवाने वाले सैनिकों की शहादत अक्सर उपेक्षित रह जाती है। समाज और प्रशासन के नजरिए में उनकी देशभक्ति दबकर रह जाती है। शिवी चाहती हैं कि उनके पति की देशभक्ति को हमेशा याद रखा जाए, चाहे शहादत का कारण कुछ भी हो। यही किताब का मुख्य उद्देश्य है – हर सैनिक के त्याग को समान सम्मान दिलाना। किताब की संवेदनशीलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुजफ्फरनगर के एसएसपी संजय कुमार वर्मा ने इसे पढ़ने के बाद शिवी के साहस और लेखन की तारीफ की। उन्होंने पुलिस लाइन लाइब्रेरी के लिए किताब की दस प्रतियां खरीदीं। एसएसपी ने कहा कि यह किताब पुलिसकर्मियों और आम पाठकों को सैनिकों के जीवन, उनके त्याग और उनके परिवारों के संघर्ष को बेहतर समझने में मदद करेगी। शिवी स्वामी अंत में कहती हैं, “मेरी किताब का मकसद सिर्फ यही है कि किसी भी सैनिक की देशभक्ति को सम्मान मिले। चाहे वह बॉर्डर पर शहीद हो या सड़क हादसे में, उसका बलिदान कभी कम नहीं आंका जाना चाहिए।” यह किताब न केवल एक व्यक्तिगत शिकायत है, बल्कि पूरे समाज से एक अपील है कि सैनिकों के परिवारों की अनसुनी आवाज को सुना जाए।


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