घाटमपुर तहसील क्षेत्र के राजकीय बाजरा व ज्वार खरीद केंद्र पतारा पर किसानों की परेशानी लगातार बढ़ती जा रही है। खरीद प्रक्रिया में भेदभाव का आरोप लगाते हुए दर्जनों छोटे किसान सर्द रातों में खुले आसमान के नीचे डेरा डालने को मजबूर हैं। किसानों का कहना है कि कई दिनों से केंद्र पर मौजूद होने के बावजूद उनकी फसल की तौल नहीं हो पा रही है, जबकि बड़े काश्तकारों का माल प्राथमिकता के आधार पर खरीदा जा रहा है। इसमें कुछ व्यापारी भी शामिल है। छोटे किसान परेशान, बड़े काश्तकारों की पहले तौल खरीद केंद्र पर मिले धौकलपुर निवासी अनिल सचान, पड़री निवासी गंगादीन व प्रखर सचान, ओरिया के वेद प्रकाश, तेजपुर निवासी रामकुमार, रायपुर के महेश व सोनू सहित कई किसानों ने बताया कि उनके पास 2 से 5 और कहीं 10 कुंतल तक बाजरा व ज्वार है, लेकिन अब तक उनकी कॉल नहीं लगाई गई। किसानों का आरोप है कि उनके नाम और कागजात लगाकर व्यापारी ट्रॉलियों में माल डलवा रहे हैं, जबकि वास्तविक किसान सर्दी में रात काटने को मजबूर हैं। शिकायतों के बाद भी नहीं हुई सुनवाई किसानों का कहना है कि इस समस्या को लेकर उन्होंने कई बार घाटमपुर एसडीएम अविचल प्रताप सिंह से फोन पर शिकायत की, साथ ही मुख्यमंत्री पोर्टल पर भी शिकायत दर्ज कराई, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इससे किसानों में आक्रोश और निराशा दोनों बढ़ती जा रही है। लक्ष्य के सापेक्ष खरीद बेहद कम जानकारी के अनुसार, पतारा खरीद केंद्र को इस सीजन में 18 हजार कुंतल अनाज खरीदने का लक्ष्य मिला था, लेकिन अब तक केवल 5 से 5.30 हजार कुंतल की ही खरीद हो सकी है। लक्ष्य के मुकाबले खरीद बेहद कम होने से अंतिम दिनों में किसानों की चिंता और बढ़ गई है। कांटा खराब होने का दिया गया कारण इस पूरे मामले पर केंद्र प्रभारी कौशल किशोर ने बताया कि तौल कांटा खराब होने के कारण छोटे किसानों की तौल नहीं हो पाई। नया कांटा मंगाया गया है, जिसके बाद छोटे किसानों की तौल शुरू कराई जाएगी। उन्होंने यह भी बताया कि अब खरीद के केवल दो दिन ही शेष हैं और एक दिन में अधिकतम 300 कुंतल की ही तौल दिखाई जा सकती है। ऐसे में तय समय के भीतर 1000 कुंतल से अधिक की तौल होना मुश्किल है। सवालों के घेरे में खरीद व्यवस्था एक ओर सरकार किसानों की आय बढ़ाने और फसल की समय पर खरीद के दावे कर रही है, वहीं दूसरी ओर पतारा खरीद केंद्र पर अव्यवस्था और लापरवाही किसानों पर भारी पड़ रही है। अब देखने वाली बात होगी कि प्रशासन किसानों की इस गंभीर समस्या पर कब तक ठोस कदम उठाता है।
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