उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में सहारा समूह से जुड़े एक बड़े भूमि घोटाले का नया अध्याय सामने आया है। आरोप है कि सहारा समूह ने वर्ष 2013 में 212.51 एकड़ जमीन को सेबी के पास 307 करोड़ रुपये मूल्य बताकर गिरवी रखा था, जिसे बाद में न्यू मैक्स रियलकॉन प्राइवेट लिमिटेड को महज 100 करोड़ रुपये में अवैध रूप से बेच दिया गया। न्यू मैक्स रियलकॉन प्राइवेट लिमिटेड (न्यू मैक्स टाउनशिप) ने यह जमीन खरीदने के बाद बिना नक्शा पास कराए और बिना किसी अनुमति के टाउनशिप का निर्माण शुरू कर दिया। कंपनी ने अवैध रूप से प्लॉट काटे, उनकी बिक्री की और करोड़ों का लेन-देन किया, जिस पर स्थानीय प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसी दौरान, कंपनी ने कमजोर किसानों की जमीनों पर अवैध कब्जे करने शुरू कर दिए। न्यू मैक्स ने 100 एकड़ में इंटीग्रेटेड टाउनशिप बनाने का प्रचार किया, जबकि उसके पास केवल 75.96 एकड़ जमीन थी। शेष जमीन हड़पने के लिए कंपनी ने अवैध तरीकों का सहारा लिया। इसी क्रम में मेरठ जिले की निवासी महिला किसान शिरोमणि देवी (पति अंकित पाल, गांव पवारसा) की लगभग 4 बीघा (करीब 3264 वर्ग गज) जमीन पर न्यू मैक्स ने जबरन कब्जा कर लिया। उनकी जमीन को बिना रजिस्ट्री और बिना भुगतान के अपनी चारदीवारी के अंदर शामिल कर लिया गया। शिरोमणि देवी ने इस अन्याय के खिलाफ लड़ने का फैसला किया। मुजफ्फरनगर के आरटीआई कार्यकर्ता एवं समाजसेवी विकास बालियान के सहयोग से उन्होंने अपनी लड़ाई शुरू की। उन्होंने 9 जून 2025 को मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण (MDA) के वाइस चेयरमैन, सचिव, मुख्यमंत्री और नगर विकास मंत्री को डाक के माध्यम से नोटिस भेजे। शिकायत में स्पष्ट लिखा कि जमीन विवादित है, उस पर अवैध कब्जा हुआ है। फिर भी आश्चर्यजनक रूप से 24 जून 2025 को MDA ने न्यू मैक्स का नक्शा पास कर दिया। हैरानी की बात यह कि 18 जून को ही एक आरटीआई में नक्शे की स्थिति पूछी गई थी। शिकायत के बावजूद नक्शा पास होना सिस्टम की मिलीभगत का खुला प्रमाण था। न्याय न मिलता देख शिरोमणि देवी ने 30 जुलाई 2025 को मुजफ्फरनगर सिविल कोर्ट में वाद संख्या 605/2025 दायर किया। प्रतिवादी बने न्यू मैक्स रियलकॉन और कंपनी प्रतिनिधि शिखा घर (दिल्ली)। कोर्ट फीस कम देने के लिए जमीन की कीमत सिर्फ 20 लाख रुपये दिखाई गई। मात्र एक दिन बाद 31 जुलाई 2025 को सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रघुवंश मणि सिंह ने जमीन पर स्टे ऑर्डर जारी कर दिया। मजबूरन कंपनी को शिरोमणि देवी से कई करोड़ रुपये देकर वैध रजिस्ट्री के जरिए वही जमीन खरीदनी पड़ी, जिसे उन्होंने मुफ्त में हड़पने की कोशिश की थी।
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