इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में न्यायिक अनुशासन और ज़मानत देने में एकरूपता बनाए रखने को भैंस चोरी के एक मामले के अभियुक्त को बड़ी राहत देते हुए उसकी एक लाख की ज़मानत राशि और दो ज़मानतदार की शर्त को घटाकर मात्र पांच हजार रुपये का निजी मुचलका और एक ज़मानतदार कर दिया है। साथ ही बरेली के अपर सत्र न्यायाधीश से स्पष्टीकरण मांगा है कि उन्होंने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित ज़मानत और ज़मानतदारों के संदर्भ में दिशा निर्देशों का पालन क्यों नहीं किया। यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने पप्पू मेट उर्फ पप्पू की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। याचिका के अनुसार याची की जमानत एक लाख रुपये के मुचलके और इतनी ही राशि की दो जमानत पर मंजूर की गई थी। कहा गया कि याची अत्यंत गरीब है और इतनी बड़ी राशि का इंतजाम नहीं कर सकता। यह भी गया कि इसी मामले के जिन सह अभियुक्तों से चोरी की गई भैंसें बरामद हुई थीं, उन्हें मात्र 25 हजार रुपये की ज़मानत पर रिहा किया गया था। सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि यह मामला श्रीमती बच्ची देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में दिए गए उच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों की घोर अवहेलना है। यह अकेला मामला नहीं है, जिला न्यायालयों द्वारा लगातार निर्देशों की अवहेलना की जा रही है। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक अनुशासन पसंद का विषय नहीं है। यह एक संवैधानिक अनिवार्यता है जो न्यायालयों के पदानुक्रम को बनाए रखती है। कोर्ट ने बरेली के जिला जज को निर्देश दिया कि दोनों संबंधित न्यायाधीशों से स्पष्टीकरण मांगें और यह रिपोर्ट दें कि गत 12 अगस्त के बाद से कितने मामलों में आरोपी को दो ज़मानतदारों पर रिहा करने का निर्देश दिया गया है। मामले की अगली सुनवाई 18 दिसंबर होगी।
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