गेझा तिलपताबाद समेत तीन गांवों के अपात्र किसानों को करीब 117 करोड़ रुपए मुआवजा बांटने में हुई गड़बड़ी के मामले में जांच का दायरा अब बढ़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण में पिछले 10-15 सालों में तैनात रहे अधिकारियों की भूमिका की जांच के आदेश दिए हैं। मुआवजा वितरण की प्रक्रिया में 12 से अधिक सीईओ, एसीईओ और ओएसडी शामिल थे। मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने साफ किया कि जिन किसानों को अधिक भुगतान किया गया, उन्हें सजा नहीं दी जाएगी और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि जांच के दौरान किसानों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए। इससे पहले, किसान की ओर से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे ने पीठ को बताया कि किसानों को एसआईटी से अपना बयान दर्ज कराने के लिए नोटिस मिल रहे हैं। कृपया किसानों की रक्षा करें। कोर्ट ने भरोसा दिलाया कि किसान को सुरक्षा दी जाएगी। उन्होंने कहा कि हम जानना चाहेंगे कि यदि भुगतान गलती से हुआ है, तो आप कानून के हिसाब से सुरक्षा के हकदार हैं। उन्होंने साफ किया कि एसआईटी को सब कुछ जांचने और रिपोर्ट देने की पूरी छूट होगी। एसआईटी जांच की सराहना
सुप्रीम कोर्ट ने 13 अगस्त को मामले में नोएडा के अधिकारियों की भूमिका की जांच के लिए एसआईटी गठित करने का आदेश दिया था, जिन पर बिल्डरों के साथ मिलकर जमीन मालिकों को उनके हक से अधिक मुआवजा देने का आरोप है। पीठ ने कहा कि एसआईटी की 26 अक्टूबर की स्टेटस रिपोर्ट रिकॉर्ड में है। हम अब तक उठाए गए कदमों की तारीफ करते हैं। हमें उम्मीद है कि एसआईटी चल रही जांच को सही अंजाम तक ले जा पाएगी। सीईओ और सीएलए की होगी जांच
दायरा बढ़ने से सीईओ के अलावा एसीईओ और सीएलए भी जांच के दायरे में आएंगे। इसकी वजह यह है कि एक रुपये मुआवजा देने के लिए भी सीईओ तक फाइल की मंजूरी होती है। पहले बनी एसआईटी ने करीब पौने दो साल पहले जो रिपोर्ट सौंपी थी, उस रिपोर्ट से कोर्ट इस बात पर सहमत नहीं हुआ था कि इतनी बड़ी गड़बड़ी दो या तीन विधि स्तर के अधिकारी-कर्मचारी कर सकते हैं। गौरतबल है कि गेझा तिलपताबाद गांव के अलावा नंगला और भूड़ा गांव के अपात्र किसानों को प्राधिकरण ने मुआवजा दिया था।
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