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नेपाल के नागरिकों को नए सत्र से मिलेगी शिक्षा:बलरामपुर विश्वविद्यालय में ‘रोटी-बेटी’ संबंध होंगे मजबूत

भारत और नेपाल के ‘रोटी-बेटी’ संबंधों को और मजबूत करने के उद्देश्य से बलरामपुर जिले में स्थित मां पाटेश्वरी विश्वविद्यालय में नए सत्र से नेपाल के नागरिकों को भी शिक्षा प्रदान की जाएगी। यह विश्वविद्यालय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत नवनिर्मित और निर्माणाधीन है। कुलपति प्रोफेसर रविशंकर सिंह ने विश्वविद्यालय के एक वर्ष पूरे होने पर यह घोषणा की। उन्होंने बताया कि अवध विश्वविद्यालय के परिनियम और अध्यादेश लागू होने के कारण इस सत्र में नेपाल के नागरिकों को शिक्षा प्रदान नहीं की जा सकी थी। कुलपति ने भारत और नेपाल के संबंधों को राजनीतिक के बजाय ‘रोटी-बेटी’ का बताया। प्रोफेसर सिंह ने मतांतरण, लव जिहाद और आतंकवाद जैसी वैश्विक समस्याओं का जिक्र करते हुए कहा कि इनका संबंध कहीं न कहीं नेपाल से जुड़े रास्तों से है। विश्वविद्यालय इन मुद्दों पर अपनी भूमिका को लेकर विचार कर रहा है। कुलपति ने देवीपाटन मंडल के एक जिले में महाविद्यालयों में नकल की समस्या पर भी सख्ती दिखाई। उन्होंने याद दिलाया कि 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जिले को ‘नकल की मंडी’ कहा था। कुलपति ने इस पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कदम उठाने की बात कही। प्रोफेसर सिंह ने नकल माफिया पर लगाम लगाने का दावा किया। उन्होंने कहा कि सभी दलालों को नियंत्रित कर लिया गया है और वे अब विश्वविद्यालय की ओर देखने की हिम्मत भी नहीं करेंगे। कुलपति ने बताया कि कुछ नामी-गिरामी महाविद्यालयों से लगभग 50-60 लोग उनके पास आए थे, लेकिन अब वे दोबारा नहीं आएंगे। उन्होंने जोर देकर कहा कि अब ऐसा नहीं होगा और सभी महाविद्यालय सही रास्ते पर आ गए हैं। इसका अर्थ है कि यहां का जनमानस गुणवत्तापूर्ण शिक्षा चाहता है। कुलपति ने चेतावनी दी कि नकल माफिया को अपनी दुकानें बंद करनी होंगी, अन्यथा भारत को ‘नेपाल’ बनने में देर नहीं लगेगी। उन्होंने ‘जेन जी’ (Gen Z) आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि सीमावर्ती मंडल होने के कारण यहां सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने बताया कि नेपाल में हुए ‘जेन जी’ आंदोलन का सीधा असर बहराइच, पीलीभीत, लखीमपुर और बलरामपुर जैसे सीमावर्ती जिलों पर भी पड़ा है। कुलपति ने आश्वासन दिया कि वे संवेदनशीलता से यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि छात्रों को वह सब मिले, जिसकी उन्हें आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि शायद ही किसी विश्वविद्यालय के कुलपति ने पहले ऐसे मुद्दों पर इतनी बेबाकी से बात की हो।


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