इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महराजगंज के सोनौली में निजी अस्पताल को बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए व ठोस आधार के सिर्फ शिकायत पर सील करने की कार्रवाई पर संबंधित अधिकारियों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने मनमानी सीलिंग कार्रवाई के कारण राज्य सरकार पर 20 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है और तत्काल अस्पताल का सील हटाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा हर्जाना राशि में दस हजार याची को और शेष विधिक सेवा समिति को जमा करने का आदेश दिया और कहा सरकार जिलाधिकारी की जांच पर हर्जाना दोषी अधिकारियों से वसूल सकती है। कोर्ट ने नियमानुसार याची के अस्पताल के पंजीकरण अर्जी पर निर्णय लेने का आदेश दिया है।और कहा कि यदि अर्जी निरस्त होती है तो कारण स्पष्ट किया जाय।और याची को अस्पताल की कमी दूर करने को कहा जाय। यह आदेश न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने डॉ. नरेश कुमार गुप्ता की याचिका पर दिया है। याची एक निर्माणाधीन अस्पताल के संचालक हैं। अस्पताल के एक कर्मचारी ने 3 जुलाई 2025 को पुलिस में शिकायत की कि अस्पताल में सरकारी दवाएं और एक्सपायर्ड लैब किट मौजूद हैं। इसी शिकायत के आधार पर थाना सोनौली ने जिला मजिस्ट्रेट को एक रिपोर्ट भेजी, जिसमें अस्पताल के फर्जी दस्तावेजों से चलने और बिना पंजीकरण के संचालित होने का आरोप लगाया गया। इसके बाद 5 जुलाई को एक निरीक्षण दल ने अस्पताल का दौरा किया और 6 जुलाई को दी गई रिपोर्ट के आधार पर परिसर सील कर दिया गया। इसे कार्रवाई को याची ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।छापे के दौरान यह नहीं देखा गया कि अस्पताल चालू भी है या नहीं,क्या कोई मरीज भी था। याची अधिवक्ता ने दलील दी कि अस्पताल निर्माण के अंतिम चरण में था और पूरा होने पर पंजीकरण के लिए आवेदन किया जाना था। उन्होंने बताया कि पंजीकरण के लिए एक आवेदन किया गया था, जिसे प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली, बायोमेडिकल कचरे के निस्तारण और अग्निशमन प्रणाली की कमी के आधार पर अस्वीकार कर दिया गया। कोर्ट में आश्वासन दिया कि इन कमियों को दूर करने के बाद वे फिर से संबंधित विभाग को निरीक्षण के लिए आमंत्रित करेंगे और पंजीकरण प्राप्त करने के बाद ही संचालन शुरू करेंगे। कहा कि निरीक्षण के दौरान अस्पताल में कोई मरीज नहीं मिले और न ही यह चालू स्थिति में पाया गया। कोर्ट के इस सवाल पर कि क्या निरीक्षण दल को कोई पर्चा या दवाओं की बिक्री का प्रमाण मिला, जवाब नकारात्मक था। कोर्ट ने पक्षों को सुनने के बाद कहा कि अधिकारियों ने जल्दबाजी में कार्यवाही की। बिना कोई ठोस सबूत या सामग्री लिए कि अस्पताल बिना पंजीकरण के चल रहा था सील कर दिया। कोर्ट ने सील खोलने का आदेश दिया और कहा पंजीकृत होने के बाद ही अस्पताल चालू किया जाय।
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