इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी सजायाफ्ता अभियुक्त को सशर्त जमानत दे दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा ने विनोद सिंह उर्फ मोनू परिहार की अर्जी पर अधिवक्ता ऋतेश श्रीवास्तव को सुनकर दिया है। इनका कहना था कि याची पर आरोप है कि कानपुर नगर में उसने नाबालिग पीड़िता के घर में घुसकर दुष्कर्म किया। जबकि मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता के शरीर के किसी अंग में चोट नहीं पाई गई। सैंपल में कोई ब्लड आदि नहीं पाया गया। घटना के समय छोटा भाई घर में ही था लेकिन ट्रायल कोर्ट में उसका बयान नहीं दर्ज किया गया। याची को झूठा फंसाया गया है। उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। एफआईआर दर्ज करने में आठ दिन की देरी की गई है। जिसका स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। वह 18 अगस्त 23 से जेल में बंद है। उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं फिर भी विशेष अदालत ने उसे सजा सुनाई है। जिसके खिलाफ दाखिल अपील की शीघ्र सुनवाई की संभावना नहीं है। सरकारी वकील ने जमानत का विरोध किया कहा कि भाई की गवाही न कराने व पीड़िता को चोट के निशान न पाये जाने से नहीं कहा जा सकता कि अपराध नहीं हुआ है। कोर्ट ने बिना गुण-दोष पर विचार किए याची की सशर्त जमानत मंजूर कर ली और जुर्माना राशि आधी जमा करने पर शेष की वसूली पर रोक लगा दी है।
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