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धरती की गहराई से आपदाओं का अलर्ट:लखनऊ में साइंटिस्ट बोले- NASA के 12 हजार करोड़ के सैटेलाइट को ISRO ने 1000 करोड़ में बनाया

अमेरिका के नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) ने 12 हजार करोड़ में दुनिया का सबसे महंगा सैटेलाइट बनाया। उसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 11 गुना कम लागत यानी एक हजार करोड़ में बना दिया।
इससे धरती की गहराई की तस्वीरें मिलेंगी। भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं की सटीक जानकारी समय रहते मिल जाएगी। इससे आपदाओं से होने वाले नुकसान से बचा जा सकेगा।
ये कहना है ISRO के वरिष्ठ वैज्ञानिक और टेलिमेट्री, ट्रैकिंग एवं कमांड नेटवर्क के निदेशक डॉ. अनिल कुमार का। डॉ. अनिल कुमार लखनऊ में महर्षि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बतौर अतिथि शिरकत करने आए थे। दैनिक भास्कर ने उनसे विशेष बातचीत की।
उन्होंने कहा- हमारी तकनीक सस्ती और भरोसेमंद है। इसलिए दुनिया हम पर भरोसा करती है। विस्तार से पढ़िए डॉ. अनिल कुमार ने जो कहा… अमेरिकी साइंटिस्ट भी भारतीयों के आगे नतमस्तक डॉ.अनिल कुमार ने बताया कि 11 साल में LS सैटेलाइट के इस प्रोजेक्ट को पूरा किया गया। 2014 में इसकी शुरुआत हुई थी। NASA ने इसके लिए 12 मीटर का अलग से एंटीना लगाया है।भारत को इसकी जरूरत नहीं पड़ी। दोनों की टेक्नोलॉजी लगभग बराबर है, लेकिन भारतीय टेक्नोलॉजी बेहद किफायती है। भारत के इसी इनोवेटिव पावर के आगे अमेरिका भी नतमस्तक है। धरती की गहराई की तस्वीरें मिल सकेंगी डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि इसके जरिए धरती की गहराई को पता लगाया जा सकेगा। भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं की सटीक जानकारी मिल सकेगी। मिनरल्स सहित कई खदानों और खनिज उत्पादों की जानकारी भी हासिल हो सकेगी। इससे देश को काफी फायदा होगा। ऑपरेशन सिंदूर में निभाई अहम भूमिका डॉ. अनिल कुमार​​​ ​​​​ऑपरेशन सिंदूर में ISRO ने कई तरह से मदद की। ISRO के कई सैटेलाइट ने ऑपरेशन सिंदूर में बेहद अहम रोल निभाया है। हालांकि, राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए डॉ. अनिल कुमार ने इस संबंध में डिटेल जानकारी साझा करने में असमर्थता जताई। अब पढ़िए ISRO के भविष्य के लक्ष्य क्या हैं… 2035 में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन होगा डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि ISRO को पीएम मोदी ने चंद्रयान मिशन का लक्ष्य दिया है। इसके तहत 2035 में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन तैयार करेगा। 2040 में भारतीय एस्ट्रोनॉट सफलता पूर्वक चंद्रमा में लैंड कर सेफअली रिटर्न करेंगे। इस दिशा में बहुत तेजी से काम चल रहा है। ISRO जॉइन करें युवा डॉ. अनिल कुमार ने युवाओं से ISRO के माध्यम से राष्ट्र सेवा करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार अन्य इंजीनियरों की तुलना में हमे 40% अधिक वेतन देती है। उन्होंने कहा कि विज्ञान के क्षेत्र में अनंत संभावनाएं हैं। आज दुनिया इंटरनेट पर आधारित हो चुकी है। थोड़ी देर के लिए इंटरनेट बंद कर दिया जाए तो सारा कामकाज ठप पड़ जाएगा। चलते-चलते जान लीजिए चंद्रयान मिशन के बारे में… भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन 2035 तक ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ (BAS) की स्थापना 2035 तक की जाएगी। इसके शुरुआती मॉड्यूल 2027 से ही अंतरिक्ष में स्थापित किए जा सकते हैं। गगनयान मिशन में प्रगति हो रही हैं। क्रू मिशन से पहले तीन बिना मानव वाले मिशनों की योजना है। व्योममित्रा इस साल दिसंबर में उड़ान भरेगी, जबकि दो और मिशन अगले साल होंगे। मानवयुक्त गगनयान मिशन 2027 की पहली तिमाही तक संभव होगा। चंद्रयान-4,मंगल मिशन और AXOM भारत की आने वाली परियोजनाओं में चंद्रयान-4, चंद्रयान-5, एक नया मंगल मिशन, और AXOM (खगोल विज्ञान वेधशाला मिशन) शामिल हैं। ‘आदित्य-L1 मिशन’ ने अब तक 15 टेराबाइट से अधिक सौर डेटा एकत्र किया है, जिससे सौर ज्वालाओं और अंतरिक्ष मौसम पर मूल्यवान जानकारी मिली है। सितंबर, 2024 में मिली थी चंद्रयान-4 मिशन को मंजूरी कैबिनेट ने पिछले साल सितंबर में चंद्रयान-4 मिशन को मंजूरी दी थी। इस मिशन का उद्देश्य स्पेसक्राफ्ट को चंद्रमा पर उतारना, चंद्रमा की मिट्टी और चट्टानों के सैंपल इकट्ठा करना और उन्हें सुरक्षित पृथ्वी पर वापस लाना है। इस मिशन पर 2104 करोड़ रुपए की लागत आएगी। इस स्पेसक्राफ्ट में पांच अलग-अलग मॉड्यूल होंगे। जबकि, 2023 में चंद्रमा पर भेजे गए चंद्रयान-3 में प्रपल्शन मॉड्यूल (इंजन), लैंडर और रोवर तीन मॉड्यूल थे। चंद्रयान-4 के स्टैक 1 में लूनर सैंपल कलेक्शन के लिए एसेंडर मॉड्यूल और सतह पर लूनर सैंपल कलेक्शन के लिए डिसेंडर मॉड्यूल होगा। स्टैक 2 में थ्रस्ट के लिए एक प्रपल्शन मॉड्यूल, सैंपल होल्ड के लिए ट्रांसफर मॉड्यूल और सैंपल को पृथ्वी पर लाने के लिए री-एंट्री मॉड्यूल शामिल रहेगा। मिशन में दो अलग-अलग रॉकेट का इस्तेमाल होगा। हैवी-लिफ्टर LVM-3 और ISRO का रिलायबल वर्कहॉर्स PSLV अलग-अलग पेलोड लेकर जाएंगे। चंद्रयान-4 के 2 मॉड्यूल चांद की सतह पर जाएंगे चंद्रयान-4 मिशन कई स्टेज में पूरा होगा। चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद मुख्य स्पेसक्राफ्ट से 2 मॉड्यूल अलग होकर सतह पर लैंड करेंगे। दोनों ही मॉड्यूल चांद की सतह से नमूने इकट्ठा करेंगे। फिर एक मॉड्यूल चांद की सतह से लॉन्च होगा और चांद की कक्षा में मुख्य स्पेसक्राफ्ट से जुड़ जाएगा। नमूनों को धरती पर वापस आने वाले स्पेसक्राफ्ट में ट्रांसफर करके भेजा जाएगा। इसरो के वैज्ञानिक चांद की सतह से ‎नमूने उठाने वाला रोबोट तैयार कर रहे हैं। गहराई तक ‎ड्रिल करने तकनीक पर काम हो रहा है। नमूने इकट्‌ठा करने के लिए कंटेनर और डॉकिंग मैकेनिज्म‎ की तकनीक विकसित की जा रही है। भविष्य के अन्य प्लान


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