मेरठ के टीपीनगर क्षेत्र में रविवार सुबह हुआ सड़क हादसा सिर्फ दो जिंदगी नहीं ले गया, बल्कि दशकों पुरानी उस दोस्ती का अंत भी कर गया जिसे लोग मिसाल के तौर पर देखते थे। शेखपुरा निवासी जितेंद्र और मलियाना के प्रवीण वर्षों से एक-दूसरे के जीवन का अभिन्न हिस्सा थे। चाहे ठेले पर काम हो, फैक्ट्री की ड्यूटी या पारिवारिक संकट दोनों की दिनचर्या एक-दूसरे के साथ ही पूरी होती थी। शनिवार दोपहर की तरह वे इस बार भी साथ निकले थे और रविवार सुबह घर लौटते समय हादसे की चपेट में आ गए। मौत ने भी उनका साथ नहीं छोड़ा और दोनों ने एक-साथ दम तोड़ दिया। अब दोनों परिवारों का रो-रोकर बुरा हाल है, जबकि जितेंद्र के तीन छोटे बच्चे अभी भी इस सच्चाई को समझने की उम्र में नहीं हैं कि उन्होंने जीवन में सबसे बड़ा सहारा खो दिया है। 15 साल किराएदारी से शुरू हुई अटूट दोस्ती जितेंद्र के पिता पीतम सिंह बताते हैं कि करीब 15 वर्ष तक उनका परिवार मलियाना में प्रवीण के घर किराए पर रहा। इसी दौरान दोनों की दोस्ती की नींव पड़ी। दोनों की उम्र तब बहुत कम थी, लेकिन एक-दूसरे के लिए सम्मान, विश्वास और अपनापन समय के साथ इतना गहरा हुआ कि परिवार बदलते रहे, घर बदलते रहे, लेकिन दोस्ती का रिश्ता नहीं बदला। जब जितेंद्र का परिवार शेखपुरा शिफ्ट हुआ, तब भी दोनों हर दिन फोन पर बात करते और मिलने के लिए समय निकालते रहे। त्योहार, जन्मदिन, पारिवारिक काम किसी में भी एक-दूसरे की गैरहाजिरी नहीं रहती थी। जितेंद्र के जीवन में बढ़ता संघर्ष और प्रवीण का सहारा बागपत में हुई शादी के बाद जितेंद्र कुछ समय पत्नी के पास गया, लेकिन वैवाहिक तनाव बढ़ने पर रिश्ते बिगड़ते गए। बात इतनी आगे बढ़ी कि करीब छह वर्ष पहले जितेंद्र तीनों बच्चों किरण, आयुष और नायरा को साथ लेकर मेरठ लौट आया। बच्चों की पूरी परवरिश की जिम्मेदारी उसके माता-पिता और खुद जितेंद्र पर आ गई। जितेंद्र ने चाऊमीन का ठेला लगाया और अपनी मेहनत से बच्चों का खर्च उठाना शुरू किया। इस संघर्ष के समय प्रवीण उसका सबसे मजबूत सहारा था। दिन में फैक्ट्री की नौकरी करने के बाद प्रवीण सीधे ठेले पर पहुंच जाता था। दोनों देर रात तक एक साथ बैठकर काम, बच्चों और आने वाले दिनों के लिए योजनाएं बनाते थे। परिवार से ज्यादा भरोसा दोस्ती पर जितेंद्र की पत्नी अलग रह रही थीं, इसलिए बच्चों की उम्र छोटी होने के कारण दादा-दादी उन्हें संभाल रहे थे। पिता पीतम सिंह बताते हैं, जितेंद्र बच्चों का अच्छा भविष्य चाहता था, लेकिन वह यह भी जानता था कि जीवन की हर परेशानी में प्रवीण ही उसके साथ खड़ा है। दोनों की दोस्ती सिर्फ साथ बैठने तक सीमित नहीं थी, वे एक-दूसरे का परिवार थे। उधर प्रवीण का परिवार भी जितेंद्र को उसी नजर से देखता था। भाई सतीश ने बताया, हमें लगता था कि जितेंद्र हमारे ही परिवार का हिस्सा है। प्रवीण रोज उसकी चिंता करता था। हादसे वाले दिन की आखिरी दिनचर्या शनिवार दोपहर जितेंद्र ठेले पर जाने के लिए निकला तो रास्ते में प्रवीण को भी साथ ले गया। ठेले पर दोनों ने दिनभर काम किया और रात को वहीं पास के कमरे में रुक गए। रविवार सुबह दोनों घर लौट रहे थे। सड़क पर ट्रैफिक कम था, लेकिन अचानक सामने से आ रहे वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी। कुछ ही सेकेंड में सब खत्म हो गया। आसपास के लोगों ने पुलिस और परिजनों को सूचना दी। लेकिन अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया।दोनों परिवारों की चीख-पुकार पूरे अस्पताल परिसर में गूंज उठी। प्रवीण के भाई सतीश ने बताया कि अब वे उसकी शादी की योजना बना रहे थे। घर में लड़कियों से बात चल रही थी और परिजनों को उम्मीद थी कि अगले कुछ महीनों में प्रवीण अपना जीवन बसाएगा। लेकिन इस हादसे ने पूरे परिवार का भविष्य बदल दिया। सतीश कहते हैं। हम सोच भी नहीं सकते थे कि जिस भाई की शादी की तैयारी कर रहे थे, वह घर लौटेगा भी नहीं। बच्चों का सहारा छिन गया जितेंद्र के तीन बच्चे अभी इतने छोटे हैं कि पिता की मौत का अर्थ भी नहीं समझते। हादसे की जानकारी जब घर पहुंची, तब दादी विमला देवी बेसुध होकर गिर पड़ीं। पिता पीतम सिंह का रो-रोकर बुरा हाल है।घर में लोग सांत्वना देने आए हैं, लेकिन बच्चे पड़ोस में खेल रहे हैं। उन्हें लगता है कि पापा देर से लौटेंगे, जैसे कई बार आता-जाता रहता था। यही सबसे बड़ी त्रासदी है घर में मातम है, पर मासूमों को पता ही नहीं कि उनकी जिंदगी आज से बिल्कुल बदल चुकी है। इलाके में गम और दोस्ती की मिसाल की चर्चा टीपीनगर क्षेत्र में और आसपास रहने वाले लोग लगातार यही बात कह रहे हैं कि जितेंद्र और प्रवीण की दोस्ती ने इंसानों के बीच रिश्तों को नई परिभाषा दी है। एक दुकानदार कहता है, हमने इन्हें कभी अलग नहीं देखा। मौत भी इन्हें अलग नहीं कर सकी। पड़ोसियों का कहना है कि दोनों के जाने के बाद इलाके में एक खालीपन सा महसूस हो रहा है। दोनों का व्यवहार, सादगी और लोगों से प्रेम उन्हें समाज में अलग पहचान देता था।
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