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तीन साल की जांच में निकला एक रुपये का घोटाला:प्रधान पर 30 लाख रुपये के गबन का आरोप था, पावर सीज होने के बाद फिर हुई बहाली

औरैया की बिधूना तहसील की ग्राम पंचायत खानजहांपुर चिरकुआ इस समय चर्चा में है। मामला यहां पर लाखों गवन का था। यह गवन की शिकायत भी किसी ग्रामीण ने नहीं बल्कि ग्राम पंचायत सदस्य कुलदीप शर्मा ने की थी। इस शिकायत पर तीन साल जांच चली और घोटाला महज 1 रुपए का ही घोटाला निकला। जो भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति और सरकारी कार्यप्रणाली, दोनों पर सवालिया निशान खड़े करती है। 30 लाख रुपए के गबन की जांच का नतीजा सुनकर हर कोई अपनी हंसी नहीं रोक पा रहा है। बिधूना तहसील की एक ग्राम पंचायत में तीन साल तक चली भजांच की नूरा-कुश्ती” का अंत महज एक रुपए की हेराफेरी के साथ भले हो गया हो, लेकिन शिकायत कर्ता ग्राम पंचायत सदस्य कुलदीप शर्मा इस पूरी जांच पर सवालिया निशान खड़े कर रहे है। उनका कहना है कि जांच अधिकारी ने मिलीभगत करते हुए दोषियों को बचाने का काम किया है। शिकायत कर्ता अब पूरे मामले को मुख्यमंत्री के दरवार में ले जाने की बात कह रहा है। अब समझिए पूरा मामला
कहानी की शुरुआत दिसंबर 2022 में होती है। औरैया जिले के बिधूना तहसील की खानजहांपुर चिरकुआ ग्राम पंचायत के सदस्य कुलदीप शर्मा ने तत्कालीन जिलाधिकारी से एक शिकायत दर्ज कराई। जिसमें ग्राम पंचायत में हैंडपंप मरम्मत, स्ट्रीट लाइट, इंटरलॉकिंग सड़क और स्कूल के कायाकल्प जैसे कार्यों में 25 से 30 लाख रुपए के गवन का आरोप लगाया गया। 27 दिसम्बर 2022 को डीएम ने कार्यकारी अधिकारी मत्स्य पालक विकास अभिकरण व अवर अभियंता आरईडी को सौंपी। लेकिन अभिलेख न मिल पाने के कारण ये दोनों अधिकारी जांच ही नहीं कर सके। कई महीनों तक जांच शुरू न होने पर शिकायत कार्ता ने दुवारा शिकायत की, तो तत्कालीन डीएम नेहा प्रकाश ने जिला कृषि अधिकारी और अवर अभियंता आरईडी को जांच सौंप दी। दोनों अधिकारियों ने ग्राम प्रधान शकुंतला देवी को नोटिस जारी किया। नोटिस मिलने पर ग्राम प्रधान शकुंतला देवी ने अपने उत्तर में बताया कि उनके यहां सभी कार्य सही हुए हैं और कोई भी गवन नहीं हुआ है। महज नोटिस और प्रधान के उत्तर से ही यह पूरी जांच समाप्त हो गयी। शिकायत कर्ता ने मिली भगत का आरोप लगाकर पुनः जांच कराए जाने की मांग की। तब 16 मार्च 2024 को डीसी एनआरएलएम और अवर अभियंता आरईडी को जांच सौंपी गयी। महत्वपूर्ण बात यह रहीं कि इन तीनों जांचों में महज एक जांच अधिकारी बदलता था जबकि अवर अभियंता आरईडी जांच अधिकारी के रूप में तीनों जांचों में बने रहे। जिसका निष्कर्ष ये रहा कि तीसरी बार भी जांच यह कहकर समाप्त कर दी गयी कि शिकायत फर्जी है। शिकायत कर्ता ने यहां पर भी हार नहीं मानी और फिर से जांच की मांग कर दी। जिस पर 12 सितम्बर 2024 को डीएम इंद्रमणि त्रिपाठी ने पीडी डीआरडीए व अधिशासी अभियंता जल निगम को जांच सौंप दी। इस जांच में दोनों अधिकारियों ने गवन की पुष्टि की। इस जांच में बताया कि अधिक्तर कार्यो के बिल वाउचर और अभिलेखों की छाया प्रतियां उपलब्ध कराई गयीं। मूल अभिलेख व मूल वाउचर जांच के समय उपलब्ध नहीं कराए गये। संबंधित कर्मचारी और ग्राम प्रधान द्वारा अभिलेखों को बाद में संपादित कर कार्यों को मनमाने ढंग से कराते हुए सरकारी धन का दुरुपयोग किया जाना प्रतीत होता है। सोलर लाइटों के उपलब्ध कराए गये अभिलेखों की जांच व स्थलीय जांच से धनराशि का गबन किया जाना प्रतीत होता है। इसलिए ग्राम प्रधान और सचिव द्वारा अभिलेखीय प्रक्रिया का अनुपालन न करते हुए तथ्यों को छुपाने का प्रयास किया जाना व सरकारी धन का दुरूपयोग किया जाना स्पष्ट प्रतीत होता है। जांच के बाद सीज हुए थे अधिकार इस जांच आख्या पर डीएम इंद्रमणि त्रिपाठी ने ग्राम प्रधान के अधिकार सीज कर दिए और सचिव को भी निलंबित कर दिया। इस जांच के खिलाफ ग्राम प्रधान शकुंतला देवी ने उच्च न्यायालय में एक रिट दायर कर अधिकार बहाल किए जाने की मांग की। जिस पर उच्च न्यायालय ने डीएम से मामले में तीन सप्ताह के अंदर स्वयं निर्णय लेने के लिए कहा। डीएम ने इस मामले की पांचवीं बार जांच हेतु 04 जून 2025 को अधिशासी अभियंता ग्रामीण अभियंत्रण विभाग को सौंपी। अब इस जांच में चौंकाने वाला मामला सामने आया, जिसमें बताया गया कि हैंडपंप मरम्मत में महज 1 रूपए का गवन हुआ है। जांच अधिकारी ने बताया कि 59500 रूपए के स्थान पर 59501 रूपए का भुगतान ग्राम प्रधान और सचिव ने फर्म को किया है। इसके अलावा कहीं भी वित्तीय अनियमित्ता नहीं पायी गयी है। मामले में डीएम इंद्रमणि त्रिपाठी ने इस जांच के आधार पर ग्राम प्रधान के अधिकार फिर से बहाल कर दिए। जांच के बाद उठे सवाल
लखों रुपए के गवन की जांच महज 1 रुपए के गवन में पूरी होने पर कई तरह के सवाल खड़े हो गये है। लोगों का मानना है कि चौथी बार जांच करने वाले पीडी डीआरडीए व अधिशासी अभियंता जल निगम ने जो 8 पेज की जांच रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें स्थलीय निरीक्षण और बिंदुवार आख्या प्रेषित थी, तो क्या वह वह जांच फर्जी थी। इस जांच के बाद शिकायत कर्ता कुलदीप षर्मा का कहना है कि कायाकल्प व पंचायत भवन निर्माण का निर्माण एवं डस्टविन खरीद का स्टीमेट जेई ग्रामीण अभियंत्रण विभाग ने बनाया था और इन्होंने ही स्वीकृत भी किया था। ऐसे में ग्राम प्रधान व सचिव के अलावा जेई ग्रामीण अभियंत्रण विभाग भी सवालिया निषान के घेरे में थे, ऐसे में यह जांच इन्हीं के विभाग के अधिशासी अभियंता को मिली। जिनके द्वारा पूरे मामले को ही रफा दफा कर दिया गया। शिकायत कर्ता कुलदीप शर्मा का कहना है कि अगर पूर्व में जांच अधिकारी की जांच गलत थी तो प्रशासन को उन पर भी कार्रवाई करनी चाहिए। उनका कहना है कि वह पूरे मामले को लेकर मुख्यमंत्री दरबार में जायेंगे और गवन के आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाकर रहेंगे। इस संबंध में मुख्य विकास अधिकारी संत कुमार ने बताया कि जांच अधिकारी के द्वारा 1 रूपए के गवन की बात कही गयी है, इस आधार पर 1 रूपए सरकारी कोश में जमा कराकर डीपीआरओ को प्रधान के अधिकारी बहाल करने के आदेश दे दिए गये है। पिछली जांचों के बारे में नहीं पता है। बस इतना मालूम है कि किसी कारण वस जांच पूरी नहीं हो सकी थी जो अब पूरी हुई है।


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