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झांसी का रेलवे वर्कशॉप 130 साल का हुआ, मनाया उत्सव:अधिकारी-कर्मचारियों को तनख्वाह में मिलती थीं सोने की गिन्नी और चांदी की अशरफ़ी

झांसी में बना रेलवे का वैगन रिपेयर वर्कशॉप 130 साल का हो गया है। भारतीय रेल की विरासत बन चुके इस कारखाने के स्थापना वर्ष को प्रबंधन ने भव्य तौर पर मनाया। जिसमें उत्तर मध्य रेलवे के महाप्रबंधक भी शामिल हुए। ऑडिटोरियम में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य कारखाना प्रबंधक की बनाई गई डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई गई, जिसमें उन्होंने वर्कशॉप के शानदार सफर को सबसे सामने रखा। बताया कि कभी ब्रिटिश शासन में बनाए गए वर्कशॉप में काम करने वालों को गिन्नी और अशरफी वेतन के रूप में मिलती थीं। बता दें कि भारतीय रेल की धरोहर वैगन मरम्मत वर्कशॉप का निर्माण ब्रिटिश कंपनी इंडियन मिडलैंड रेलवे ने साल 1869 में की थी। झांसी के जमीदार बाबूलाल बोहरे से ली गई 84 एकड़ जमीन पर वर्कशॉप बनाने का काम पूरे 26 साल चला और 25 नवंबर 1895 में देश का सबसे बड़ा वर्कशॉप शुरू हुआ। शुरुआत में यहां स्टीम इंजन और सवारी गाड़ियों के कोच की मरम्मत का काम होता था। लेकिन, 1930 में रेलवे ने स्टीम इंजन मरम्मत का काम मुम्बई के परेल में शिफ्ट कर दिया। रेलवे का सफर आगे बढ़ा तो मालगाड़ियों की मांग भी तेजी से बढ़ने लगी। देश से लेकर विदेशों तक भारतीय रेल कोयला, गेहूं और सेंड एक्सपोर्ट करने लगी। मालगाड़ी के वैगन की संख्या बढ़ी तो वर्कशॉप ने सवारी गाड़ियों के कोच की मरम्मत का काम भी मुम्बई के माटूंगा में शिफ्ट कर यहां वैगन रिपेयर शुरू कर दिया। तब से लेकर अबतक वर्कशॉप में वैगन रिपेयर का काम होता है। वर्कशॉप ने वैगन रिपेयर करने में भी कीर्तिमान बनाए और यहां रिकॉर्ड 1000 वैगन एक महीने में मरम्मत कर भारतीय रेल की सेवा में भेजे। अपनी इन्हीं उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए रेलवे वर्कशॉप समारोह आयोजित किया है। वेतन में मिलती थीं सोने की गिन्नी-चांदी की अशरफी देश के सबसे बड़े वैगन रिपेयर वर्कशॉप का स्वर्णिम इतिहास ही नहीं रहा है बल्कि यहां नौकरी करने वाले अधिकारी और कर्मचारियों को भी वेतन के रूप में सोना चांदी मिलता था। वर्कशॉप के शुरूआती सालों में यहां 3,500 अधिकारी/कर्मचारी काम करते थे, जिन्हें वेतन में सोने की गिन्नी और चांदी की अशरफ़ी मिलती थीं। यह सिलसिला 19 साल तक चलता रहा। समय बदला भारतीय रुपए आया, फिर मुद्रा में तनख्वाह मिलने लगी। कुआ और डैम भी बनाए मुख्य कारखाना प्रबंधक अजय श्रीवास्तव ने अपनी डॉक्यूमेंट्री में बताया कि वर्कशॉप पूरा होने से पहले पानी की जरूरत पूरी करने के लिए 1889 में गरियागांव में रेलवे बांध का निर्माण कर लिया गया था। तब बांध का निर्माण मात्र 1666 रुपए में हो गया था। यहां से कारखाना के साथ ही रेलवे स्टेशन को जलापूर्ति होने लगी। साथ ही वर्कशॉप के अंदर जीवनदायनी कुआ भी खुदवाया गया, जिससे आज भी पीने का पानी आता है। वहीं, 1913 में यहां थर्मल पावर प्लांट भी लगाया गया। जिससे बिजली की आपूर्ति होती है। अब यहां सोलर पैनल भी लगाने की तैयारी है।


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