बरेली में फर्जी जीएसटी पंजीकरण का एक बड़ा मामला सामने आया है, जिसमें ‘पेपर कंपनियों’ के माध्यम से बड़े पैमाने पर जीएसटी क्रेडिट की हेराफेरी की जा रही थी। राज्य कर विभाग की जांच से यह नया ट्रेंड उजागर हुआ है, जो संगठित धोखाधड़ी की ओर इशारा करता है। इस मामले में सहायक आयुक्त (राज्य कर) अविरल मुद्गल ने बारादरी थाने में एफआईआर दर्ज कराई है। एफआईआर के बाद घोटाले की परतें खुलनी शुरू हो गई हैं। जांच के दौरान सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि कालीबाड़ी स्थित पते 107 पर ‘सलीम ट्रेडर्स’ नामक फर्म का कोई अस्तित्व नहीं था। मौके पर न कोई दुकान मिली, न कोई गोदाम, न ही कोई व्यापारिक दस्तावेज या कर्मचारी। अधिकारियों का मानना है कि यह मामला संगठित गिरोहों से जुड़ा हो सकता है। ऐसे गिरोह फर्जी कागजात के आधार पर जीएसटी पंजीकरण प्राप्त करते हैं, फिर काल्पनिक आपूर्ति दिखाकर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) पास करते हैं। इसके बाद वे लाखों रुपये का राजस्व हड़पकर फर्म को अचानक बंद कर देते हैं। इन मामलों में वास्तविक लेनदेन शून्य होता है, जबकि कागजों पर करोड़ों का कारोबार दिखाया जाता है। राज्य कर विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2021 में 2,79,18,238.30 रुपये की आपूर्ति दिखाकर 50,25,282.89 रुपये का आईटीसी पास किया गया। मई 2021 में 1,25,47,280 रुपये की आपूर्ति दिखाकर 22,58,510.40 रुपये का आईटीसी पास किया गया। कुल मिलाकर, सरकारी खजाने को 72.84 लाख रुपये का सीधा नुकसान हुआ है। जांच टीम का मानना है कि यह आंकड़ा वास्तविक धोखाधड़ी का एक छोटा हिस्सा हो सकता है। फर्म की प्रोप्राइटर के रूप में दर्ज गाजियाबाद निवासी नगमा पुत्री सलीम खान का नाम भी जांच के दायरे में है। जांच अधिकारियों को संदेह है कि नगमा को बिना जानकारी के ‘फ्रंट’ के रूप में इस्तेमाल किया गया, या फिर उन्हें किसी बड़े नेटवर्क का हिस्सा बनाकर उनके नाम का दुरुपयोग फर्जी लेनदेन में किया गया। पुलिस अब इस बात का पता लगाने में जुटी है कि नगमा का इस धोखाधड़ी से सीधा संबंध था या उनकी पहचान का दुरुपयोग किया गया था। राज्य कर विभाग की प्रारंभिक जांच से संकेत मिले हैं कि इस फर्म का जीवनकाल बहुत छोटा था, कागजों पर बड़ी मात्रा में आपूर्ति दिखाई गई थी, जबकि मौके पर कोई वास्तविक व्यापार नहीं हो रहा था।
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