उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाहुबली नेताओं की कहानियां अक्सर फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं लगतीं। ऐसी ही कहानी है, जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह और अयोध्या की गोसाईंगंज सीट से विधायक अभय सिंह की। 90 के दशक में लखनऊ यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में ये दोनों जिगरी दोस्त थे। एक-दूसरे के लिए जान छिड़कते थे। छात्र राजनीति से लेकर ठेकों की दुनिया तक साथ-साथ कदम मिलाकर चले। लेकिन, वक्त ने करवट ली और ये दोस्ती खूनी दुश्मनी में बदल गई। आज दोनों एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाते नहीं थकते। सोशल मीडिया से लेकर इंटरव्यू तक, इनकी जुबानी जंग सुर्खियां बटोर रही। आखिर कैसे कॉलेज के जिगरी दोस्त एक-दूसरे के दुश्मन बन गए? दोनों बाहुबलियों की अदावत कितनी पुरानी है? संडे बिग स्टोरी में पढ़िए… कहानी 1990 के दशक से शुरू होती है। धनंजय सिंह जौनपुर के बनसफा गांव के एक साधारण परिवार से थे। पिता बैंक में नौकरी करते थे, बेटे को पढ़ाई के लिए लखनऊ भेजा। वहीं, अभय सिंह पहले से लखनऊ यूनिवर्सिटी में थे। अभय सिंह के नाना राजकेशर सिंह जौनपुर से भाजपा के सांसद थे। इस कारण अभय सिंह का भी ताल्लुक जौनपुर से है। अभय सिंह के मुताबिक, 1992 में कर्रा कॉलेज से पढ़कर निकले धनंजय सिंह की मुलाकात पहली बार तिलकधारी सिंह कॉलेज के अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह ने कराई थी। दशहरा का दिन था। तब उन्होंने ही कहा था कि धनंजय भी लखनऊ में पढ़ने के लिए जा रहे, इनकी मदद करना। मौसी का लड़का बोलकर अभय ने धनंजय को दिलाया था हॉस्टल
अभय सिंह के मुताबिक, धनंजय का एडमिशन उनके जिगरी दोस्त पीयूष सिंह ने कराया था। पीयूष भी लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे। हालांकि, धनंजय सिंह एडमिशन की कहानी खुद बता चुके हैं। उनके मुताबिक, तब प्रवेश इंट्रेंस एग्जाम से होता था। वे प्रयागराज और लखनऊ दोनों यूनिवर्सिटी में इंट्रेंस टेस्ट में पास हुए थे, लेकिन उन्होंने प्रवेश का निर्णय लखनऊ यूनिवर्सिटी में लिया था। लखनऊ यूनिवर्सिटी में अभय सिंह, धनंजय सिंह से पढ़ाई में एक साल सीनियर हैं। वे पहले से हॉस्टल में रूम नंबर- 51 में रहते थे। उन्होंने हॉस्टल वार्डन से झूठ बोला कि धनंजय उनकी मौसी के लड़के हैं। इसके बाद धनंजय सिंह को अभय सिंह वाले हॉस्टल में नीचे का कमरा नंबर- 18 अलॉट हुआ था। कॉलेज में मशहूर थी तीनों की दोस्ती
जौनपुर के ही अरुण उपाध्याय भी लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे। छात्र राजनीति में सक्रिय थे। जौनपुर से जुड़ाव के चलते अभय और धनंजय की उनसे दोस्ती थी। अभय सिंह के मुताबिक, उनका सपना यूपीएससी क्वालीफाई करने का था। वहीं, धनंजय सिंह कहते हैं कि उनका सपने शुरू से दो ही थे, पहला फौज में जाने का और रिटायरमेंट लेकर राजनीति करने का। ये तीनों की तिकड़ी यूनिवर्सिटी कैंपस में मशहूर हो गई। मंडल आंदोलन के खिलाफ प्रदर्शनों में तीनों साथ दिखते। तब लखनऊ यूनिवर्सिटी का दबदबा पूरे प्रदेश में था। अरुण उपाध्याय महामंत्री के चुनाव की तैयारी कर रहे थे। 2002 तक उनकी दोस्ती रही। इसके बाद उनके रिश्तों में तल्खी आने लगी। 2002 में धनंजय सिंह पर बनारस में जानलेवा हमला होता है। धनंजय सिंह ने एफआईआर दर्ज कराते हुए अपने जिगरी दोस्त रहे अभय सिंह को आरोपी बनाया। दिल्ली तैयारी के लिए जा रहे अभय सिंह को क्यों धनंजय ने रोका
1994 में अभय सिंह ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली। इसके बाद वे दिल्ली यूपीएससी की तैयारी के लिए जाने वाले थे। अभय सिंह खुद एक इंटरव्यू में कहते हैं कि अरुण उपाध्याय महामंत्री का चुनाव लड़ रहे थे। जैसे ही धनंजय और पीयूष सिंह ने सुना कि मैं दिल्ली जा रहा हूं, दोनों मेरे कमरे में आ गए। दोनों रातभर मेरे पैर पकड़ कर बैठे रहे और मनाते रहे कि रुक जाओ। अरुण उपाध्याय का नामांकन और चुनाव होने तक रुक जाओ। दोनों ने सुबह 4 बजे तक सोने नहीं दिया, जबकि सुबह मेरी ट्रेन थी। आखिर में मैंने टिकट कैंसिल करा दिया। अरुण उपाध्याय के चुनाव ने मेरी जिंदगी ही बदल दी। दोनों को बाहुबली का तमगा कैसे मिला
जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह और अयोध्या के गोसाईंगंज से विधायक अभय सिंह की राजनीति में पहचान बाहुबली नेता की है। धनंजय सिंह दैनिक भास्कर के साथ इंटरव्यू में दावा करते हैं कि अभय सिंह से मिलने के बाद उनके हर केस में मैं भी मुल्जिम बनता गया। बाद में राजनीति में सक्रिय हुआ तो राजनीतिक कारणों से मुकदमा लदते चले गए। वहीं, अभय सिंह कहते हैं कि अरुण उपाध्याय के छात्र चुनाव से पहले मेरे ऊपर सिर्फ एक मारपीट का मुकदमा दर्ज हुआ था। इसके बाद सारे मुकदमे दर्ज हुए। कई मुकदमे बिना अपराध के भी दर्ज हुए। कई में धनंजय सिंह के अपराध में मुझे भी आरोपी बनाया गया। पहला 307 का अपराध अरुण उपाध्याय के चुनाव के दौरान तत्कालीन एसएसपी सूर्य कुमार शुक्ला ने दर्ज कराया था। उन्होंने यूनिवर्सिटी के पुराने छात्र नेता के गले में जूते की माला डालकर पूरे हजरतगंज में घुमाया था। इसे लेकर मेरी नाराजगी थी। मैं यूनिवर्सिटी में अरुण उपाध्याय के पक्ष में भाषण दे रहा था। तभी सूर्य कुमार शुक्ला अपनी टीम लेकर आ गए। वे एके-47 लेकर चलते थे। सिपाहियों को कमांडो वाली वर्दी पहनाते थे। उन्हें देखकर मैंने कहा कि बहादुरी दिखानी हो तो कश्मीर और पंजाब जाइए, यहां छात्र मौजूद हैं, कोई देशद्रोही नहीं। ये बात उन्हें नागवार लगी। भाषण देकर उतरा तो मेरी और उनकी कहासुनी हो गई। इसके बाद उन्होंने लाठीचार्ज करा दिया। छात्रों ने भी पथराव किया। पुलिस ने मेरे खिलाफ 307 और बलवा का प्रकरण दर्ज करा दिया। बाद में गैंगस्टर की कार्रवाई की गई। अभय सिंह एक इंटरव्यू में कहते हैं कि 307 का पहला मुकदमा दर्ज हुआ तो आंखों के सामने अंधेरा छा गया। लगा कि मेरी दुनिया ही लुट गई। कहां मैं यूपीएससी की तैयारी करने दिल्ली जाने वाला था, कहां हत्या के प्रयास का आरोपी बना दिया गया। इस केस ने मेरी जिंदगी की दिशा ही बदल दी। मुख्तार अंसारी से किसकी करीबी थी?
धनंजय सिंह कहते हैं- जब अभय सिंह 1996 में जेल में बंद थे, तो उसी जेल में मुख्तार अंसारी भी थे। वे सुबह-शाम मुख्तार अंसारी के पैर छूते थे। कई मुकदमों में मुख्तार के साथ अभय सिंह भी आरोपी हैं। इस पर अभय सिंह एक इंटरव्यू में दावा करते हैं कि मुख्तार से संबंध धनंजय के थे। वह लखनऊ हॉस्टल में ‘मुख्तार चालीसा’ गाता रहता था। अभय सिंह ने बताया कि धनंजय ने भले ही प्रवेश यूनिवर्सिटी में लिया था, लेकिन पढ़ाई-लिखाई में उसकी रुचि नहीं थी। उसके जरायम के पहले गुरु थे आजमगढ़ के वंश बहादुर सिंह। वंश बहादुर सिंह ‘लड़कों के शौकीन’ थे। ये उनकी गाड़ी चलाता था। वंश बहादुर सिंह के माध्यम से इसका परिचय बनारस के बंशी सिंह, पांचू सिंह, बीकेडी सिंह, गाजीपुर के भीम सिंह और संजय सिपाही से हो चुका था। ये सब लोग मुख्तार गैंग के थे। यह हॉस्टल में आया तो मुख्तार चालीसा शुरू कर दी। सभी लड़कों से मुख्तार के बारे में बातें और तारीफ करता। इसके बाद इन बदमाशों को हॉस्टल में रुकवाना शुरू किया। कई बार इन लोगों ने फरारी तक हॉस्टल में काटी। अभय सिंह बोले- मुख्तार के कहने पर धनंजय ने हरिशंकर से माफी मांगी थी
अभय सिंह एक इंटरव्यू में 1995 का वाकया सुनाते हुए कहते हैं- पुराना किला सदर बाजार में एक मकान है। उस पर हरिशंकर तिवारी के लोगों ने कब्जा कर रखा था। वंश बहादुर सिंह के कहने पर धनंजय उस मकान से कब्जा हटाने के लिए तैयार हो गया। उसके पास लड़कों की टीम तो थी नहीं। छात्र राजनीति के चलते हमारे पास लड़कों की टीम थी। धनंजय सिंह के कहने पर मैं छात्रों का ग्रुप लेकर पहुंचा और उस मकान से हरिशंकर तिवारी के लोगों का कब्जा हटवा दिया। तब हरिशंकर तिवारी की सूबे में तूती बोलती थी। उनके लोग बाद में भी चार गाड़ी से आए, लेकिन हम लोगों की संख्या अधिक देख उन्हें भागना पड़ा। हम लोगों के साथ ही अभिषेक भी यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे। हालांकि, बाद में उनकी हत्या हो गई। इसके जिम्मेदार भी धनंजय सिंह ही हैं। अभिषेक के घर लैंडलाइन नंबर 266130 पर मुख्तार ने जेल से फोन किया। तब धनंजय हॉस्टल से भागता हुआ अभिषेक के घर पहुंचा था। मुख्तार ने उसे निर्देश दिया कि जिस मकान पर कब्जा किया हो, उसे खाली करो और जाकर बाबा का पैर पकड़ कर माफी मांगो। धनंजय मेरे पास आया और बोला कि मुख्तार ने ऐसा कहा है। मैंने साफ मना कर दिया। इसके बाद वह बंशी सिंह, पांचू सिंह व कमलेश प्रधान साथ हरिशंकर तिवारी के पास गए। उन्हें कब्जा किए मकान की चाबी सौंपी। फिर हाथ जोड़कर माफी मांगी। पार्क रोड पर विधायक निवास हुआ करता था। कई लोग इसकी पुष्टि कर सकते हैं। अभय का दावा- धनंजय सिंह के कहने पर अपनी बैरक में मुख्तार को रहने दिया
अभय सिंह एक इंटरव्यू में कहते हैं- 1996 से मैं जेल में था। उसी दौरान एक केस में मुख्तार भी गिरफ्तार कर जेल आए। 12 बजे मुख्तार की जेल में इंट्री हुई। 7 बजे मेरे पास सूचना आई कि मुख्तार को अपनी बैरक में रहने दो, तो मैंने साफ मना कर दिया। इसके बाद धनंजय सिंह ने अपनी मौसी के लड़के सुनील सिंह को मुझसे मिलने जेल भेजा। संदेशा भिजवाया कि मुख्तार को अपनी बैरक में रहने दो। इसके बाद मैंने मुख्तार को अपनी बैरक में रहने के लिए अनुमति दी थी। मुख्तार से मेरा परिचय धनंजय सिंह की ही वजह से हुआ। 1996 में अभय गए जेल, धनंजय हुए फरार
1996 में हेमंत सिंह का मर्डर हुआ। उस समय लखनऊ में तत्कालीन एसएसपी सूर्य कुमार शुक्ला ने अभय और धनंजय दोनों को मुल्जिम बनाया। हालांकि अभय सिंह दावा करते हैं कि हम दोनों को इस केस में झूठा फंसाया गया था। 11 जनवरी 1996 में ही अभय सिंह हत्या के प्रयास मामले में दर्ज एक केस में जेल चले गए तो साढ़े 4 साल वहां में रहे। जबकि धनंजय सिंह फरवरी, 1999 तक फरार रहे। वरिष्ठ पत्रकार मनीष मिश्रा बताते हैं- 19 जुलाई, 1997 में इंदिरा नगर में रहने वाले गोपाल शरण श्रीवास्तव राजकीय निर्माण निगम में इंजीनियर थे। घर से ऑफिस जाते समय उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस मामले में धनंजय सिंह आरोपी बने और फरार हुए। इसी मामले में उन पर 50 हजार का इनाम घोषित हुआ था। तब उन्होंने मुंबई में फरारी काटी थी। अपने ही फेंक एनकाउंटर के बाद धनंजय सिंह ने जौनपुर में किया था सरेंडर
धनंजय सिंह की जिंदगी से जुड़ा एक ये भी दिलचस्प केस है। 17 अक्टूबर, 1998 में भदोही में पुलिस ने चार खूंखार अपराधियों को मार गिराया। पुलिस ने दावा किया कि मारे गए बदमाशों में 50 हजार का इनामी धनंजय सिंह भी शामिल है। इस पुलिस टीम को लीड कर रहे थे सीओ अखिलानंद मिश्रा। तब पुलिस ने कहानी बनाई थी कि धनंजय अपने साथियों के साथ पेट्रोल पंप लूटने जा रहे थे। पुलिसवालों ने धनंजय पर इनाम की राशि भी ले ली। बनारस के सारनाथ में पुलिस ने 11 जनवरी, 1999 में धनंजय के साथी रहे पांचू सिंह और बंशी सिंह का एनकाउंटर किया। इसके अगले ही महीने फरवरी, 1999 में अचानक धनंजय सिंह ने जौनपुर में दर्ज कारतूस के पुराने केस में जमानत अर्जी निरस्त कराकर हाजिर हो गए। धनंजय सिंह के इस तरह प्रकट होने के बाद पुलिस सकते में आ गई। बाद में इस फेंक एनकाउंटर में शामिल 34 पुलिसकर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ और सभी जेल में गए। 4 कारतूस का क्या था मामला, अभय का दावा- मेरे नाना ने मदद की थी
अभय सिंह एक इंटरव्यू में 4 कारतूस का पूरा मामला बताते हैं। कहते हैं- गुड्डू मुस्लिम के साथ धनंजय सिंह अपनी बाइक यूपी62-6956 के साथ जौनपुर में लूट करने गया था। दोनों ने एक ज्वेलर्स को निशाना बनाया। तभी उनकी बाइक गिर गई। अभय दावा करते हैं कि बाइक से गिरते ही धनंजय को मिर्गी का दौरा पड़ गया। बाइक की बैक लाइट टूट कर गिर गई। गुड्डू मुस्लिम इसे उठाकर भागा। कट्टा दोनों ने फेंक दिया था, लेकिन चार कारतूस धनंजय की जेब में ही रह गए थे। आगे लूट के प्रयास की सूचना पर एक महिला दरोगा ने चेकिंग लगा रखी थी। दोनों को देखा तो बाइक की लाइट भी टूटी थी। तलाशी में चार कारतूस बरामद हुआ। तो महिला दरोगा ने धनंजय को चार-पांच थप्पड़ जड़ दिए। अभय सिंह कहते हैं कि उस केस में मेरे कहने पर मेरे नाना ने इसकी मदद की थी। लूट की बजाय इस पर सिर्फ कारतूस के प्रकरण में केस दर्ज हुआ। मेरे नाना की पूरी राजनीति साफ-सुथरी थी। कभी किसी अपराधी को संरक्षण नहीं दिया, लेकिन मेरे कहने पर पहली बार धनंजय की मदद की थी। धनंजय सिंह का दावा- गुड्डू की अभय सिंह से थी दोस्ती
दैनिक भास्कर को दिए इंटरव्यू में धनंजय सिंह ने दावा किया था कि गुड्डू मुस्लिम अभी पुलिस का वांटेड है। उसके साथ मिलकर अभय सिंह ने 15 जनवरी, 1992 को जौनपुर के महराजगंज में पेट्रोल पंप पर 13 हजार की लूट की थी। गुड्डू मुस्लिम से अभय सिंह की दोस्ती थी। अभय सिंह का इसे लेकर अलग ही दावा है। उनका कहना है कि गुड्डू मुस्लिम जौनपुर का रहने वाला है। उसका मोडस आपरेंडी रहा है कि वह जहां भी किसी बड़ी वारदात में पकड़ा जाता, तो किसी बड़े परिवार के लड़के का नाम ले लेता है। जिससे वो एनकाउंटर से बच जाए। इसी तरह उसने मेरा नाम लेकर फंसाया था। लूट के तुरंत बाद गुड्डू मुस्लिम को पुलिस ने पकड़ लिया था। मैं साथ में होता तो क्या पकड़ा नहीं जाता। मुझे तो कोर्ट से वारंट आया, तब पता चला। इसी तरह बाद में गुड्डू मुस्लिम ने लखनऊ की एक वारदात में प्रतिष्ठित भार्गव परिवार के एक व्यक्ति का नाम लिया था। तब भी उसे खुद के एनकाउंटर का डर था। अभय सिंह खुद दावा करते हैं कि गुड्डू मुस्लिम की दोस्ती जेल में धनंजय सिंह से हुई थी। 1992 में धनंजय सिंह ने संघ के नेता रहे राजबली यादव के बेटे को गोली मार दी थी। इस मामले में धनंजय जेल गए थे। गुड्डू मुस्लिम पहले से जेल में था। वहीं उनकी दोस्ती हुई। बाद में धनंजय ने ही गुड्डू मुस्लिम का परिचय मुझसे कराया था। संतोष सिंह की हत्या का एक-दूसरे पर दोषारोपण
अभय सिंह के पड़ोस के गांव सरायरासी के संतोष सिंह थे। अभय सिंह उनके मर्डर का आरोप धनंजय और गुड्डू मुस्लिम पर लगाते हैं। कहते हैं- धनंजय ने संतोष को फोन कर बुलाया था। फिर कोई नशा पिला दिया था। इसके बाद शव को एक्सीडेंट दिखाने के लिए रोड पर डाल दिया था। उसकी राइफल और कार खुद रख ली थी। हालांकि, धनंजय सिंह दावा करते हैं कि स्कूल मैनेजमेंट में विरोधियों को फंसाने के मकसद से अभय सिंह ने गुड्डू मुस्लिम से कहकर संतोष सिंह की हत्या कराई थी। अभय सिंह दावा करते हैं कि लखनऊ हॉस्टल के रेनोवेशन का टेंडर निकला था। इसके टेंडर में खुद का हिस्सा नहीं होने पर उन्होंने अभिषेक सिंह को बुलाया और इंजीनियर के पास बात करने के लिए भेजा। इसके बाद अभिषेक सिंह की हत्या हो गई। धनंजय पर आरोप लगा कि जब अभय सिंह जेल में रहे तो ठेकों और टेंडर मैनेज कराने के एवज में मिलने वाली रकम अकेले रखने लगे। इसे लेकर दोनों के बीच मनमुटाव शुरू हुआ। जब संतोष सिंह की हत्या हुई तो दोनों के रिश्तों में तल्खी और बढ़ गई। जेल में हुआ विवाद, दोनों की राहें अलग हुईं
फरवरी, 1999 में धनंजय के सरेंडर करने के बाद अभय से मुलाकात जेल में हुई। वहां दोनों के बीच पुरानी घटनाओं, टेंडर की रकम और संतोष व अभिषेक के मर्डर को लेकर विवाद हुआ। वहीं से दोनों की राहें अलग हो गईं। 2000 में अभय जमानत पर बाहर निकले। जेल में उनकी मुलाकात नसीमुद्दीन सिद्दीकी से हुई थी। उनके माध्यम से अभय सिंह को बसपा से पहली बार 2002 में विधायकी का टिकट मिला। लेकिन हार गए। वहीं, धनंजय सिंह 2002 में रारी विधानसभा निर्दलीय चुनाव में उतरे और जीत गए। 2002 में धनंजय पर हुआ जानलेवा हमला, अभय बने आरोपी
4 अक्टूबर, 2002 वाराणसी के टकसाल सिनेमा के पास धनंजय सिंह के काफिले पर हमला हुआ। इसमें उनके गनर घायल हुए। इस मामले में धनंजय सिंह ने अभय सिंह, संदीप सिंह, संजय रघुवंशी, सत्येंद्र सिंह बबलू सहित 6 लोगों को नामजद किया। धनंजय सिंह कहते हैं- पहले तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि अभय ने जानलेवा हमला कराया है। क्योंकि मैंने पहले उसकी जान बचाई थी। इस मामले में पुलिस ने अभय सिंह के पिता को भी हिरासत में लिया था। तब मेरे ही कहने पर पुलिस ने उन्हें छोड़ा। क्योंकि, इस हमले में उनका कोई रोल नहीं था। मैं आज भी अभय के पिता का सम्मान करता हूं। हॉस्टल में आते-जाते रहते थे। तब से उनका सम्मान करता हूं। अभय सिंह इस हमले को लेकर दावा करते हैं- धनंजय ने झूठा केस दर्ज कराया था। धनंजय ने खुद को जिस वाहन में बैठे होने और हमला होने का जिक्र किया था, वो जेसीबी का निकला। हमले के समय तो मैं अस्पताल में भर्ती था। मेरा एक्सीडेंट हुआ था। इसका पूरा रिकॉर्ड है। इसी आधार पर मेरा नाम भी इस केस से हटा था। हालांकि, धनंजय सिंह अस्पताल भर्ती प्रकरण को झूठा कहते हैं। दावा करते हैं कि उसने बचने के लिए इस तरह का नाटक किया था। तब सूबे में बसपा की सरकार थी, वह बसपा से चुनाव लड़ चुका था। इस कारण उसकी बात सुनी जा रही थी। 2002 के बाद दोनों जिगरी दोस्तों की राह अलग हुई, तो आज भी जारी है। जब भी मौका मिलता है, एक-दूसरे पर आरोपों की बौछार करते रहते हैं। कोडीन कफ सिरप में जब धनंजय के करीबी आलोक सिंह और मनीष सिंह टाटा पकड़े गए, तब भी अभय ने कोडीन भैया कहकर तंज कसा था। एक इंटरव्यू में अभय तो यहां तक दावा करते हैं कि आलोक ही धनंजय का सेनापति और राजदार है। वही उनका मुखौटा है। वहीं धनंजय सिंह कहते हैं कि मैं तो अभय के गुनाहों की सजा भुगता। ————————- ये खबर भी पढ़ें- अखिलेश पर भड़के धनंजय, कहा- सपा सांसदों से माफी मंगवाऊंगा, कोडीन भैया कहने पर अभय सिंह को चैलेंज, दम हो तो नाम लें कफ सिरप के अंतरराष्ट्रीय अवैध कारोबार को देखते हुए मैंने CBI जांच की मांग की है। संसद में सपा सांसदों ने कफ सिरप का मुद्दा उठाते हुए झूठे तथ्य रखे। मैं इसे लेकर लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिख रहा हूं, जिसमें सपा सांसदों के झूठे तथ्य की ओर ध्यान दिलाकर सदन में उनसे माफी की मांग करूंगा। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव वन डिस्ट्रिक, वन माफिया की बात कर रहे हैं। क्या उन्हें अपना कार्यकाल याद नहीं, जब उन्होंने वन डिस्ट्रिक वन नकल माफिया पैदा कर दिया था। प्रदेश के लाखों युवाओं का भविष्य खराब कर दिया था।’ यह बात दैनिक भास्कर से विशेष इंटरव्यू में धनंजय सिंह ने कही। पढ़िए पूरा इंटरव्यू…
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