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जमीन घोटाले की जांच पर जजों में मतभेद:मामला बड़ी बेंच के लिए मुख्य न्यायाधीश को भेजा गया

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में करोड़ों रुपये की जमीन अपात्रों को बेचने और राशि हड़पने के मामले में एक विशेष अपील पर सुनवाई के दौरान दो न्यायाधीशों में मतभेद हो गया है। बहुजन निर्बल वर्ग सहकारी गृह निर्माण समिति लिमिटेड के पूर्व पदाधिकारियों से जुड़े इस मामले की जांच यूपी विजिलेंस विभाग को सौंपने के एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गई थी। मतभेद के कारण, अब यह मामला उचित पीठ के गठन के लिए मुख्य न्यायमूर्ति को संदर्भित कर दिया गया है। यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने प्रवीन सिंह बाफला द्वारा दायर विशेष अपील पर सुनवाई के बाद पारित किया। इस अपील में 20 अगस्त 2025 के एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति राजन रॉय ने एकल पीठ के आदेश पर स्थगन आदेश पारित किया, जबकि न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने एकल पीठ के आदेश को सही ठहराया। उल्लेखनीय है कि एकल पीठ ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान पाया था कि समिति के पूर्व पदाधिकारियों ने अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी अपात्र लोगों को जमीनें बेच दी थीं। एकल पीठ के कड़े रुख के बाद राज्य सरकार ने मामले में प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू की थी। बाद में, जांच की प्रगति से असंतुष्ट होकर एकल पीठ ने विवेचना विजिलेंस को सौंपने का आदेश दिया था। विशेष अपील की सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति राजन रॉय ने यह मत व्यक्त किया कि एकल पीठ ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर आदेश दिया था। इसके विपरीत, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने कहा कि एकल पीठ को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका में न्यायहित में विजिलेंस से जांच कराने का आदेश देने की शक्ति प्राप्त है।


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