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छात्रों के दम पर चला इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का प्रदर्शन:हॉस्टल छात्रों ने जुटाई चटाइयाँ और कंबल, ठंड में बीमार छात्रों के लिए साथी बने सहारा

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गुरुवार से शुरू हुए आंदोलन के बाद चार छात्रों के निलंबन को निरस्त कर दिया गया है। जिसके बाद छात्रों ने आंदोलन खत्म कर दिया। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के इस फैसले के बाद कैंपस में छात्रों के बीच खुशी का माहौल है। निलंबित छात्र चन्द्र प्रकाश ने दैनिक भास्कर से बातचीत में आंदोलन के दौरान छात्रों को हुई परेशानियों और प्रशासनिक रवैये पर गंभीर आरोप लगाए। चन्द्र प्रकाश के अनुसार पूर्व चीफ प्रॉक्टर राकेश सिंह के रवैये को लेकर वर्षों से छात्र नाराज़ थे। उन्होंने दावा किया कि प्रॉक्टर द्वारा हॉस्टलों में अनावश्यक दखल, छात्रों से अभद्र व्यवहार और दमन की घटनाएँ लगातार सामने आती थीं। उनका कहना है कि राकेश सिंह की गुंडागर्दी से पूरा कैंपस परेशान था। किसी भी छात्र को उठा लेना, गाली देना, अपमानित करना उनका चरित्र बन चुका था। उनके निलंबन से सिर्फ मुझे नहीं, बल्कि पूरे विश्वविद्यालय के छात्रों को राहत मिली है। आंदोलन के दौरान छात्रों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। चन्द्र प्रकाश ने आरोप लगाया कि धरना स्थल पर यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से आठ टैंकर पानी डलवाया गया, ताकि आंदोलन बाधित हो सके। उन्होंने बताया कि पानी भर जाने के बावजूद छात्र घुटनों तक पानी में उतरकर धरने पर बैठे रहे। पुलिस और गार्डों की तरफ से धक्का-मुक्की और महिलाओं के साथ बदसलूकी की गई, लेकिन छात्र पीछे नहीं हटे। प्रकाश ने बताया कि इस आंदोलन की खास बात यह रही कि किसी भी राजनीतिक दल से कोई फंडिंग नहीं ली गई। गद्दा बिछाने से लेकर दवाइयों, खाने-पीने और बीमार छात्रों की देखभाल तक हर इंतजाम छात्रों ने खुद मिलकर किया। यह इलाहाबाद विश्वविद्यालय का पहला ऐसा आंदोलन था, जिसमें पूरा कैंपस छात्रों ने अपने दम पर खड़ा किया। छात्रों का मानना है कि इस आंदोलन की सबसे बड़ी जीत केवल निलंबन वापस होना या प्रॉक्टर का हटाया जाना नहीं है, बल्कि यह है कि पहली बार छात्रों ने गलत नियमों के खिलाफ संगठित होकर आवाज उठाई और प्रशासन को झुकने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने कहा कि आंदोलन की ऊर्जा अब अन्य मुद्दों पर भी दिख रही है। स्कॉलरशिप और साफ पानी–टॉयलेट जैसी मूलभूत सुविधाओं को लेकर भी छात्र लामबंद हो रहे हैं। चन्द्र प्रकाश का कहना है कि “अगर तीन दिन में प्रशासन ने वादा पूरा नहीं किया, तो छात्र बिना किसी नेता के फिर से संघर्ष खड़ा कर देंगे।


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