गोरखपुर में बिजली कर्मियों ने जबरदस्त विरोध किया। प्रदेश सरकार की ओर से निजीकरण पर अभी कोई निर्णय न होने के बयान के बाद विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने साफ कहा है कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण से जुड़ी चल रही पूरी प्रक्रिया तत्काल निरस्त की जाए। समिति का कहना है कि निर्णय के अभाव में प्रक्रिया जारी रखना कर्मचारियों और व्यवस्था दोनों के लिए अनिश्चितता बढ़ा रहा है। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने ऊर्जा मंत्री अरविन्द कुमार शर्मा के विधानसभा में दिए गए वक्तव्य का हवाला देते हुए कहा कि जब निजीकरण पर अंतिम फैसला नहीं है, तो पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की तैयारी पर तुरंत विराम लगाया जाना चाहिए। इससे निगमों में कार्य का स्वस्थ माहौल बन सकेगा। एकतरफा घोषणा से बढ़ी औद्योगिक अशांति
समिति ने बताया कि 25 नवंबर 2024 को निजीकरण की एकतरफा घोषणा के बाद से बिजली कर्मचारी, संविदा कर्मी, जूनियर इंजीनियर और अभियंता लगातार आंदोलनरत हैं। इस घोषणा के चलते ऊर्जा निगमों में औद्योगिक अशांति का माहौल बना और कर्मचारियों में असंतोष गहराया। संघर्ष समिति के अनुसार निजीकरण के नाम पर ट्रांजैक्शन कंसलटेंट की नियुक्ति की गई और इस प्रक्रिया में करोड़ों रुपये खर्च किए गए। तैयार आरएफपी दस्तावेज को उप्र विद्युत नियामक आयोग ने आपत्तियों के साथ पावर कॉरपोरेशन को वापस कर दिया, जिससे पूरी प्रक्रिया की वैधता पर सवाल खड़े हुए। विवादित सेवा विस्तार पर उठे सवाल
समिति ने कहा कि निजीकरण से जुड़े मामलों में निदेशक वित्त के पद पर विवादित तरीके से तीन बार सेवा विस्तार दिया गया। अब जबकि यह स्पष्ट हो रहा है कि निजीकरण का कोई निर्णय नहीं है, तो अब तक की गई कार्यवाहियों और खर्च की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। संघर्ष समिति ने स्पष्ट किया कि आंदोलन के बावजूद उपभोक्ताओं की समस्याओं को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। बिजली आपूर्ति बाधित न हो, इसके लिए विशेष व्यवस्था की गई है ताकि आम लोगों को किसी प्रकार की परेशानी न उठानी पड़े।
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