गोरखपुर में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम में संविदा कर्मियों की तेजी से हो रही छटनी को लेकर विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने गंभीर आपत्ति जताई है। समिति का आरोप है कि निजीकरण की तैयारी के तहत 2017 के पॉवर कॉर्पोरेशन आदेश को दरकिनार करते हुए 48% तक संविदा कर्मचारियों को हटाया जा रहा है, जिससे बिजली विभाग में व्यापक नाराजगी फैल चुकी है। संघर्ष समिति ने बताया कि पॉवर कॉर्पोरेशन ने 15 मई 2017 को उपकेंद्रों के लिए नियमित और संविदा कर्मचारियों की तैनाती का स्पष्ट मानक तय किया था- शहरी उपकेंद्र पर 36 कर्मचारी और ग्रामीण उपकेंद्र पर 20 कर्मचारी। समिति का कहना है कि इस आदेश में आज तक कोई संशोधन नहीं हुआ है, फिर भी निगम शहरी उपकेंद्रों पर कर्मचारियों की संख्या 18.5 और ग्रामीण उपकेंद्रों पर 12 तक कम कर चुका है। संविदा कर्मी संकट में है रोजगार नए तैनाती आदेशों का हवाला देते हुए समिति ने कहा कि संविदा कर्मचारियों को 22% से 48% तक कम किया जा रहा है। इससे अत्यंत अल्प वेतन पर काम करने वाले हजारों कर्मचारी रोजगार के गंभीर संकट और भुखमरी की स्थिति में पहुंच रहे हैं। समिति ने बताया कि पहले मध्यांचल विद्युत वितरण निगम और लखनऊ लेसा में रिस्ट्रक्चरिंग के नाम पर हजारों संविदा कर्मियों को हटाया गया था। अब वही प्रक्रिया पूर्वांचल में लागू की जा रही है, जिससे विभाग की कार्यप्रणाली प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है। निजीकरण के विरोध में आंदोलन जारी विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों- पुष्पेंद्र सिंह, जीवेश नंदन, जितेंद्र कुमार गुप्त, सीबी उपाध्याय, प्रभुनाथ प्रसाद, संगमलाल मौर्य, इस्माइल खान, संदीप श्रीवास्तव, करुणेश त्रिपाठी, ओम गुप्ता, राजकुमार सागर, विजय बहादुर सिंह और राकेश चौरसिया ने कहा कि निजीकरण के उद्देश्य से की जा रही यह छटनी बंद न हुई तो कर्मचारी आंदोलन और तेज करेंगे। समिति ने बताया कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मचारी लगातार 372 दिनों से आंदोलनरत हैं, और गुरुवार को भी प्रदेश के सभी जिलों में व्यापक विरोध प्रदर्शन किया गया।
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