गोरखपुर के लोगों को आकाश में एक दुर्लभ और आकर्षक खगोलीय नजारा देखने का अवसर मिलेगा। कल यानी रविवार की रात मिथुन (जैमिनिड्स) उल्का वृष्टि होगी। इस दौरान आकाश में बड़ी संख्या में चमकती हुई उल्काएं दिखाई देंगी, जिन्हें आम भाषा में टूटते हुए तारे कहा जाता है। दिसंबर माह में होने वाली जैमिनिड्स उल्का वृष्टि को खगोल विज्ञान की दुनिया में वर्ष की सबसे विश्वसनीय और घनी उल्का वर्षाओं में गिना जाता है। यही वजह है कि हर साल इसका इंतजार आकाश प्रेमी बेसब्री से करते हैं। इस बार यह खगोलीय घटना वर्ष 2025 की आखिरी बड़ी प्राकृतिक घटना के रूप में देखी जाएगी। टूटते तारे असल में क्या होते हैं?
खगोलविद अमर पाल सिंह ने बताया कि आकाश में दिखाई देने वाले टूटते तारे वास्तव में तारे नहीं होते। पृथ्वी अपने अक्ष पर लगभग 23.5 डिग्री झुकी हुई है और लगातार घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा करती रहती है। इसी वार्षिक परिभ्रमण के दौरान पृथ्वी कई बार ऐसे खगोलीय पिंडों द्वारा छोड़े गए मलबे से गुजरती है, जो अपनी कक्षाओं में सूर्य का चक्कर लगाते रहते हैं। जब इस मलबे के छोटे-बड़े कण पृथ्वी के वायुमंडल में बहुत तेज़ गति से प्रवेश करते हैं, तो वायुमंडलीय घर्षण और गुरुत्वाकर्षण के कारण वे क्षण भर के लिए जल उठते हैं। यही चमकती हुई रेखाएं आकाश में दिखाई देती हैं, जिन्हें खगोल विज्ञान में उल्का कहा जाता है। इनकी गति 70 किलोमीटर प्रति सेकेंड से भी अधिक हो सकती है और अधिकतर उल्काएं 130 से 180 किलोमीटर की ऊंचाई पर ही जलकर समाप्त हो जाती हैं। जैमिनिड्स उल्का वृष्टि क्यों मानी जाती है अनोखी?
अमर पाल सिंह के अनुसार जैमिनिड्स उल्का वृष्टि को खास बनाने वाली सबसे बड़ी वजह इसका स्रोत है। आमतौर पर उल्का वर्षाएं किसी धूमकेतु से जुड़ी होती हैं, लेकिन दिसंबर में होने वाली यह उल्का वृष्टि क्षुद्रग्रह 3200 फेथॉन से संबंधित है। दुनिया की बहुत कम उल्का वर्षाएं ऐसी हैं, जिनका स्रोत धूमकेतु के बजाय कोई क्षुद्रग्रह हो, और यही तथ्य इसे और अधिक महत्वपूर्ण बनाता है। गोरखपुर में रविवार की रात्रि लगभग आठ बजे के बाद से उल्काएं दिखाई देना शुरू हो सकती हैं। हालांकि खगोलविदों के अनुसार मध्य रात्रि से भोर चार बजे तक का समय सबसे उपयुक्त रहेगा, क्योंकि इसी दौरान उल्का वृष्टि अपने चरम पर होगी और आकाश में अधिक संख्या में चमकती उल्काएं देखी जा सकेंगी। एक घंटे में कितनी उल्काएं दिखने की संभावना
मौसम अनुकूल रहने की स्थिति में गोरखपुर से प्रति घंटे लगभग 40 से 70 उल्काएं दिखाई देने का अनुमान है। हालांकि उल्काओं की वास्तविक संख्या मौसम की स्थिति, बादलों और प्रकाश प्रदूषण पर निर्भर करेगी। जैमिनिड्स उल्काएं मुख्य रूप से मिथुन (जेमिनी) तारामंडल की दिशा से आती हुई दिखाई देती हैं। खगोल विज्ञान में इस दिशा को उल्का विकीर्णक बिंदु कहा जाता है। हालांकि यह केवल एक दृष्टि भ्रम होता है, क्योंकि उल्काएं वास्तव में पृथ्वी के काफी पास, वायुमंडल में ही जलती हैं। इन्हें देखने के लिए उत्तर-पूर्व दिशा से आकाश का निरीक्षण शुरू करना बेहतर रहेगा, लेकिन उल्काएं पूरे आकाश में दिखाई दे सकती हैं। बिना किसी उपकरण के भी मिलेगा पूरा आनंद
खगोलविद ने बताया कि इस उल्का वृष्टि को देखने के लिए किसी दूरबीन, बायनोक्यूलर या विशेष उपकरण की जरूरत नहीं है। साफ़, खुले और अंधेरे स्थान से साधारण आंखों से ही इस नजारे का आनंद लिया जा सकता है। शहरों में अधिक प्रकाश प्रदूषण के कारण दृश्यता कुछ कम हो सकती है, जबकि ग्रामीण इलाकों में रहने वालों को यह दृश्य अधिक स्पष्ट और मनोहारी दिखाई देगा।
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