गोरखपुर के धार्मिक पुस्तकों के महाकुंभ गीता प्रेस में गीता जयंती के अवसर पर कथा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भगवान की कथा कहने के लिए वृंदावन से पंडित राम ज्ञान पांडेय को बुलाया गया। उन्होंने अपनी कथा के माध्यम से श्रोताओं को भगवान के प्रसंगों का वर्णन किया। गीता के श्लोकों को सुना कर उसके भावार्थ बताए और कथा प्रसंग को एक-एक करके आगे बढ़ाए। इस कार्यक्रम की शुरुआत 25 नवंबर को हुई जो 2 दिसंबर तक चलेगा। कुरुक्षेत्र में कृष्ण- अर्जुन संवाद से किया शुरुआत
पंडित राम ज्ञान पांडेय ने कथा की शुरुआत कुरुक्षेत्र में कृष्ण अर्जुन संवाद से किया। उन्होंने बताया- भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को कभी ज्ञान, कभी भक्ति, कभी कर्म का उपदेश देते हैं। उनकी बातें सुन कर अर्जुन भ्रमित हो जाते हैं और कृष्ण से कहते हैं कि प्रभु आपकी इन मिश्रित बातों को सुनकर मैं संकट में पड़ गया हूं। मैं ज्ञान, भक्ति या कर्म में किसको मानूं, मेरे लिए क्या उचित है, यह बताइए। मैं तो अपने गुरु की शिक्षा के अनुसार गीता के उपदेशों को रामायण के प्रसंगों में देखता हूं। गोस्वामी ने कहा -रामायण की आरती में कहा है- छहीं शास्त्र सब ग्रंथन्ह को इस, मतलब भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा- सब धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आ जा। भगवान ने विभीषण को शरण में आने का दिया उपदेश वहीं दूसरे प्रसंग पंडित राम ज्ञान पांडेय ने बताया- भगवान ने विभीषण को शरण में आने का उपदेश दिया। विभीषण जब भगवान की शरण में आया तो कहता है, मुझमें ज्ञान राक्षस वंश में उत्पन्न होने के बाद पाप प्रिय लगता है, जैसे उल्लू को अंधकार प्रिय है। उसमें भक्ति नहीं है, लेकिन मैंने सुना है कि आपकी शरण में जो आ जाता है, आप उसका त्याग नहीं करते, अपना लेते हैं। विश्व इसी को विभीषण शरणागति कहते हैं। मेरी सफलता में मेरा पुरुषार्थ नहीं, प्रभु की कृपा
पंडित राम ज्ञान पांडेय ने इन प्रसंगों को सुनाते हुए यह संदेश दिया कि इसी तरह हम भी प्रत्येक कार्य में अपनी विशेषता न मानकर प्रभु की कृपा को आगे रखें कि मेरी सफलता में मेरा पुरुषार्थ नहीं, प्रभु की कृपा है। तो हमारी सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है। इस कार्यक्रम में प्रमुख श्रोताओं में देवीदयाल अग्रवाल, डॉ. लालमणि तिवारी, माधव जालान और अन्य ट्रस्टी उपस्थित रहें।
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