गीडा के रुंगटा इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड में आग लगने के कारणों की जांच शुरू हो गई है। डीएम दीपक मीणा ने इसके लिए एडीएम प्रशासन के नेतृत्व में 7 सदस्यीय कमेटी गठित की है। कमेटी 7 दिनों में अपनी रिपोर्ट डीएम को देगी। रिपोर्ट के बाद यह पता चल सकेगा कि आग लगने का असल कारण क्या था।
अभी तक जो बातें सामने आ रही हैं, उसके मुताबिक मेंटीनेंस में लापरवाही ही इसके लिए सबसे बड़ा कारण है। तीन वाल्व से लीकेज की बात सामने आ रही है। चर्चा है कि मेंटीनेंस करने वाले तकनीकी रूप से दक्ष नहीं थे। यही कारण है कि हेक्सेन गैस पाइप लाइन का एक वॉल्व खुला रह गया जबकि दो वॉल्व भी ढीले थे। अगर फैक्ट्री के मालिक राजेश रूंगटा की मानें तो शॉर्ट सर्किट से यह आग लगी थी। केरल, दिल्ली व एमपी से आए तकनीकी विशेषज्ञ फैक्ट्री में 25 घंटे तक खतरा बना रहा। 22 घंटे लगातार आग जली। फायर टेंडर (दमकल गाड़ी) से लगातार पानी की बौछार मारी जा रही थी। जिससे हेक्सेन गैस का टैंक का तापमान मेंटेन रहे और किसी तरह के विस्फोट की आशंका न रहे। लेकिन आग पर काबू नहीं हो पा रहा था। इसके बाद इस प्लांट को इंस्टाल करने वाली फर्म से संपर्क किया गया। दिल्ली, केरल व मध्य प्रदेश से इंजीनियर यहां आए। कड़ी मशक्कत के बद उन्होंने वॉल्व बंद करने में कामयाबी पायी। इसके बाद गैस का रिसाव बंद हो सका और स्थिति नियंत्रण में आ सकी। जानिए विस्फोट होता तो क्या होता हेक्सेन गैस का तापमान बढ़ता तो विस्फोट की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता था। अनुमान के मुताबिक कुल मिलाकर फैक्ट्री में 75 हजार टन हेक्सेन था। ऐसे में 100 मीटर के दायरे में लोगों को नुकसान हो सकता था। यही कारण है कि आसपास की फैक्ट्रियों को भी बंद करा दिया गया था।
25 घंटे तक अनवरत पानी डालते रहे अग्निशमन विभाग के जवान आग पर काबू पाने के लिए गोरखपुर जोन के जिलों के साथ ही लखनऊ व आजमगढ़ से भी फायर टेंडर मंगाए गए थे। 25 फायर टेंडर को इसमें लगाया गया था। कुल मिलकर 300 चक्कर से अधिक लगाना पड़ा। औसतन 9 लाख किलोलीटर से अधिक पानी आग पर डाला गया है। फोम का भी इस्तेमाल किया गया लेकिन आग नहीं बुझ रही थी। अग्निशमन विभाग के जवान लगातार 25 घंटे तक मुस्तैद रहे। उन्होंने हेक्सेन गैस के चेंबर को ठंडा रखने में कामयाबी पायी। वॉल्व ठीक करने के लिए भी समय निकाला। आग बुझाने में बह रहे पानी का दोबारा भी उपयोग किया गीडा फायर स्टेशन के कर्मियों ने आग बुझाने के दौरान पानी की कमी को दूर करने के लिए एक सूझबूझ भरा कदम उठाया। आग बुझाने में बह रहे पानी को उन्होंने दो पोर्टेबल पंप के माध्यम से एकत्र कर उसका पुन: उपयोग किया, जिससे पानी की बर्बादी कम हुई और ऑपरेशन में मदद मिली।
फैक्ट्री में खली तकनीकी टीम की कमी
आग लगने और आग के बेकाबू होने में फैक्ट्री में तकनीकी कर्मियो की कमी का मामला भी सामने आ रहा है।सूत्रों की मानें तो तकनीकी टीम की मौजूदगी के बिना ही मरम्मत का काम कराया जा रहा था। जिससे वॉल्व पूरी तरह से बंद नहीं हो पाए। एक वॉल्व से हेक्सेन गैस का रिसाव हुआ। गैस रिसाव के कारण हवा से संपर्क हुआ, जिससे यह आग लगी। जब तकनीकी विशेषज्ञ आए तो स्थिति नियंत्रण में आयी। उनकी मौजूदगी में गैस को खाली कराया गया। बरती जा रही सावधानी
स्थिति अब नियंत्रण में है लेकिन अभी भी सावधानी बरती जा रही है। फैक्ट्री में भी दो फायर टेंडर खड़े हैं। फायर विभाग के कर्मी पूरी तरह से मुस्तैद हैं। फैक्ट्री के अंदर जहां आग लगी थी, वहां इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, मोबाइल फोन आदि ले जाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। विशेष रूप से टैंक की तरफ आने-जाने वाले रास्तों पर रोक लगा दी गई है। दमकल कर्मियों को अभी भी एलर्ट मोड पर रखा गया है, और वे स्थिति पर बारीकी से नज़र बनाए हुए हैं।
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