कोशला साहित्य महोत्सव के चौथे संस्करण का आज शुभारंभ हुआ। संवाद, संस्कृति और साहित्य की समृद्ध परंपरा को समर्पित यह चार दिवसीय आयोजन है, जिसमें देशभर से नामचीन लेखक, कलाकार, रंगकर्मी, पत्रकार और युवा साहित्यप्रेमी बड़ी संख्या में शामिल हुए। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। मुख्य अतिथियों में प्रतिष्ठित शिक्षाविद् डॉ. निशी पांडेय, विख्यात रंगकर्मी संदीप यादव, फिल्म निर्माता एवं उद्यमी अजय जैन और महोत्सव के संस्थापक प्रशांत कुमार सिंह उपस्थित थे। अतिथियों ने अपने संबोधन में कहा कि यह उत्सव केवल साहित्य तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज की बदलती संवेदनाओं का भी प्रतीक है। क़व्वाली की विरासत पर विचार साझा किए महोत्सव का पहला सत्र ‘क़व्वालीः दिलों का साज़’ था। इसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक पुनरुद्धार के लिए प्रसिद्ध मंजरी चतुर्वेदी ने देवांशी सेठ के साथ क़व्वाली की आध्यात्मिक शक्ति, प्रेम, भक्ति और लोगों को जोड़ने वाली इसकी विरासत पर विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि क़व्वाली दिलों के बीच की दूरियों को मिटाकर समरसता का संदेश देती है। दूसरा सत्र ‘लाइट्स, कैमरा, लखनऊ’ आयोजित हुआ। इसमें संदीप यादव, अर्चना शुक्ला, अनिल रस्तोगी और देवाशीष मिश्रा ने संवाददाता प्रतीक भारद्वाज के साथ लखनऊ की रंगमंचीय परंपरा, सिनेमा और रचनात्मक पहचान पर चर्चा की। विशेषज्ञों ने लखनऊ की सांस्कृतिक धरोहर को कला के लिए प्रेरणा स्रोत बताया। हिंदी भाषी क्षेत्रों के सामाजिक महत्व पर चर्चा की तीसरे सत्र का विषय ‘टेल्स वी कैरी’ था। इसमें अमर चित्र कथा की संपादक-इन-चीफ रीनू पुरी और लेखिका-संपादक अश्विता जयकुमार ने अर्थ अली के साथ भारतीय लोककथाओं, पौराणिक कथाओं और कहानी कहने की विकसित होती परंपरा पर अपने विचार साझा किए। वक्ताओं ने कहानियों को पीढ़ियों को जोड़ने और पहचान बनाने का माध्यम बताया। समापन सत्र में ‘द हिंदी हार्टलैंड’ सत्र आयोजित किया गया । इसमें लेखिका राजाला वहाब और नीति विचारक जयंत कृष्णा ने ज्योत्सना मोहन के साथ हिंदी भाषी क्षेत्रों के सामाजिक-राजनीतिक महत्व, सांस्कृतिक विविधता और देश की 40 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली इस क्षेत्र की भूमिका पर चर्चा की।
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