उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक असंवेदनशीलता की कड़ी आलोचना करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य अधिकारियों की एक नाबालिग अनाथ बच्चे को अनुग्रह राशि देने से इनकार करने पर गंभीर टिप्पणी की है। याची ( नाबालिग) के माता-पिता की रेलवे दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। राज्य प्राधिकारियों ने मृत्यु के “प्रमाण के अभाव” का हवाला देते हुए राहत देने से इनकार कर दिया है, जबकि केन्द्र सरकार ने पहले ही याची के दावे का सत्यापन कर अपने हिस्से की धनराशि जारी कर दी थी। हाईकोर्ट के जस्टिस अजीत कुमार एवं जस्टिस स्वरूपा चतुर्वेदी ने राज्य के आचरण को “नीति का मजाक” करार देते हुए कहा कि प्रदेश सरकार के शीर्ष अधिकारियों को केंद्र सरकार द्वारा बताए गए दस्तावेजों के आधार पर याची को भुगतान करना चाहिए था। याची आदर्जोश पांडेय उर्फ अंश कि एक नाबालिग है, उसने रेलवे दुर्घटना में मृत माता – पिता के आश्रित के रूप में सरकार द्वारा घोषित अनुग्रह राशि जारी करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारों ने पीड़ित परिवारों के लिए आर्थिक राहत की घोषणा की थी। केंद्र सरकार ने मृतकों के आश्रितों के लिए 5 लाख रुपये की राशि का प्रस्ताव रखा था और राज्य के मुख्यमंत्री ने भी इसी तरह की घोषणा की थी। कार्यवाही के दौरान, भारत संघ ने एक प्रति-शपथपत्र दायर कर पुष्टि की कि केंद्र सरकार की ओर से घोषणा के अनुसार याची को भुगतान पहले ही किया जा चुका है। हालांकि, राज्य सरकार ने बिल्कुल विरोधाभासी रुख अपनाया। खंडपीठ को बताया गया कि चूंकि माता-पिता की रेल दुर्घटना में मृत्यु होने का कोई सबूत नहीं है, इसलिए भुगतान नहीं किया जा सकता। पीठ ने इस दलील पर कड़ी आपत्ति जताई और पाया कि राज्य का यह कहना पूर्ण रूप से अस्वीकार्य है। कोर्ट कहा कि ” हमारे विचार से यह उन लोगों द्वारा नीति का मजाक उड़ाने जैसा है जो राज्य विभाग के मामलों के शीर्ष पर हैं। जब केंद्र सरकार ने दस्तावेजों के आधार पर भुगतान किया है, तो उन दस्तावेजों को राज्य सरकार द्वारा भुगतान के आधार के रूप में लिया जाना चाहिए था। ” न्यायालय ने आगे टिप्पणी की कि राज्य सरकार के अधिकारियों से ‘जिम्मेदाराना’ व्यवहार करने की अपेक्षा की जाती है। मामले की इस स्थिति को देखते हुए हाईकोर्ट ने भारत सरकार के वकील को निर्देश दिया कि वह केंद्र सरकार के जवाबी हलफनामे की एक प्रति राज्य सरकार के वकील को अदालत में ही सौंप दें। कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट जौनपुर को निर्देश दिया कि वे केंद्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे के आधार पर मामले में आवश्यक कार्रवाई करें और अनुग्रह राशि का भुगतान के लिए की गई सरकारी घोषणा के अनुसार बकाया राशि का भुगतान करें। मामले को अगली सुनवाई के लिए कोर्ट ने 6 जनवरी, 2026 को याचिका सूचीबद्ध करते हुए कहा है कि जिला मजिस्ट्रेट को अगली तारीख तक अनुपालन हलफनामा दायर करना होगा, ऐसा न करने पर उन्हें अदालत में उपस्थित रहना होगा।
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