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केंद्रीय श्रम संगठन ने श्रम संहिताओं का किया विरोध:प्रशासनिक अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा, उठाई प्रमुख मांगे

उत्तर प्रदेश के केंद्रीय श्रम संगठन ने केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई चार श्रम संहिताओं का विरोध किया है। संगठन ने इन संहिताओं को मजदूर विरोधी बताते हुए इन्हें लागू करने के लिए जारी अधिसूचना को तत्काल वापस लेने की मांग की है। इसके साथ ही, संगठन ने मजदूरों और किसानों से संबंधित अन्य प्रमुख समस्याओं पर भी सरकार का ध्यान आकर्षित किया। संगठन की प्रमुख मांगों में 21 नवंबर को जारी चारों श्रम संहिताओं को लागू करने संबंधी अधिसूचना को तत्काल वापस लेना शामिल है। इसके अतिरिक्त, 2015 के बाद से आयोजित नहीं की गई इंडियन लेबर कॉन्फ्रेंस को तुरंत बुलाने की मांग की गई। संगठन चाहता है कि इस सम्मेलन में श्रमिक प्रतिनिधियों के साथ श्रम समस्याओं पर विचार-विमर्श हो और पूर्व के सम्मेलनों की सिफारिशों को लागू किया जाए। उत्तर प्रदेश कारखाना अधिनियम में किए गए संशोधनों को वापस लेने और फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट योजना को रद्द करने की भी मांग की गई। असंगठित क्षेत्र और अन्य श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन 26,000 रुपए प्रति माह निर्धारित करने की मांग उठाई गई। संगठन ने बिजली बिल 2025 को वापस लेने और प्रीपेड स्मार्ट मीटर योजना को रद्द करने की अपील की। इसके साथ ही, योगी सरकार द्वारा घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट और किसानों को सिंचाई के लिए बिना शर्त मुफ्त बिजली देने के वादे को पूरा करने तथा फर्जी बिलों व अन्य बिजली संबंधी समस्याओं को हल करने की मांग की गई। किसानों की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद की गारंटी सुनिश्चित करने की मांग भी प्रमुखता से उठाई गई। संगठन ने बिजली सहित सभी सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण पर रोक लगाने, राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) योजना को रद्द करने और सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने की मांग की। स्कीम वर्कर्स जैसे आशा, रसोइया और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का वेतन 26,000 रुपए प्रति माह करने और उन्हें कर्मचारी का दर्जा देने की मांग भी शामिल है। मनरेगा के तहत 200 दिन के काम की गारंटी और 600 रुपए प्रतिदिन मजदूरी देने की मांग की गई।


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