गोरखपुर के गीता प्रेस में गीता जयंती के अवसर पर ‘लीला-चित्र-मंदिर’ में आयोजित कथा के अंतिम दिन कथा व्यास ने भगवान कृष्ण की ओर से अर्जुन को दिए गए उपदेश के प्रसंग का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि कृष्ण ने अर्जुन को उन कार्यों को करने के लिए उपदेश दिए जो खुद उन्होंने राम के रूप में अवतार लेकर किया। उन्होंने इस प्रसंग के माध्यम से श्रद्धालुओं को समझाया कि जो कुछ भी होना है पहले से तय से है। मनुष्य सिर्फ एक जरिया है। मोह से ग्रसित हुए अर्जुन
प्रसंग का वर्णन करते हुए कथाव्यास ने बताया कि कुरुक्षेत्र के मैदान में मोह से ग्रसित अर्जुन को भगवान कृष्ण ने गुरु के रूप में उपदेश दिया। जब अर्जुन ने कहा, महाराज! इस युद्ध का परिणाम बड़ा भयानक है। योद्धाओं की मृत्यु होगी, स्त्रियां बचेंगी, कुछ पुरुष बचेंगे। स्त्रियां दूषित होंगी, अनाचार बढ़ेगा। सृष्टि की परंपरा का उच्छेद होगा। युद्ध में मुझे विजय मिल भी गयी तो ऐश्वर्य के भोग का आनन्द तो नहीं मिलेगा। अपनों के विछोह का वियोग सताता रहेगा। रक्त से भरी हुई पृथ्वी के उपयोग का आनन्द तो नहीं मिलेगा, कष्ट सताता रहेगा। भगवान ने अर्जुन को दी दिव्य दृष्टि
कथाव्यास ने आगे बताया कि अर्जुन ने भगवान कृष्ण से कहा- मैं निर्णय नहीं कर पा रहा हूं, क्या करूँ? आप मेरे गुरु हैं, आप मुझे उपदेश दीजिए। भगवान कृष्ण ने इस प्रश्न का उत्तर वाणी से नहीं हंसी से दिया। अर्जुन की बात सुनकर वे हंस पड़े और हंसने में उत्तर था कि अर्जुन इस सृष्टि का निर्माता कौन है? इसका संचालन कौन करता है? अर्जुन ने कहा प्रभु आप ही करते हैं। तो सृष्टि का निर्माण के भगवान करते हैं तो सृष्टि की मर्यादा बिगड़ जाएगी, इसकी चिंता मुझे नहीं, तुम्हें ज्यादा है। गुरु के रूप में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि दी। जिससे अर्जुन को दिखाई दिया कि जिनसे लड़ना है, वे तो पहले ही मरे पड़े हैं। इसके बाद भगवान ने कहा- भरा तो पहले है, तुम निमित्त बनकर कार्य करो। इसके बाद अर्जुन युद्ध प्रारम्भ करते हैं। कथाव्यास ने बताया- भगवान राम ने भी गुरु की आज्ञा से ताड़का का वध किया, अहिल्या का उद्धार किया, धनुष को तोड़ा, राम के ही रूप में कृष्ण का अवतार हुआ। जो उन्होंने जिया वही उपदेश दिया।
https://ift.tt/QcWTtne
🔗 Source:
Visit Original Article
📰 Curated by:
DNI News Live

Leave a Reply