‘हम गरीब हैं… समय पर इलाज मिलता तो हम बच्चों को बचा लेते…। पहले गांव के डॉक्टर, फिर सीएचसी, फिर जिला अस्पताल, हर जगह बस टाल दिया गया। हमारे बच्चे इलाज के लिए तरस गए।’ ये कहते हुए कुशीनगर में सगे भाई दशरथ गोंड और रविंद्र गोंड फूट-फूटकर रोने लगे। उनकी बातों को सुनकर आस-पास खड़े लोगों की आंखें भी नम हो गईं। रविंद्र की दो बेटियां- खुशी (3), मंजू (7) और दशरथ के बेटे कृष (5) की बुखार से तड़पते हुए मौत हो गई। तीनों की मौत 24 घंटे के भीतर अलग-अलग अस्पतालों में हुई, लेकिन वजह एक है- इलाज में देरी। कृष की सांसें अस्पताल पहुंचने से पहले थम गईं। खुशी ने पडरौना मेडिकल कॉलेज में दम तोड़ा और मंजू की गोरखपुर में मौत हुई। उसके बाद 24 घंटे के भीतर तीन और मासूमों ने दम तोड़ दिया। सबकी जुबान पर बस एक ही सवाल है- ये कौन सा रहस्यमयी बुखार है, जो एक-एक कर बच्चों को निगल रहा है। यह रहस्यमयी बुखार नेबुआ नौरंगिया ब्लॉक के ढोलहा, पिपराखुर्द समेत 19 गांवों में फैला है। दैनिक भास्कर ने ढोलहा गांव के गुलहरिया टोला पहुंचकर बीमारी की भयावहता को जाना, पढ़िए रिपोर्ट… बुखार से हुई इन बच्चों की मौत कुशीनगर जिला मुख्यालय से नेबुआ नौरंगिया ब्लॉक करीब 10 किमी दूर है। हम ब्लॉक से करीब 8 किमी दूर ढोलहा गांव पहुंचे। पिछले एक हफ्ते में यहां छह बच्चों की बुखार से मौत हुई है। जहां कभी बच्चों की किलकारियां गूंजती थीं। अब वहां मातम, चीत्कार और दहशत का सन्नाटा पसरा है। फिलहाल, गांव में तमाम स्वास्थ्यकर्मी दवाओं के छिड़काव करने में जुटे थे। सफाईकर्मियों से सफाई करवाई जा रही है। मांओं की चीखें सुनकर जमीन पर बैठ गए
जब डीएम महेंद्र सिंह तंवर और स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव पहुंची तो कई मांएं अपने बच्चों की तस्वीरों को सीने से लगाए बिलख रही थीं। डीएम वहीं जमीन पर बैठ गए और मृतक सागर की दादी की पूरी व्यथा सुनी। एक बुजुर्ग रोते हुए बोली- बुखार आया, और दो-दो दिन डॉक्टर तक नहीं मिले… गोद में बच्चा तड़पते हुए चला गया। टीमों ने गांव-गांव जाकर जांच की
स्वास्थ्य विभाग ने 771 घरों की स्क्रीनिंग की है। बुखार से पीड़ित 60 मरीज मिले हैं। इनमें बुखार के अलावा खांसी, सर्दी जैसे लक्षण मिले हैं। 18 बच्चों में बुखार के गंभीर लक्षण मिले हैं। 7 सैंपल लैब भेजे गए हैं। रिपोर्ट में लेप्टोस्पायरोसिस (बैक्टीरियल इंफेक्शन) जैसे लक्षण मिले हैं। इसके बाद तीन शिफ्ट में डॉक्टरों की तैनाती की गई है। सीएमओ डॉ. चंद्र प्रकाश ने कहा- बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। झोलाछापों के पास जाने से स्थिति बिगड़ रही है। बुखार आते ही हॉस्पिटल जाएं। गांवों में बड़ी टीमें लगाई गई हैं। डीएम ने बताया कि लैप्टोस्पायरोसिस जानवरों के मूत्र से दूषित पानी या मिट्टी के संपर्क से फैलता है। गंदगी में खेलने, नंगे पैर चलने या घाव पर बैक्टीरिया लगने से संक्रमण तेजी से फैलता है। इलाज में देरी मतलब- जान का खतरा
संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट (SGPGI) की बाल रोग विशेषज्ञ प्रो.पियाली भट्टाचार्या ने बताया- लेप्टोस्पायरोसिस (बैक्टीरियल इंफेक्शन) ऐसी जगहों पर पनपता है, जहां नमी अधिक हो, या जानवरों के मल-मूत्र को खुले में बहाया जा रहा हो। ये छोटी उम्र के बच्चों को अधिक चपेट में लेता है। इसके लक्षण में बुखार सिर दर्द और झटके आना शामिल है। यदि बच्चे को हाई फीवर दो दिन से ज्यादा रहता है तो फौरन उसे अस्पताल ले जाएं। डॉक्टर से सलाह लेकर ब्लड जांच कराएं। उससे भी पहले तत्काल आराम के लिए बच्चे को डॉक्सी टैबलेट दे सकते हैं। जिससे वक्ती तौर पर आराम मिल जाएगा। इस बीमारी से बचने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। बच्चों के आस-पास सफाई रखना और माता-पिता का बीमारी के प्रति जागरूक रहना। ———————————- ये खबर भी पढ़िए- वृंदावन के कथावाचक इंद्रेश दूल्हा बने, बारात लेकर जयपुर रवाना:शेरवानी पहनी वृंदावन के कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय 5 दिसंबर को जयपुर में शादी करेंगे। इससे पहले वृंदावन के रमणरेती में स्थित उनके आवास पर हल्दी-संगीत और विवाह की रस्में निभाई गईं। बुधवार को दूल्हा बने इंद्रेश महाराज की घुड़चढ़ी हुई। वे बारात लेकर जयपुर रवाना हुए। इंद्रेश महाराज ने ऑफ व्हाइट कलर की शेरवानी पहनी। सिर पर पगड़ी और हाथों में चांदी की छड़ी ले रखी थी। घोड़ी पर उनके साथ उनकी भतीजी बैठी थी। बारात में हाथी-घोड़े शामिल रहे। पढ़ें पूरी खबर
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