रायबरेली जिले में किसानों के लिए सस्ती नीम कोटेड यूरिया की कालाबाजारी का बड़ा खुलासा हुआ है। जांच में सामने आया है कि इस यूरिया का इस्तेमाल प्लाईवुड फैक्ट्रियों में गोंद और केमिकल बनाने में किया जा रहा था। इस मामले में दो प्लाईवुड कंपनियों और एक यूरिया आपूर्तिकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। जिला कृषि अधिकारी अखिलेश पांडेय ने बताया कि अगस्त माह में मेसर्स एपेक्स प्लाईवुड इंडस्ट्रीज (कासिमपुर बघेल) से खाद का नमूना लिया गया था। इसे वाराणसी की फोरेंसिक लैब भेजा गया, जहां जांच रिपोर्ट में यूरिया में ‘नीम ऑयल कंटेंट’ की पुष्टि हुई। नियमानुसार, व्यवसायिक (टेक्निकल ग्रेड) यूरिया में नीम का तेल नहीं होता है। यह केवल किसानों को सब्सिडी पर दी जाने वाली यूरिया में पाया जाता है। इस पुष्टि से यह साफ हो गया कि फैक्ट्री में अवैध रूप से सरकारी खाद का उपयोग गोंद बनाने के लिए किया जा रहा था। इस घोटाले के पीछे मुख्य कारण भारी मुनाफा है। सरकार किसानों को यूरिया की एक बोरी लगभग 267 रुपए (सब्सिडी दर) में उपलब्ध कराती है, जबकि व्यवसायिक उपयोग वाली टेक्निकल ग्रेड यूरिया की कीमत 2000 रुपए से अधिक है। फैक्ट्री संचालक सस्ती खाद खरीदकर उसे महंगे टेक्निकल ग्रेड के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा था और किसानों को यूरिया की किल्लत का सामना करना पड़ रहा था। घोटाला सामने आने के बाद प्रशासन ने सख्त कार्रवाई की है। मिल एरिया थाना में एपेक्स प्लाईवुड इंडस्ट्रीज और यूरिया आपूर्तिकर्ता मेसर्स इकोलैब कैमैक्स (जयपुर) के प्रोपराइटर महिपाल सिंह शेखावत के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। इसके अतिरिक्त, सदर कोतवाली में एक दिन पहले ‘मेसर्स न्यू दुआ इंडस्ट्रीज’ और उसी राजस्थानी सप्लायर के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज कराया गया है। थाना प्रभारी अनिल कुमार सिंह ने बताया कि कृषि विभाग की तहरीर पर यह कार्रवाई की गई है। प्रशासन की इस सख्ती से कालाबाजारी करने वालों में हड़कंप मचा हुआ है।
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