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काशी में तमिल संगमम-4 का हुआ समापन:शैक्षणिक विमर्श से सांस्कृतिक संध्या का हुआ आयोजन,17 दिसंबर को काशी से जायेंगे स्टूडेंट्स

काशी तमिल संगमम् 4.0 के अंतर्गत वाराणसी में आयोजित शैक्षणिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला ने उत्तर और दक्षिण भारत की साझा सभ्यतागत विरासत को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया। इस क्रम में 15 दिसंबर को काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) तथा नमो घाट पर आयोजित कार्यक्रम विशेष आकर्षण का केंद्र रहे। वाराणसी में आज इसका समापन भी हो गया। दिव्य संबंध विषय पर हुई संगोष्ठी बीएचयू के पं. ओंकारनाथ ठाकुर सभागार में “दिव्य संबंध” विषय पर आयोजित शैक्षणिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम में तमिलनाडु एवं काशी से आए विद्वानों, कलाकारों और विद्यार्थियों की सक्रिय सहभागिता रही। कार्यक्रम का शुभारंभ महामना पं. मदन मोहन मालवीय को पुष्पांजलि अर्पित कर एवं बीएचयू कुलगीत के सस्वर गायन के साथ हुआ। स्वागत संबोधन में संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रो. राजाराम शुक्ल ने काशी तमिल संगमम् के माध्यम से उत्तर-दक्षिण भारत के सांस्कृतिक संवाद को सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया। संगीत और सांस्कृतिक पर हुई चर्चा मुख्य अतिथि प्रख्यात वायलिन वादक प्रो. वी. बालाजी ने तमिलनाडु और काशी के बीच शास्त्रीय संगीत की ऐतिहासिक यात्रा, गंगा और कावेरी के प्रतीकात्मक संगम तथा आध्यात्मिक परंपराओं की समानता पर प्रकाश डाला। प्रो. संगीता पंडित ने काशी की समृद्ध स्वर-संगीत परंपरा पर व्याख्यान दिया। लेखक अक्षत गुप्ता ने काशी को सनातन संस्कृति की भूमि बताते हुए राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया। नमो घाट पर गायन वादन की हुई प्रस्तुति सायंकाल नमो घाट स्थित मुक्ताकाशी प्रांगण में आयोजित सांस्कृतिक संध्या दर्शकों के लिए अविस्मरणीय रही। उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र प्रयागराज और दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र तंजावूर के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में भजन गायन, कथक नृत्य, तमिलनाडु के ओइलियट्टम एवं करगम लोक नृत्य सहित काशी और दक्षिण भारत की लोक प्रस्तुतियों ने समां बांध दिया। 17 दिसंबर को तमिलनाडु जायेंगे काशी से 300 स्टूडेंट्स काशी तमिल संगमम् 4.0 का औपचारिक समापन काशी में हुआ, जिसके अंतर्गत 17 दिसंबर को काशी से लगभग 300 विद्यार्थी दक्षिण भारत की सांस्कृतिक यात्रा पर प्रस्थान करेंगे। समग्र रूप से यह आयोजन भारत की साझा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को सशक्त रूप से अभिव्यक्त करता है।


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