वाराणसी में आयोजित यूरोपीय साहित्यिक उत्सव ने साहित्यिक दुनिया में नया उत्साह भर दिया। ऐतिहासिक एलिस बोनर संस्थान में आयोजित इस उत्सव का आयोजन यूरोपीय संघ राष्ट्रीय संस्कृति संस्थान द्वारा किया गया। इस अवसर पर एबीआई में कला निवास के पुनरुद्धार की 10वीं वर्षगाँठ भी मनाई गई। इस साहित्यिक शाम में फ्रांस, स्विट्जरलैंड, पोलैंड, पुर्तगाल और स्पेन के पांच समकालीन लेखक शामिल हुए। उन्होंने अंतरंग वातावरण में अपनी रचनाएँ पढ़ीं और पाठकों से सीधे संवाद किया। लेखक के होते हैं बहुत से रूप फ्रांस से आए युवा लेखक मोनोस ने अपनी साहित्यिक यात्रा और आध्यात्मिक अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि उनका लेखन मुख्यतः आध्यात्मिकता और पहचान के इर्द-गिर्द घूमता है। मोनोस ने कहा मैं यह समझना चाहता हूँ कि लोग अपनी आध्यात्मिक भावनाओं को कैसे जीते और व्यक्त करते हैं। योग, ध्यान, प्रार्थना या संवाद—इसके कई रूप हो सकते हैं। यूरोप में भारतीय लेखकों की पुस्तकें कम पहुंचती है यूरोप में भारतीय लेखकों की पुस्तकों तक पहुँच आज भी चुनौतीपूर्ण है। उदाहरण के लिए, अरुंधति रॉय की अपनी माँ पर आधारित स्मृतिशेष पुस्तक को लेकर यूरोपीय पाठकों में उत्सुकता के बावजूद इसकी उपलब्धता सीमित रही। विशेषज्ञों के अनुसार, यूरोप में अधिकांश भारतीय किताबें केवल प्रवासी लेखकों या विदेश में रहने वाले भारतीयों की होती हैं। भारत में रह रहे लेखकों की किताबें—विशेषकर क्षेत्रीय भाषाओं में लिखी गई कम ही पहुँच पाती हैं। प्रकाशन अधिकार, अनुवाद की कमी और वितरण नेटवर्क की सीमाएँ इसके मुख्य कारण हैं। कबीर के कविताओं ने मन मोहा स्पेन की रहने वाली मोनिका पिछले 1 माह से वाराणसी में है उन्होंने बताया कि काशी के विभिन्न स्थानों पर उन्होंने भ्रमण किया यहां की संस्कृति और संगीत पर वह एक किताब लिख रही है उन्होंने बताया कि कबीर के दोहे काफी पसंद आए हमने उनके स्थान पर भी भ्रमण किया काफी कुछ जानने को मिला और अब उसे पर किताब लिखकर अपने देश में पहुंचाएंगे उन्होंने बताया कि हम लोग विभिन्न स्थानों का भ्रमण करते हैं और हमारा उद्देश्य है कि दो देशों की संस्कृति सभ्यता और कल का आदान-प्रदान हो सके।
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