मार्केटिंग की एक बड़ी कंपनी है। वह भगवान बुद्ध का प्रसाद कहे जाने वाले सिद्धार्थनगर के एक जिला एक उत्पाद (ODOP) कालानमक धान की खरीद कर उसकी पैकेजिंग और बिक्री करती है। उसका प्रोडक्ट देश के प्रमुख डिपार्टमेंटल स्टोर और मॉल में बिकता है। रेट है प्रति किलोग्राम 400 रुपए। फिलहाल उसको इसके लिए 20 हजार क्विंटल की जरूरत है। गोरखपुर की एक संस्था है पीआरडीएफ। यह संस्था भी उस मार्केटिंग कंपनी से जुड़ी है। कंपनी को जरूरत के मुताबिक माल मिले इसके लिए पिछले दिनों संस्था के चेयरमैन पद्मश्री डॉक्टर आर सी चौधरी ने मृदा दिवस पर एक सार्वजनिक कार्यक्रम में घोषणा की कि जिन किसानों के पास कालानमक धान हो वह उनको बेच सकते हैं। दाम उनको सरकार द्वारा धान के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से दो गुना मिलेगा। पूर्वांचल के 11 जिलों के लिए कालानमक को मिल चुका है जीआई ये दो उदाहरण इस बात के प्रमाण हैं कि कालानमक को पूर्वांचल के 11 जिलों का जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) मिलने और साल 2018 में योगी आदित्यनाथ द्वारा इसे सिद्धार्थनगर का एक जिला एक उत्पाद घोषित करने के बाद इसके क्रेज में अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। देश दुनिया में जहां भी पूर्वांचल के लोग हैं वहां हैं कालानमक के कद्रदान देश दुनिया में जिन जगहों पर पूर्वांचल के लोग हैं उन सभी जगहों पर कालानमक चावल के कद्रदान हैं। उनको तो बस कालानमक चावल चाहिए। कीमत खास मैटर नहीं करता। इसीलिए तो बेचने वाले इसे 300 से 400 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बेच रहे हैं। पीआरडीएफ ने इसका प्रति किलोग्राम रेट 170 रुपए रखा है। अगर जैविक चावल चाहिए तो 20 फीसद अधिक देना होगा।
बुद्ध का प्रसाद माने जाने के कारण बौद्धिस्ट देशों थाईलैंड, म्यांमार, सिंगापुर आदि में इसकी खासी मांग हैं। इन देशों में कुछ कंपनियां इसकी मार्केटिंग बुद्धा राइस, बुद्धा होम और रियल होम ऑफ बुद्धा के नाम से भी कर रही है। कुपोषण के खिलाफ प्रभावी हथियार साबित होगा कालानमक उल्लेखनीय है कि चावल आम भारतीय का सबसे पसंदीदा भोजन है। नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के आंकड़ों के अनुसार देश की करीब 65 फीसद आबादी भोजन में चावल का प्रयोग करती है। चावल की इन्हीं खास प्रजातियों में से एक है, उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में पैदा होने वाला कालानमक। वैसे तो मूल रूप से यह भगवान बुद्ध से जुड़े सिद्धार्थनगर जिले का है, पर समान कृषि जलवायु क्षेत्र (एग्रो क्लाइमेट जोन) वाले पूर्वांचल के 11 जिलों (गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर और गोंडा) के लिए इसे जीआई प्राप्त है। इन जिलों की कृषि जलवायु एक जैसी है। लिहाजा इस पूरे क्षेत्र में पैदा होने वाले कालानमक की खूबियां समान होंगी। इनमें से बहराइच एवं सिद्धार्थनगर नीति आयोग द्वारा विभिन्न मानकों पर चयनित आकांक्षात्मक जिलों की सूची में शामिल हैं। खूबियों के लिहाज से दुनियां का श्रेठतम चावल है कालानमक खुश्बू, स्वाद एवं पौष्टिकता के लिहाजा से आप कालानमक चावल को दुनिया का श्रेष्ठतम चावल कह सकते हैं। कालानमक की इन खूबियों का लाभ, खाने में जिनको चावल पसंद है उन तक ही सीमित न रहे बल्कि प्रसंस्करण से तैयार उत्पादों के जरिए इनका लाभ बाकी लोगों को भी मिले, कालानमक को एक बड़ा बाजार मिले। बढ़ी मांग के अनुसार किसान इसके अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित हों। फसल का वाजिब दाम मिले और किसान खुशहाल हों, इसके लिए अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र (इरी) वाराणसी, अपेडा (एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्टस एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथारिटी) के सहयोग से काम कर रहा है। अब तो कालानमक धान से पास्ता, बिस्किट, आइसक्रीम, ब्रेड, कुकीज के रूप में प्रसंस्कृत करने पर शोध कार्य चल रहा है। इन उत्पादों को और अधिक पौष्टिक बनाने के लिए आयरन एवं प्रोटीन से भरपूर मणिपुर एवं चंदौली के काला चावल एवं मूसली से भी पोषक तत्व लिए जा रहे हैं। देश में कुपोषण की स्थिति और कालानमक की उपयोगिता दरअसल, देश की जनसंख्या के बड़े हिस्से में आयरन, फॉलिक एसिड और विटामिन बी12 जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी है। आंकड़ों के मुताबिक देश में छह माह से पांच वर्ष तक 59 फीसद बच्चे, 15 से 60 साल की 53 फीसद महिलाएं और इसी आयुवर्ग के 22 फीसद पुरुषों में आयरन एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी है।
चावल और इसके प्रसंस्करण से तैयार उत्पादों को जरूरी पोषक तत्वों से फोर्टिफाइड कर कुपोषण की इस समस्या का स्थाई रूप से हल निकाला जा सकता है। इरी यही काम कर रहा है। इसके साथ ही अलग-अलग जगहों पर पैदा होने वाले कालानमक चावल में स्वाद, सुंगध, पोषक तत्वों में कौन सी प्रजाति सबसे बेहतर है, इस पर भी शोध संस्थाएं खासकर इरी काम कर रही है। अब तक करीब दर्जन भर प्रजातियों के नमूने ही अपेक्षा के अनुरूप निकले हैं। खुश्बू के लिहाज से सिद्धार्थनगर का कालानमक सबसे बेहतर है। इससे जो भी प्रसंस्कृत उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं, उनमें सबसे बेहतरीन चावल का ही प्रयोग किया जा रहा है। काला नमक में मिलने वाले पोषक तत्व उल्लेखनीय है कि कालानमक चावल में परंपरागत चावल की किस्मों की तुलना में जिंक एवं आयरन अधिक होता है। जिंक दिमाग के लिए जरूरी है। रही आयरन की बात तो इसकी कमी की वजह से होने वाली एनीमिया (रक्तअल्पता) हिंदुस्तानियों, खासकर किशोरियों एवं महिलाओं में आम है। कालानमक चावल का ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी तुलनात्मक रूप से कम होता है। लिहाजा यह शुगर के रोगियों के लिए भी कुछ हद तक मुफीद है। बुद्ध का प्रसाद माना जाता है कालानमक चावल कालानमक का इतिहास करीब तीन हजार साल पुराना है। इसे भगवान बुद्ध का प्रसाद माना जाता है। इसकी तमाम खूबियों के ही नाते योगी सरकार-1 में शुरू की गई फ्लैगशिप योजना में इसे सिद्धार्थनगर का ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) घोषित किया गया। इसके बाद खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसकी ब्रांडिंग में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इसी क्रम में कपिलवतु में कालानमक चावल महोत्सव भी आयोजित किया गया है। एक ही छत के नीचे सारी आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराने के लिए वहां कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) का निर्माण कराया गया। अब तक चावल के लिए काला नमक धान की कुटाई परंपरागत पुरानी मशीनों से होता था। अधिक टूट निकलने से दाने एक रूप नहीं होते थे। भंडारण एवं पैकेजिंग एक बड़ी समस्या थी। सीएफसी में हर चीज की अलग व्यवस्था है। पहले धान को स्टोनर मशीन से गुजारा जाता। इससे इसमें कंकड़-पत्थर अलग हो जाता। धान से भूसी अलग करने और पॉलिशिंग की मशीनें अलग-अलग होती है। असमान दानों के लिए शॉर्टेक्स मशीन होती है। उत्पादक की मांग के अनुसार पैकिंग की भी व्यवस्था है। धान के भंडारण के लिए सामान्य और तैयार चावल को लंबे समय तक इसकी खूबियों को बनाए रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था होती है। फिलहाल प्रोसेसिंग के लिए भरपूर चावल नही मिलने से पिछले साल से इस सीएफसी पर स्थानीय प्रजाति के अन्य धानों की भी प्रोसेसिंग की जा रही है।
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