मुस्लिम समाज में झूठी और गैर–शरई क़समें खाने की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर जमीयत दावतुल मुस्लिमीन के संरक्षक और प्रसिद्ध देवबंदी उलेमा मौलाना कारी इसहाक गोरा ने तीखी नाराजगी जताई है। वीडियो जारी करते हुए उन्होंने कहा कि आज मुसलमान “मां की क़सम”, “औलाद की क़सम”, “तेरी कसम”, “बहन की कसम” जैसी बातें इतनी आसानी से बोल देते हैं मानो यह कोई मजाक हो। उन्होंने इसे इस्लाम की बुनियादी तालीमात के खिलाफ एक खतरनाक और फैलती हुई बीमारी बताया। मौलाना कारी इसहाक गोरा ने कहा कि कसम इबादत का हिस्सा है और इबादत सिर्फ अल्लाह के लिए होती है, लेकिन लोग आज किसी भी रिश्ते, किसी बुज़ुर्ग, यहां तक कि पीर–फक़ीर के नाम पर भी कसम खाने लगे हैं। उन्होंने कहा, “यह आदत सीधे तौर पर शिर्क की तरफ़ ले जाने वाली है।” उन्होंने सही हदीस का हवाला देते हुए पैग़म्बर मोहम्मद का कथन दोहराया–“जिसने अल्लाह के अलावा किसी और की क़सम खाई, उसने कुफ़्र या शिर्क किया।” उलेमा ने चेतावनी दी कि झूठी कसमें सिर्फ गुनाह नहीं हैं बल्कि समाज में भरोसे और ईमानदारी की बुनियाद को भी नष्ट करती जा रही हैं। उन्होंने कहा कि कारोबार, झगड़ों और रिश्तों में लोग झूठी क़समें खाकर न सिर्फ गुनाह का दरवाज़ा खोल रहे हैं बल्कि अपनी रोज़ी–रोटी को भी नापाक कर रहे हैं। उनका कहना था कि लोग कसम को इतना हल्का ले चुके हैं कि बच्चे तक हर बात पर क़सम खा रहे हैं, जबकि इस्लाम का साफ हुक्म है कि जिसे कसम खानी हो, वह सिर्फ़ अल्लाह की क़सम खाए; वरना चुप रहे। मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने कहा कि आज का समाज झूठी कसमें खाकर खुद अपनी सच्चाई को मार रहा है। उन्होंने कहा कि जब इंसान अल्लाह की महानता को भूला देता है, तभी वह किसी और के नाम पर कसम खाकर अपनी जबान को नापाक करता है। उन्होंने मुस्लिम समाज से अपील की कि घरों में तालीमी माहौल बनाएं, बच्चों को सही इस्लामी तालीम दें और यह बात आम करें कि क़सम सिर्फ़ और सिर्फ अल्लाह के नाम की होती है। उन्होंने कहा कि जब दीन की समझ घरों में लौटेगी तो जुबान भी सच और पाकीजगी की तरफ लौट आएगी।
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