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कानपुर में मिल रही 1 लाख की ‘कश्मीरी कानी साड़ी’:मुगल बेगमों की पसंदीदा, 6 महीने में तैयार होती; मोतीझील में नेशनल हैंडलूम एक्सपो लगा

मुगल रानियों और बेगमों को सबसे ज्यादा पसंद आने वाली कश्मीर की मशहूर ‘कानी साड़ी’ इन दिनों कानपुर में हर खास और आम के लिए मौजूद है। कानपुर के मोतीझील लॉन में नेशनल हैंडलूम एक्सपो लगाया गया है। जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से कारीगर आए हैं। कश्मीर की ‘कानी साड़ी’ इसलिए चर्चा में है, क्योंकि इसकी कीमत एक लाख रुपए है। जम्मू-कश्मीर से आए कारीगर ने गांधी बुनकर मेला 2025-26 में अपना स्टॉल लगाया है और इस विशेष साड़ी की बिक्री की जा रही है। भारत सरकार की ओर से लगाए गए इस मेले में हैंडमेड कारीगरी की विभिन्न दुकानें लगी हैं, जो आकर्षण का केंद्र बनी हैं। विशेष पेड़ों की लकड़ी से बनती है ‘कानी साड़ी’ कश्मीर की कानी साड़ी भारत की प्राचीन कला का उदाहरण मानी जाती है। इस साड़ी को तैयार करने के लिए विशेष तरह के पेड़ों की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। इसे कनी बोला जाता है, जिसे धागों की मदद से सीधे कपड़े के साथ बुना जाता है। कश्मीर से आए जुनैद ने बताया कि पूरी साड़ी को कारीगर हाथ से ही तैयार करते हैं और इसमें किसी मशीन का इस्तेमाल नहीं होता। एक साड़ी तैयार होने में 6 महीने का समय लग जाता है, जिसके बाद यह साड़ी बनकर तैयार होती है। इसमें 60-70 हजार रुपए की लागत आती है। जिसके बाद इसकी कीमत 1 लाख रुपए तय की गई है। बुजुर्ग समुद्री सीप से बनाती हैं झालर हैंडलूम एक्सपो में कन्याकुमारी से आई 60 वर्षीय मुत्तू लक्ष्मी ने भी दुकान लगाई है। उनके पास विभिन्न सजावटी चीजें हैं, जो घर के आकर्षण को और ज्यादा बढ़ा सकती हैं। मुत्तू लक्ष्मी इन सारी चीजों को अपने हाथ से ही तैयार करती हैं और फिर स्टॉल पर बेचती हैं। उन्होंने बताया कि समुद्र से निकलने वाली सीप और अन्य समुद्री चीजों का इस्तेमाल करके वह झालर तैयार करती हैं। एक झालर तैयार करने में उन्हें दो से तीन दिन का समय लग जाता है। इसकी कीमत 80 रुपए से लेकर 1100 रुपए तक है। सभी झालरों की विशेषता अलग-अलग है। ऑर्डर पर तैयार होती है 2 लाख वाली साड़ी वाराणसी से मेले में आए कारीगर मोहम्मद सोहासीन ने बताया कि उनके पास स्टॉल में 15000 रुपए तक की बनारसी साड़ी मौजूद है। वहीं उनके पास 2 लाख रुपए तक की साड़ियां भी हैं, जो ऑर्डर देने पर तैयार की जाती हैं। यह साड़ियां तैयार करने में तीन महीने का समय लगता है। मेले में आने वाले लोगों अगर डिजाइन पसंद करते हैं और ऑर्डर देते हैं, तो उनके पसंदीदा रंग और डिजाइन वाली बनारसी साड़ी तैयार कर दी जाएगी। ऑर्डर देने के लिए 10 प्रतिशत राशि पहले जमा करनी होगी। जिसके बाद 15 दिन के अंदर साड़ी तैयार करके पहुंचा दी जाएगी। कारीगर ने बताया कि ऑनलाइन डिलीवरी की व्यवस्था भी है। राजस्थानी मेटल हैंडीक्राफ्ट भी हैं आकर्षण
एक्सपो में राजस्थानी स्टॉल भी लगाया गया है, जिसमें हाथों से तैयार किए गए हैंडीक्राफ्ट आइटम सजाए गए हैं। इनकी कीमत 450 से लेकर 1400 रुपए तक है। यह आइटम घर के ड्राइंग रूम और अन्य जगहों पर सजाने के लिए तैयार किए गए हैं। जोधपुर से आए कारीगर पूसा राम ने बताया कि वह लगभग दो दशक से यह हैंडीक्राफ्ट आइटम तैयार कर रहे हें। हर साल वह एक्सपो में आते हैं और स्टॉल लगाते हैं। उन्होंने बताया कि हर साल मेले में हाथों से तैयार होने वाले इन आइटमों की काफी मांग बनी रहती है। 10 राज्यों के कारीगरों ने लगाए 95 स्टॉल
गांधी बुनकर मेला 2025-26 के प्रभारी अनिल मौर्य ने बताया कि भारत सरकार की योजना के तहत कारीगरों को आगे बढ़ाने के लिए यह मेला लगाया गया है। 3 दिसंबर से शुरू हुआ मेला 16 दिसंबर तक जारी रहेगा। इस मेले में देश भर के 10 राज्यों से कारीगर आए हैं और 95 स्टॉल्स लगाए गए हैं। उन्होंने बताया कि मेले में सभी कारीगरों के लिए फ्री स्टॉल्स की व्यवस्था की जाती है। किसी भी कारीगर से रुपए नहीं लिए जाते हैं। कई कारीगरों के आने जाने का भी पूरा खर्चा विभाग की ओर से ही दिया जाता है। हर साल इस मेले के लिए सरकार की ओर से बजट भी जारी किया जाता है।


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