नौबस्ता के न्यू आज़ाद नगर में रहने वाले 75 वर्षीय संतोष कुमार द्विवेदी और उनकी पत्नी के लिए सात वर्ष बाद फिर से अपने घर की दहलीज में दाखिला मिला है। पारिवारिक तनाव और बढ़ती प्रताड़ना के बीच उनके पुत्र और पुत्रवधू ने उन्हें साल 2018 में घर से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया था। बुजुर्ग दंपती रिश्तेदारों और किराये के कमरों में रहकर अपनी गुजर बसर कर रहे थे। डीएम जितेंद्र प्रताप सिंह की अदालत में सुनवाई के दौरान डीएम ने उनकी गुहार सुनी गई और उन्हें दोबारा घर में दाखिल कराया। जीवन भर की कमाई से बनाया था घर
दंपती का आरोप था कि पुत्र और पुत्रवधू ने उनसे बेरुख़ी भरा व्यवहार किया और साल 2018 में उन्हें घर से निकलने पर मजबूर कर दिया। यह वही मकान था जिसे उन्होंने उम्रभर की कमाई से बनाया था। लेकिन पारिवारिक परिस्थितियां बिगड़ने पर 2018 से ही उन्हें अपनी ही दहलीज़ छोड़कर अलग-अलग स्थानों पर आश्रय लेना पड़ा। कानूनी लड़ाई कई वर्षों तक निचली अदालतों में चली और बाद में उच्च न्यायालय ने जिला मजिस्ट्रेट को मामले की सुनवाई कर निर्णय देने का निर्देश दिया। डीएम कोर्ट ने की सुनवाई
इस मामले में डीएम कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर देते हुए अभिलेखों की विस्तृत जांच की। रिकॉर्ड के अनुसार भवन संख्या 73 न्यू आज़ाद नगर का 100 वर्गगज हिस्सा संतोष द्विवेदी के स्वामित्व में है, जिसकी पुष्टि 2017 के दानपत्र से होती है। मकान के भूतल पर दो कमरे, रसोईघर और शौचालय उपलब्ध पाए गए। डीएम ने आदेश में कहा कि माता–पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण–पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बुजुर्गों को उनकी संपत्ति और निवास से वंचित न किया जाए। वरिष्ठ नागरिक को सुरक्षित और शांतिपूर्ण निवास का अधिकार कानून की मूल भावना है। इसी आधार पर आदेश दिया कि वादी को निवास दिलाया जाए। चकेरी पुलिस को दिए थे निर्देश चकेरी थाना प्रभारी को निर्देश दिया गया कि वे तत्काल प्रभाव से दंपती को उनके हिस्से के आवास में प्रवेश कराएं। आदेश में स्पष्ट किया गया कि सिविल कोर्ट में लंबित अन्य पारिवारिक वाद अपने स्तर पर चलते रहेंगे, परंतु वृद्धजन को उनकी छत से वंचित नहीं किया जा सकता।
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