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कथाओं में चटख हो रहा सीताराम विवाह का उल्लास:दशरथ महल में जगदगुरु रत्नेश बोले-जीवन की पूर्णता ज्ञान, प्रेम, शक्ति और विवेक के संतुलन में

सीताराम विवाह उत्सव पर दशरथ महल में श्रीरामकथा के व्यास पीठ से जगदगुरु रत्नेश प्रपन्नाचार्य ने कहा कि भगवान शिव और माता पार्वती का चरित्र भारतीय संस्कृति में केवल पौराणिक कथा नहीं है। यह संतुलित जीवन का सार्वकालिक आदर्श है। शिव तप, वैराग्य, सत्य और निष्काम कर्म के प्रतीक हैं, जबकि पार्वती समर्पण, भक्ति, करुणा और शक्ति का प्रतिरूप। दोनों का संग यह सत्य प्रतिपादित करता है कि जीवन की पूर्णता ज्ञान और प्रेम, शक्ति और विवेक के संतुलन में निहित है। उन्होंने कहा कि पुराणों के अनुसार पार्वती सती का पुनर्जन्म हैं। सती के शरीर त्याग के बाद शिव तप में लीन हो गए और सृष्टि–चक्र विचलित हो गया। इसी असंतुलन को दूर करने के लिए शक्ति ने पार्वती रूप में अवतार लिया, ताकि शिव पुनः गृहस्थ धर्म में प्रवृत्त हों और सृष्टि, पालन व धर्म की व्यवस्था पुनः सुचारु हो सके। शिव–पार्वती विवाह तप और भक्ति, चेतना और शक्ति के अनन्त समन्वय का प्रतीक है। यह चरित्र समाज को संदेश देता है कि शक्ति बिना विवेक और विवेक बिना करुणा अधूरी है। आज की जीवन–परिस्थितियों में भी यही सीख प्रासंगिक है कि शक्ति और त्याग, प्रेम और सदाचार — मिलकर ही जीवन को सफल और समृद्ध बनाते हैं। इससे पहले दशरथ महल के महंत विंदुगद्याचार्य देवेंद्र प्रसाचार्य और आचार्य पीठ का पूजन करते अर्जुन द्वाराचार्य जगदगुरु कृपालु रामभूषण देावाचार्य ने व्यास पीठ का पूजन किया। संसार के मोह से दूर होकर आत्म कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ता जाता-महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य इस अवसर पर दशरथ महल के महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य ने कहा कि रामकथा जीवन के मलीन पक्ष को धोकर साफ कर देती है। इसके बाद पवित्र आत्मा भगवान श्रीराम के कृपा का पात्र बनने लगती है। जिसने एक बार भी श्रीराम के नाम,रूप,लीला और धाम के रस का पान कर लिया वह संसार के मोह से दूर होकर आत्म कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ता जाता है।


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