अब ऊसर जमीन पर भी खेती हो सकेगी। गेंहू व सरसों की फसल ऊसर जमीन पर लहलहाने के साथ साथ बेहतर पैदावार भी देंगी। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के वैज्ञानिकों ने ऊसरीली दशा में सिंचित समय से बुवाई हेतु गेहूं की नई प्रजातियां विकसित की हैं। मंगलवार को लखनऊ कृषि भवन में हुई राज्य बीज विमोचन समिति की बैठक में सीएसए की तीन प्रजातियों को हरी झंडी दिखा दी गई। प्रजातियां विकसित करने में डॉ.आर के यादव, डॉ. सोमवीर सिंह, डॉ. पीके गुप्ता, डॉ. विजय कुमार यादव, ज्योत्सना की भूमिका रही है। सीएसए के कुलपति व कमिश्रर के विजयेंद्र पांडियन ने प्रजातियों को विकसित करने वाले सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी है। कीटों के हमले का प्रभाव कम सीएसए के निदेशक शोध डॉ आरके यादव ने बताया कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने गेहूं की के-1910 एवं के-1905 को विकसित किया है। यह प्रजातियां उसर भूमियों में बढ़िया पैदावार देती हैं। इसके अलावा भूरा, पीला व काला रस्ट के प्रति अवरोधी है। इसमें कीटों के हमले का प्रभाव कम पड़ता है।ये प्रजातियां 125 से 130 दिन में पक कर तैयार हो जाती है और एक हेक्टेयर जमीन में औसत 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है। तापमान ज्यादा होने का प्रभाव नहीं इसके अलावा वैज्ञानिक डॉ. महक सिंह ने सरसों की आजाद गौरव प्रजाति को विकसित किया है। बताया कि इसके पौधों पर तापमान ज्यादा होने का प्रभाव नहीं पड़ता है। विलम्ब से बुवाई हेतु पूरे उत्तर प्रदेश हेतु संस्तुत है। डॉ. सिंह ने बताया कि यह प्रजाति 120 से 125 दिन में तैयार होती है और औसत 18 से 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है। यह रोग अवरोधी है। कीटों का काम प्रभाव पड़ता है। इसके दाने का आकार बड़ा है। इसमें तेल का प्रतिशत 39.6 प्रतिशत है।
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