इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 38 साल पुराने हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे 82 वर्षीय बुजुर्ग को बरी कर दिया है। यह निर्णय न्यायमूर्ति जेजे मुनीर एवं न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने ओंकार की अपील पर दिया है। बुलंदशहर के अहमदगढ़ थानाक्षेत्र स्थित सतबारा गांव में 10 फरवरी 1985 की रात रामजी लाल के घर में विजेंद्र (वीरेंद्र), ओंकार और अजब सिंह उर्फ बाली घुस गए। इसके बाद ओंकार और बाली ने रामजी लाल के भतीजे राजेंद्र को पकड़ लिया। वीरेंद्र ने कट्टे से राजेंद्र को गोली मार दी, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई।
ट्रायल कोर्ट ने दो दिसंबर 1987 को वीरेंद्र, ओंकार व अजब सिंह उर्फ बाली को हत्या का दोषी ठहराया और सभी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हाईकोर्ट में अपील पर सुनवाई के दौरान अभियुक्त वीरेंद्र और अजब सिंह उर्फ बाली की मृत्यु हो गई। इसलिए केवल ओंकार की अपील पर सुनवाई की गई। कोर्ट ने पाया कि घटना रात की थी और प्राथमिकी सुबह दर्ज कराई गई। इस देरी का कोई उचित कारण नहीं बताया गया। घटना के गवाह परिवार के सदस्य हैं और उनके बयान में विरोधाभास थे। इस पर कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपना मामला साबित करने में विफल रहा है। कोर्ट ने ओंकार के खिलाफ ट्रायल कोर्ट के फैसले एवं सजा रद्द कर दी और उन्हें बरी कर दिया।
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