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आठ महीनों में 39 नवजातों को मिला नया जीवन:बहराइच में सी- पैप सुविधा बनी जीवनदायिनी, डॉक्टर बोले- 60 प्रतिशत रेफर होकर आए

शांति देवी के नवजात शिशु को जन्म के तुरंत बाद सांस लेने में गंभीर परेशानी हुई और वह रोया नहीं। शिशु की गंभीर स्थिति को देखते हुए चिकित्सकों ने उसे तत्काल मोतीपुर सीएचसी से जिला महिला विंग स्थित एसएनसीयू (स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट) रेफर कर दिया। एसएनसीयू पहुंचते ही डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की टीम ने बिना देरी किए सी-पैप मशीन के माध्यम से नियंत्रित दबाव के साथ ऑक्सीजन देना शुरू किया। इस त्वरित उपचार के परिणामस्वरूप कुछ ही समय में शिशु की सांसें स्थिर हो गईं और उसकी जान बच गई। मामला नवजातों के लिए सी-पैप सुविधा की जीवनरक्षक भूमिका को दर्शाता है। पिछले आठ महीनों में इस सुविधा के माध्यम से 39 नवजातों को नया जीवन मिला है। हालांकि, नवजात श्वसन संकट अभी भी एक बड़ी चुनौती है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफॉर्मेशन (एनसीबीआई) के अनुसार, देश में अस्पताल-आधारित अध्ययनों में श्वसन संकट से पीड़ित नवजातों में मृत्यु दर 30 से 40 प्रतिशत तक दर्ज की गई है। मेडिकल कॉलेज की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शिवांगी ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान जागरूकता की कमी इस स्थिति का एक प्रमुख कारण है। उनके अनुसार, एनीमिया, उच्च रक्तचाप, संक्रमण, बढ़ा हुआ शुगर और समय से पहले प्रसव इसके मुख्य जोखिम कारक हैं। डॉ. शिवांगी ने सलाह दी कि गर्भ ठहरते ही पंजीकरण, नियमित जांच, आयरन-कैल्शियम का सेवन और समय पर उपचार से इस खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है। एसएनसीयू इंचार्ज डॉ. असद अली बताते हैं बीते आठ महीनों में सी-पैप सुविधा की मदद से साँस लेने में परेशानी वाले 39 नवजात स्वस्थ हुए हैं। इनमें से लगभग 40 प्रतिशत नवजात जिला महिला विंग में जन्मे थे, जबकि करीब 60 प्रतिशत अन्य स्वास्थ्य केंद्रों से रेफर होकर आए थे।
पहले ऐसे मामलों में बच्चों को लखनऊ रेफर करना पड़ता था, जहाँ पहुँचने में तीन से चार घंटे का विलंब कई बार जानलेवा साबित होती थी, लेकिन अब जिले में ही समय पर उपचार संभव हो पा रहा है। सीएमओ डॉ. संजय कुमार के अनुसार जिले में नवजात और मातृ स्वास्थ्य के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। कैसरगंज सीएचसी में एसएनसीयू स्थापना के साथ वीएचएसएनडी और पीएमएसएमए के जरिए गर्भवती महिलाओं की नियमित जांच, जोखिम की पहचान और समय पर इलाज किया जा रहा है। हालांकि, तकनीकी सुविधाओं के साथ-साथ सामुदायिक जागरूकता को और मजबूत करने की आवश्यकता है।


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