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आगरा कॉलेज के पूर्व प्राचार्य पर मुकदमा:कोर्ट के आदेश के बाद थाना लोहामंडी में दर्ज हुआ मुकदमा, जांच शुरू

आगरा कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. अनुराग शुक्ला खिलाफ कोर्ट के आदेश पर थाना लोहामंडी में मुकदमा दर्ज हो गया है। वर्तमान प्राचार्य ने कोर्ट में डॉ. शुक्ला के खिलाफ शिकायत की थी। पुलिस आरोपों की जांच कर रही है। प्राचार्य डॉ. सीके गौतम ने पूर्व प्राचार्य डॉ.अनुराग शुक्ला पर महत्वपूर्ण फाइलें, दस्तावेज, अलमारियों की चाबियां और प्राचार्य निवास का प्रभार अवैध रूप से रोके रखने का गंभीर आरोप लगाते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया था। डॉ.सीके गौतम का आरोप है कि वर्ष 2021 में डॉ. अनुराग शुक्ला ने प्राचार्य का कार्यभार ग्रहण किया था, लेकिन चयन आयोग ने आरोपों के चलते उनका चयन शून्य घोषित कर दिया था। इसके बाद 29 नवंबर 2024 को निदेशक द्वारा उन्हें पदमुक्त करने की संस्तुति की गई। कॉलेज प्रबंधन ने वरिष्ठता के आधार पर पहले डॉ. आरके श्रीवास्तव को कार्यवाहक प्राचार्य नियुक्त किया। बाद में 21 मार्च 2025 को चयनित प्राचार्य के रूप में डॉ. सीके गौतम ने प्रभार ग्रहण किया। चार्ज छोड़ने के बाद दस्तावेजों की चाबियां उनके पास रहीं
पद से मुक्त होने के बावजूद डॉ. अनुराग शुक्ला ने प्रभार हस्तांतरण में सहयोग नहीं किया। समिति के निरीक्षण में यह पाया गया कि कई अलमारियों, कार्यालय रिकॉर्ड, प्रत्याभूतियों व प्राचार्य आवास से संबंधित दस्तावेजों की चाबियां उनके पास ही रहीं। प्राचार्य कार्यालय की कई फाइलें अपेक्षित स्थानों पर नहीं थीं, जबकि कुछ अलमारियां तोड़ी गई थीं। उन्होंने कई बार पत्रों, ईमेल और पुलिस को सूचित कर प्रभार दिलाए जाने का अनुरोध किया, परंतु थाना लोहामंडी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। कार्रवाई न होने पर अंततः न्यायालय में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करना पड़ा। प्रभारी निरीक्षक लोहामंडी ने बताया प्राथमिकी दर्ज कर आरोपों की जांच की जा रही है। प्राचार्य ने कोर्ट को प्रार्थना पत्र देकर आरोप लगाया था
आगरा कॉलेज के प्राचार्य प्रो. सीके गौतम ने न्यायालय में प्रार्थना पत्र देते हुए कहा था कि पूर्व प्राचार्य डॉ. अनुराग शुक्ला ने वर्ष 2021 में आगरा कॉलेज आगरा में प्राचार्य पद पर कार्यभार ग्रहण किया था। पूर्व प्राचार्य डॉ. अनुराग शुक्ला का कूटरचित दस्तावेज के आधार पर चयन पाए पर उनका चयन शून्य घोषित कर दिया गया था। डॉ. अनुराग शुक्ला के बाद प्रबंध समिति के निर्देश पर डॉ. आरके श्रीवास्तव को कार्यवाहक प्राचार्य बनाया गया। उन्हें भी डॉ. शुक्ला ने चार्ज नहीं दिया। उन्होंने पत्र लिखकर चार्ज देने के साथ ही अलमारी की चाबियां और सभी महत्वपूर्ण दस्तावेज देने के लिए कहा लेकिन यह फिर भी नहीं दिए गए। डॉ. श्रीवास्तव के बाद शिक्षा सेवा आयोग द्वारा प्रो. सीके गौतम को विधिवत रूप से प्राचार्य बना दिया गया। डॉ. आरके श्रीवास्तव ने उन्हें लिखित सूचना दी कि उनके पूर्ववर्ती पद मुक्त प्राचार्य डॉक्टर अनुराग शुक्ला द्वारा आगरा कॉलेज के प्राचार्य कार्यालय एवं प्राचार्य कैंप कार्यालय की अनेक अलमारी की चाबियां उन्हें नहीं दी गई। ना ही महत्वपूर्ण दस्तावेज दिए गए। यह डॉ. अनुराग शुक्ला की अवैध अभिरक्षा में हैं। इस वजह से कई प्रशासनिक कार्य में बाधा उत्पन्न हो रही है। प्राचार्य प्रो. सीके गौतम के द्वारा 26 जून 2025 को मामले में एक कमेटी का गठन किया गया। जांच में पाया गया कि डॉ. अनुराग शुक्ला अपने साथ सभी अलमारी की चाबी और कॉलेज संबंधी अहम दस्तावेज, महत्वपूर्ण फाइलें और कई उपकरण अपने साथ ले गए हैं। यह कॉलेज में होने चाहिए थे जो कि नहीं हैं। प्राचार्य ने गंभीर आरोप लगाया प्राचार्य प्रो. सीके गौतम ने अपने प्रार्थना पत्र में कहा कि डॉ. अनुराग शुक्ला ने किसी भी प्रकार की प्रशासनिक प्रक्रिया का पालन न करते हुए किसी भी प्रकार के हैंडोवर दस्तावेज, संपत्ति रजिस्टर, स्टॉक रजिस्टर या आवश्यक फाइलों का विवरण प्रस्तुत नहीं किया और ना ही दस्तावेज युक्त अलमारी की चाबियों का हस्तांतरण किया। इससे कॉलेज को प्रशासनिक कार्य करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इस संबंध में उन्होंने लोहामंडी थाने में भी शिकायत की। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। आगरा कॉलेज के विधिक सलाहकार डॉ. अरुण कुमार दीक्षित ने न्यायालय को में दलील प्रस्तुत की कि कई महत्वपूर्ण दस्तावेज और चाबियां नहीं होने की वजह से कॉलेज में काम रुके पड़े हैं। डॉ. अनुराग शुक्ला का यह नहीं देना कानून अपराध है। दलीलों को सुनने के बाद अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पंकज कुमार ने आदेश में अपनी टिप्पणी में कहा था कि प्राचार्य का पद एक सार्वजनिक विश्वास का पद है, जिसमें कार्यालय अभिलेख, स्टॉक रजिस्टर, वित्त फाइलें, सील स्टोर की वस्तुएं व अन्य सरकारी संपत्ति व्यक्तिगत स्वामित्व की नहीं होती। बल्कि सार्वजनिक विश्वास के अंतर्गत आती हैं। पद मुक्त होने के पश्चात किसी भी सार्वजनिक सेवक के द्वारा इन अभिलेख एवं संपत्ति को अपने निजी नियंत्रण में बनाए रखना सेवा नियमों का उल्लंघन है।


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