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अस्पताल ने नहीं दी बेटे की लाश:पिता ने भीख मांगकर चुकाई अस्पताल की फीस, बरेली में मानवता हुई शर्मसार

यूपी के बरेली में मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटना सामने आई है, जहां एक निजी अस्पताल पर आरोप लगा है कि उसने एक गरीब और बेबस पिता को उसके बेटे की लाश नहीं दी। आरोप है कि अस्पताल प्रशासन ने कहा- पहले फीस दो, फिर लाश ले जाना। इसके बाद पिता ने भीख मांगकर अपने बेटे की लाश के लिए रुपए इकट्ठा किए और अस्पताल की फीस जमा की। फीस जमा होने के बाद ही अस्पताल ने बेटे की लाश उसके पिता को सौंपी। बदायूं में रहता है परिवार
बदायूं के हजरतपुर थाना क्षेत्र के नगरिया कला निवासी श्यामलाल का एक वीडियो सामने आया है, जिसने निजी अस्पतालों की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आरोप है कि श्यामलाल का बेटा धर्मवीर सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गया था। परिजन उसे इलाज के लिए बरेली के पीलीभीत रोड स्थित एक निजी अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। इसके बाद आरोप है कि डॉक्टरों ने बेटे की लाश देने के लिए ढाई लाख रुपए की मांग की। अस्पताल स्टाफ का कहना था कि पहले अस्पताल की फीस जमा करो, तभी बेटे की लाश दी जाएगी। बरेली के अस्पताल में इलाज के दौरान हुई मौत
श्यामलाल बेहद गरीब हैं। उन्होंने अस्पताल में डॉक्टरों और स्टाफ के सामने बहुत गिड़गिड़ाकर अपनी मजबूरी बताई। उन्होंने कहा कि वह ढाई लाख रुपए कहां से लाएंगे, लेकिन इसके बावजूद लाश देने से मना कर दिया गया। इसके बाद श्यामलाल बदायूं स्थित अपने गांव लौट गए। उन्होंने गांव वालों से भीख मांगी और कहा कि अगर आप लोग मदद कर देंगे, तभी अस्पताल वाले उनके बेटे की लाश देंगे। गांव वालों से भीख मांगकर जो रुपए इकट्ठा हुए, वही अस्पताल की फीस के रूप में जमा किए गए। इसके बाद उन्हें उनके बेटे धर्मवीर की लाश मिल सकी। बेटे की मौत से पिता का बुरा हाल
इसके बाद श्यामलाल ने बेटे का पोस्टमॉर्टम कराया और लाश को बदायूं स्थित अपने गांव ले जाकर अंतिम संस्कार कर दिया। आज श्यामलाल के बेटे का दसवां था। जवान बेटे की मौत से श्यामलाल पूरी तरह टूट चुके हैं। वह बार-बार अपने बेटे और अपनी गरीबी को याद कर रो पड़ते हैं। अस्पताल प्रबंधन बोला-आरोप निराधार
वहीं इस पूरे मामले में अस्पताल प्रशासन का कहना है कि उन पर लगाए जा रहे आरोप निराधार हैं। अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि श्यामलाल से किसी ने फीस की मांग नहीं की थी। उनका बेटा 16 दिन तक अस्पताल में भर्ती रहा था। शुरुआत में परिजनों ने कुछ फीस जमा की थी। बाद में बेटे की मौत हो गई तो परिजनों ने कहा कि उनके पास देने के लिए एक भी पैसा नहीं है। इसके बाद अस्पताल की ओर से उनसे कोई रकम नहीं ली गई।


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