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अलीगढ़ के बच्चों को कचरे ने दिलाई राष्ट्रीय पहचान:विप्रो अर्थियन अवार्ड के लिए हवाई जहाज से बंगलूरू जाएंगे बेसिक शिक्षा विभाग के बच्चे

‘मैं हूं पीले रंग का डिब्बा, मेरे अंदर बायोमेडिकल वेस्ट डाला जाता है…’ अलीगढ़ से करीब 20 किलोमीटर दूर गोकुलपुर गांव स्थित पूर्व माध्यमिक विद्यालय के बच्चों ने इसी कल्पना को नुक्कड़ नाटक का रूप देकर कचरा प्रबंधन जैसे गंभीर विषय को आम लोगों की भाषा में उतार दिया। बच्चों की यह अनोखी पहल गांव की गलियों से निकलकर देशभर के 1500 से अधिक स्कूलों तक पहुंची और आखिरकार उन्हें विप्रो अर्थियन अवार्ड–2025 तक ले गई। अब ये बच्चे अपनी शिक्षिका के साथ पहली बार हवाई जहाज से बंगलूरू जाएंगे और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित होंगे। नुक्कड़ नाटक से दिया संदेश नुक्कड़ नाटक के दौरान बच्चे जब अलग-अलग रंगों के कूड़ेदानों की भूमिका में बोलते हैं तो संदेश खुद-ब-खुद लोगों तक पहुंच जाता है। जैसे– पीला डिब्बा बायोमेडिकल कचरे के लिए है। लाल डिब्बा प्लास्टिक बोतल और पाइप जैसी दोबारा उपयोग होने वाली चीजों के लिए। सफेद डिब्बा सिरिंज और ब्लेड जैसे तीव्र धातु वाले कचरे के लिए। नीला डिब्बा कांच और टूटे हुए सामान के लिए और काला डिब्बा सामान्य, गैर-संक्रामक कचरे के लिए। अलीगढ़ में पहली बार हुई प्रतियोगिता नोडल अधिकारी डॉ. अनिल राघव ने बताया कि विप्रो सेंट्रल फॉर एनवायरनमेंट एजुकेशन वर्ष 2013 से देशभर में इस तरह की प्रतियोगिताएं आयोजित कर रहा है। इस बार विशेष प्रयासों के बाद अलीगढ़ को इसमें शामिल किया गया। 28 जुलाई को डायट में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें शिक्षकों को परियोजना तैयार करने का प्रशिक्षण दिया गया। 65 स्कूलों ने लिया हिस्सा अलीगढ़ के 12 ब्लॉक और एक नगर क्षेत्र से कुल 65 स्कूलों को इस कार्यक्रम में जोड़ा गया। प्रत्येक ब्लॉक से शिक्षकों को बुलाकर जल, कचरा और जैव विविधता में से किसी एक विषय पर प्रोजेक्ट तैयार करने को कहा गया। गोकुलपुर पूर्व माध्यमिक विद्यालय की सहायक अध्यापिका संध्या सिंह ने कचरा प्रबंधन विषय को चुना और बच्चों को इसके लिए तैयार किया। प्रतियोगिता के जरिए चुने गए बच्चे विद्यालय स्तर पर प्रतियोगिता आयोजित कर कक्षा 8 के लकी, कक्षा 7 के सूरज, जितेंद्र और विवेक तथा कक्षा 6 के प्रशांत को चुना गया। बच्चों ने शिक्षिका के निर्देशन में नुक्कड़ नाटक, जागरूकता अभियान और प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर मेहनत की। कचरे से खाद, छोटी जगह में बड़ी सीख बच्चों ने स्कूल परिसर में सीमित जगह में सब्जियां और पौधे उगाए, जिनमें कचरे से बनी खाद का उपयोग किया गया। महज दो महीने में पूरी रिपोर्ट तैयार कर विप्रो की ऑनलाइन साइट पर जमा की गई। रविवार को आए परिणाम ने मेहनत को रंग दिया और टीम को विप्रो अर्थियन अवार्ड–2025 के लिए चुन लिया गया। 1500 से अधिक स्कूलों में 25 का चयन विप्रो अर्थियन कार्यक्रम देश की प्रमुख सस्टेनेबिलिटी शिक्षा पहल है। इस वर्ष देशभर के 1500 से अधिक स्कूलों ने प्रोजेक्ट सबमिट किए, जिनमें से केवल 25 टीमों को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया। शनिवार को घोषित हुए परिणाम के अनुसार उत्तर प्रदेश से अलीगढ़ के अलावा लखनऊ औेर आगरा शामिल हैं। 50 हजार का पुरस्कार, बंगलूरू में सम्मान चयनित प्रत्येक स्कूल को 50 हजार रुपये का नकद पुरस्कार मिलेगा। 27 जनवरी को बच्चे और उनकी शिक्षिका हवाई जहाज से बंगलूरू जाएंगे, जहां वे फाइव स्टार होटल में ठहरेंगे और राष्ट्रीय स्तर पर अर्थियन अवार्ड–2025 से सम्मानित होंगे। यहां भी एक प्रतियोगिता होगी। इनमें एक टीम का चयन कर जापान भेजा जाएगा। इस उपलब्धि पर खंड शिक्षा अधिकारी धनीपुर वीरेश कुमार सिंह, नोडल प्रभारी डॉ. अनिल राघव सहित अन्य अधिकारियों ने बच्चों को मिठाई खिलाकर बधाई दी।


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